Class 12 geography chapter 2 notes in hindi, विश्व जनसंख्या वितरण घनत्व और वृद्धि notes

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12 Class Geography Chapter 2 विश्व जनसंख्या वितरण , घनत्व और वृद्धि Notes In Hindi The World Population

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectGeography
Chapter Chapter 2
Chapter Nameविश्व जनसंख्या वितरण , घनत्व और वृद्धि
CategoryClass 12 Geography Notes in Hindi
MediumHindi

Class 12 geography chapter 2 notes in hindi, विश्व जनसंख्या वितरण घनत्व और वृद्धि notes इस अध्याय मे हम जनसख्या वितरण , जनसंख्या घनत्व , जनसंख्या वृद्धि दर , जैसे विषयो के बारे में विस्तार से जानेंगे ।

❇️ जनसख्या वितरण :-

🔹  जनसंख्या वितरण का अर्थ है पृथ्वी की सतह पर लोगों के वितरण की व्यवस्था । जनसंख्या को समान रूप से वितरित नहीं किया जाता है क्योंकि दुनिया की 90 प्रतिशत आबादी अपने भूमि क्षेत्र के लगभग 10 प्रतिशत में रहती है ।

🔹  दुनिया के 10 सबसे अधिक आबादी वाले देश दुनिया की आबादी का लगभग 60 प्रतिशत योगदान करते हैं । इन 10 देशों में से 6 एशिया में स्थित हैं ।

❇️ जनसंख्या घनत्व :-

🔹 प्रति इकाई क्षेत्रफल पर निवास करने वाले व्यक्तियों की औसत संख्या को जनसंख्या घनत्व कहतें हैं ।

🔹  इसका मतलब भूमि के आकार के लोगों की संख्या के बीच का अनुपात है । यह आमतौर पर प्रति व्यक्ति जनसंख्या / क्षेत्र के घनत्व में मापा जाता है । कुछ क्षेत्र घनी आबादी वाले हैं जैसे उत्तर – पूर्वी अमरीका , उत्तर – पश्चिमी यूरोप , दक्षिण , दक्षिण – पश्चिम और पूर्वी एशिया ।

🔹 कुछ क्षेत्र बहुत कम आबादी वाले हैं जैसे कि ध्रुवीय क्षेत्रों के पास और भूमध्य रेखा के पास उच्च वर्षा क्षेत्र जबकि कुछ क्षेत्रों में मध्यम चीन , दक्षिणी भारत , नॉर्वे , स्वीडन आदि जैसे घनत्व हैं ।

❇️ जनसंख्या घनत्व की गणना :-

🔹  जनसंख्या घनत्व मापने के लिए कुल जनसंख्या को कुल क्षेत्रफल से भाग दिया जाता है ।

🔹 उदाहरण :-  मान लीजिए किसी देश की जनसंख्या 1000000 है और वहां का क्षेत्रफल 10000 वर्ग किलोमीटर है । इस स्थिति में वहां का जनसंख्या घनत्व 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर होगा ।

 नोट : – ऐसे क्षेत्र जिनकी जनसंख्या 200 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से अधिक होती है उन्हें सघन आबादी वाला क्षेत्र कहा जाता है

❇️ जनसंख्या वृद्धि दर :-

🔹 किसी क्षेत्र में निश्चित समयावधि में जनसंख्या में होने वाले परिवर्तन को जनसंख्या वृद्वि कहते हैं । जब जनसंख्या परिवर्तन को प्रतिशत में व्यक्त किया है उसे जनसंख्या वृद्धि दर कहते हैं ।

❇️ जनसंख्या वृद्धि दर के प्रकार :-

🔹 जनसंख्या वृद्धि दर 2 प्रकार की होती है :

  • ( 1 ) जनसंख्या की धनात्मक वृद्धि दर
  • ( 2 ) जनसंख्या की ऋणात्मक वृद्वि दर

❇️ ( 1 ) जनसंख्या की धनात्मक वृद्धि दर :-

🔹 किन्ही दो समय अंतरालों के बीच जब जन्म दर , मृत्यु दर से अधिक हो जाती है , तब वह जनसंख्या की धनात्मक वृद्धि दर कहलाती है । 

❇️ ( 2 ) जनसंख्या की ऋणात्मक वृद्वि दर :-

🔹 किन्हीं दो समय अंतरालों के बीच जब जन्मदर , मृत्यु दर से कम हो जाती है , तब वह जनसंख्या की ऋणात्मक वृद्धि दर कहलाती है ।

❇️ जनसंख्या की वास्तविक वृद्धि की गणना :-

🔹 जनसंख्या की वास्तविक वृद्धि की गणना दिए गए सूत्र द्वारा की जा सकती है । जनसंख्या की वास्तविक वृद्धि = ( जन्म – मृत्यु ) + ( आप्रवास – उत्प्रवास )

❇️ माल्थस सिद्धान्त :-

🔹 थामस माल्थस सिद्धान्त ( 1893 ) के अनुसार लोगों की संख्या खाद्य आपूर्ति की अपेक्षा तेजी से बढ़ेगी । जनसंख्या में वृद्धि का परिणाम अकाल , बीमारी तथा युद्ध द्वारा उसमें अचानक गिरावट के रूप में सामने आएगा ।

❇️ जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारक :-

🔹 जनसंख्या वितरण तीन कारकों अर्थात भौगोलिक कारकों , आर्थिक कारकों और सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों से प्रभावित होता है ।

❇️  1 . प्राकृतिक कारक :-

🔶 ( क ) उच्चावच :- पर्वतीय , पठारी अथवा ऊबड़ – खाबड़ , प्रदेशों में कम लोग रहते हैं जबकि मैदानी क्षेत्रों में लोगों का निवास अधिक होता है क्योंकि इन क्षेत्रों में भूमि उर्वरक होती है और कृषि की जा सकती है । यही कारण है कि नदी घाटियों जैसे गंगा , ब्रह्मपुत्र , हांग – हो आदि की घाटियाँ अधिक घनी बसी है । 

🔶 ( ख ) जलवायु :- अत्याधिक गर्म या अत्याधिक ठंडे भागों में कम जनसंख्या निवास करती है । ये विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं जैसे मरूस्थल व पहाड़ी क्षेत्र मानसून प्रदेशों में अधिक जनसंख्या निवास करती है – जैसे एशिया के देश । 

🔶 ( ग ) मृदा :- जनसंख्या के वितरण पर मृदा की उर्वरा शक्ति का बहुत प्रभाव पड़ता है । उपजाऊ मिट्टी वाले क्षेत्रों में खाद्यान्न तथा अन्य फसलें अधिक पैदा की जाती हैं तथा प्रति हैक्टेयर उपज अधिक होती है । इसलिए नदी घाटियों की उपजाऊ मिट्टी वाले क्षेत्र अधिक घने बसे हैं ।

🔶 ( घ ) जल की उपलब्धता :- लोग उन क्षेत्रों में बसने को प्राथमिकता देते हैं जहाँ जल आसानी से उपलब्ध होता है । यही कारण है कि नदी घाटियाँ विश्व के सर्वाधिक सघन बसे हुए क्षेत्र हैं । 

🔶 ( ङ ) वनस्पति :- अधिक घने वनों के कारण भी जनसंख्या अधिक नहीं पाई जाती है लेकिन कोणधारी वनों की आर्थिक उपयोगिता अधिक है । इसलिए लोग उन्हें काटने के लिए वहाँ बसते हैं ।

❇️ 2 . आर्थिक कारक :-

🔶  1 ) परिवहन का विकास :- परिवहन के साधनों के विकास से लोग दूर के क्षेत्रों से परिवहन के बेहतर साधनों से जुड़ जाते हैं विश्व के सभी परिवहन साधनों से जुड़े क्षेत्र सघन आबाद हैं ।

🔶 2 ) नगरीकरण और औद्योगिक क्षेत्रों में उद्योगों और नगरीय केन्द्रों की वृद्धि एक उच्च जनसंख्या घनत्व को आकर्षित करती है ।

🔶 3 ) खनिज निक्षेपों से युक्त क्षेत्र आर्थिक रूप से लोगों को आकर्षित करते हैं ।

❇️ 3 . धार्मिक एंव सांस्कृतिक कारक :-

🔶 धार्मिक कारक :- धार्मिक कारणों से लोग अपने देश छोड़ने को मजबूर हो जाते है । दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों को यूरोप छोडकर रेगिस्तान क्षेत्र में नया देश इजराइल बसाना पड़ा था । इसी प्रकार दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति के कारण जनसंख्या का वितरण प्रभावित हुआ है ।

🔶 राजनैतिक कारक :- किसी देश में गृह युद्ध , अशान्ति आदि के कारण भी जनसंख्या वितरण पर प्रभाव पड़ता है उदाहरण के लिए , फारस की खाड़ी का युद्ध , श्रीलंका में जातीय संघर्ष आदि के कारण जनसंख्या का पलायन हुआ ।

❇️ जनसंख्या परिवर्तन के तीन प्रमुख घटक :-

🔶 1 ) जन्मदर :- 

🔹 अशोधित जन्म दर को प्रति हजार स्त्रियों द्वारा जन्म दिए गए जीवित बच्चों के रूप में व्यक्त किया जाता है । इसके उच्च होने या निम्न होने का जनसंख्या परिवर्तन से सीधा संबंध है ।

🔶 2 ) मृत्युदर :- 

🔹 मृत्युदर भी जनसंख्या परिवर्तन में सक्रिय भूमिका निभाती है । जनसंख्या वृद्धि केवल बढ़ती जन्मदर से ही नहीं होती अपितु घटती मृत्युदर से भी होती है ।

🔶 3 ) प्रवास :- 

🔹 प्रवास के द्वारा जनसंख्या के आकार में परिवर्तन होता है इसके अन्तर्गत उद्गम स्थान को छोड़कर जाना व गंतव्य स्थान पर आकर बसना दोनों सम्मिलित है । प्रवास स्थायी व मौसमी दोनों प्रकार का हो सकता है । यह जनसंख्या परिवर्तन में योगदान देता है ।

❇️ प्रवास के कारण :-

  • प्रवास के अपकर्ष कारक
  • प्रवास के प्रतिकर्ष कारक

❇️ प्रवास के अपकर्ष कारक :-

🔹 प्रवास के अपकर्ष कारक गंतव्य स्थान को उदगम स्थान की अपेक्षा अधिक आकर्षक बनाते हैं ।

ये कारक निम्न हैं : 

  • 1 ) काम के बेहतर अवसर
  • 2 ) रहन – सहन की अच्छी दशाएँ
  • 3 ) शान्ति व स्थायित्व
  • 4 ) अनुकूल जलवायु
  • 5 ) जीवन व सम्पत्ति की सुरक्षा

❇️ प्रवास के प्रतिकर्ष कारक :-

🔹 प्रवास के प्रतिकर्ष कारक उद्गम स्थान को उदासीन स्थल बनाते है । इन कारणों की वजह से लोग इस स्थान को छोड़कर चले जाते है ।

 ये प्रमुख कारक निम्न है : 

  • 1 ) रहन – सहन की निम्न दशाएँ
  • 2 ) राजनैतिक परिस्थितियाँ
  • 3 ) प्रतिकूल जलवायु
  • 4 ) प्राकृतिक विपदाएँ
  • 5 ) महामारियाँ
  • 6 ) आर्थिक पिछड़ापन

❇️ जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ :-

  • 1 ) संसाधनों पर अत्याधिक भार ।
  • 2 ) संसाधनों का तीव्र गति से हास ।
  • 3 ) जनसंख्या के भरण पोषण में कठिनाई ।
  • 4 ) विकास की गति का अवरूद्ध होना ।

❇️ जनसंख्या हास के परिणाम :-

  • 1 ) संसाधनों का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता ।
  • 2 ) समाज की आधारभूत संरचना स्वयं ही अस्थिर हो जाती है
  • 3 ) देश का भविष्य चिंता व निराशा में डूब जाता है ।

❇️ किसी देश की जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ने पर वहाँ के आर्थिक विकास पर पड़ने वाले प्रभाव :-

🔹 जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण अनेक प्रकार की आर्थिक और सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है :-

1 . भोजन की समस्या :- तीव्र गति से जनसंख्या की वृद्धि के कारण भोजन पदार्थों की आवश्यकता की पूर्ति कठिन हो जाती है ।

2 . आवास की समस्या :- बढती जनसंख्या के कारण निवास स्थानों की कमी होती जा रही है । लाखों लोग झुग्गी तथा झोपड़ी में निवास करते हैं ।

3 . बेरोजगारी :- जनसंख्या वृद्धि के कारण बेकारी एक गम्भीर समस्या के रूप में उभर कर सामने आई है । आर्थिक विकास कम हो जाने से रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं और बेरोजगारी बढ़ जाती है ।

4 . निम्न जीवन स्तर :- अधिक जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है इसलिए स्तर गिर जाता है ।

5 . जनसंख्या का कृषि पर अधिक दबाव :- बढ़ती जनसंख्या को खाद्यान्नों की पूर्ति करने के लिए कृषि योग्य भूमि पर दबाव बढ़ जाता है।

6 . बचत में कमी :- जनसंख्या वृद्धि के कारण कीमतें बढ़ जाती है तथा बचत कम होती है ।

7 . स्वास्थ्य :- नगरों में गन्दगी बढ़ जाती है स्वास्थ्य और सफाई का स्तर नीचे गिर जाता है ।

❇️ जनांकिकीय संक्रमण :-

🔹 जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त किसी क्षेत्र की जनसंख्या के वर्णन तथा भविष्य की जनसंख्या के पूर्वानुमान लगाने में मदद करता है । इस सिद्धान्त के अनुसार जैसे – जैसे कोई देश या समाज ग्रामीण खेतीहर और अशिक्षित में उन्नति करके नगरीय औद्योगिक और साक्षर बनता है तो उस समाज में उच्च जन्म व उच्च मृत्युदर से निम्न जन्म व निम्न मृत्युदर की स्थिति आने लगती है ये परिवर्तन विभिन्न अवस्थाओं में होते हैं । इन्हे सामूहिक रूप से जनांकिकीय चक्र कहते हैं ।

🔹 ये अवस्थाएँ निम्न प्रकार हैं :-

🔶 प्रथम अवस्था :- प्रथम अवस्था में उच्च जन्मदर और उच्च मृत्युदर होती है । जनसंख्या वृद्धि धीमी होती है और अधिकतम लोग प्राथमिक व्यवसाय में लोग होते हैं । बड़े परिवार संपत्ति माने जाते हैं जीवन प्रत्याशा निम्न होती है ।

🔶 द्वितीय अवस्था :- इस अवस्था में आरंभ में उच्च जन्मदर बनी रहती है किन्तु समय के साथ घटती है । इस अवस्था में मृत्युदर घट जाती है । जन्मदर व मृत्युदर में अंतर के कारण जनसंख्या तेजी से बढ़ती है । बाद में घटने लगती है ।

🔶 तृतीय अवस्था :- इस अवस्था में जन्म दर तथा मृत्युदर बहुत कम हो जाती है । लगभग संतुलन की स्थिति होती है । जनसंख्या या तो स्थिर हो जाती है अथवा बहुत कम वृद्धि होती है । इस अवस्था में जनसंख्या शिक्षित हो जाती है तथा तकनीकी ज्ञान के द्वारा विचार पूर्वक परिवार के आकार को नियन्त्रित करती है ।

❇️ जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त का उपयोग :-

🔹 जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त का उपयोग किसी क्षेत्र की जनसंख्या का वर्णन करने तथा भविष्य की जनसंख्या के पूर्वानुमान के लिए किया जा सकता है ।

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