सामाजिक शोध की पद्धतियां notes, Class 11 sociology chapter 5 notes in hindi

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11 Class Sociology Chapter 5 समाजशास्त्र अनुसंधान पद्धतियाँ Notes In Hindi Doing Sociology: Research Methods

TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectSociology
Chapter Chapter 5
Chapter Nameसमाजशास्त्र अनुसंधान पद्धतियाँ
Doing Sociology: Research Methods
CategoryClass 11 Sociology Notes in Hindi
MediumHindi

सामाजिक शोध की पद्धतियां notes, Class 11 sociology chapter 5 notes in hindi जिसमे हम सामाजिक शोध , समाजशास्त्र में व्यक्तिपरकता , समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता , सामाजिक सर्वेक्षण आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 11 Sociology Chapter 5 समाजशास्त्र अनुसंधान पद्धतियाँ Doing Sociology: Research Methods Notes In Hindi

📚 अध्याय = 5 📚
💠 समाजशास्त्र अनुसंधान पद्धतियाँ 💠

❇️ सामाजिक शोध :-

🔹 सामाजिक शोध का अर्थ सामाजिक घटनाओं या विभिन्न सिद्यांतों के सम्बन्ध में नवीन ज्ञान कि प्राप्ति के लिए प्रयोग में लाई गई वैज्ञानिक पद्धति सामाजिक शोध कहलाती है ।

❇️ समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता :-

🔹 समाजशास्त्र एक विज्ञान है क्योंकि इसकी शोध पद्धतियां वस्तुनिष्ठता पर आधारित होती है . ” वस्तुनिष्ठता ” से तात्पर्य बिना पक्षपात के तटस्थ होकर तथ्यों को जुटाना है शोध में वस्तुनिष्ठता तभी आती है जब शोधकर्ता अपनी व्यक्तिगत भावनाओं , पूर्वाग्रहों और आधार – व्यवहार से विमुख होकर शोध से संमधित वास्तविकक तथ्य एकत्र करता है और उस पर अपना निष्कर्ष देता है या सिद्यांत पारित करता है ।

❇️ समाजशास्त्र में व्यक्तिपरकता :-

🔹 जब एक समाजशास्त्री किसी सामाजिक समस्या का अध्ययन करते समय अपनी निजी भावनायें , धारणाओं , पूर्वाग्रहों आदि को पूर्णतया नहीं त्याग सकता , कारणवश उसके निष्कर्ष में तटस्थता आना कठिन होता है अर्थात् उसके व्यक्तिगत मूल्य शोध पर अपना प्रभाव डालेंगे ।

❇️ सामाजिक शोध की पद्धतियां :-

🔹 सामाजिक शोध सामाजिक घटनाओं और सामाजिक समस्याओं से संबंधित है । विविध प्रकार कि घटनाओं का अध्ययन एक पद्धति से सम्भव नहीं हो सकता है । इसलिए समाजशास्त्र में अनेक प्रकार कि पद्धतियों को प्रयोग में लाया जाता है , पद्धतियों के चुनाव में अध्ययन विषय कि प्रकृति , क्षेत्र और अध्ययन का उद्देश्य आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है यहाँ हम मुख्य रूप से सामाजिक सर्वेक्षण अवलोकन / निरिक्षण , साक्षात्कार तथा क्षेत्रीय अध्ययन ( Field Work ) जैसी पद्धतियों की चर्चा करेंगे ।

❇️ सामाजिक सर्वेक्षण :-

🔹 सामाजिक सर्वेक्षण निरीक्षण – परीक्षण की वह वैज्ञानिक पद्धति है जो सामाजिक समूह या किसी सामाजिक जीवन के किसी पक्ष या घटना के संबंध में वैज्ञानिक अध्ययन करने में प्रयुक्त होती है सर्वेक्षण ” समष्टि ” पद्धति का सबसे आम उदाहरण है ।

❇️ सामाजिक सर्वेक्षण के उद्देश्य :-

सामाजिक तथ्यों का संकलन करना । 

सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करना । 

श्रमिकों की दशाओं का अध्ययन करना ।

❇️ सामाजिक सर्वेक्षण के कार्य :-

🔶 कार्य :- 

कारण सम्बन्ध का ज्ञान अर्जित करना ।

सामाजिक सिद्धांतों की पुनर्परीक्षा आयोजित करना ।

उपकल्पना का निर्माण और उसकी जाँच करना ।

समाज सुधार के लिए ज्ञान प्राप्त करना ।

सर्वेक्षण का आयोजन ।

तथ्यों का संकलन ।

तथ्यों का विश्लेषण ।

तथ्यों का प्रदर्शन ।

❇️ सामाजिक सर्वेक्षण के प्रकार :-

🔶 जनगणना सर्वेक्षण :- देश कि जनसंख्या सबंधित आंकड़े प्राप्त करने के लिए किया जाने वाला सर्वेक्षण जैसे भारत में आयोजित 2011 की जनगणना ।

🔶 निदर्शन सर्वेक्षण :- जब सर्वेक्षण का क्षेत्र विस्तृत होता तो इस विशाल भाग से प्रतिनिधि इकाइयों का चुनाव करके उनका सर्वेक्षण करना निदर्शन सर्वेक्षण कहलाता है ।

🔶 सरकारी सर्वेक्षण :- अनेक सर्वेक्षण सरकार अपने स्वतन्त्र विभागों के माध्यम से करवाती है , जैसे गरीबी , बेरोजगारी कृषि आदि ।

🔶 गैर सरकारी सर्वेक्षण :- अनेक सामाजिक सर्वेक्षण व्यक्तिगत और गैर – सरकारी संस्थाओं द्वारा किये जाते है । इन सर्वेक्षण को गैर सरकारी सर्वेक्षण कहा जाता है ।

🔶 गुणात्मक सर्वेक्षण :- सामाजिक घटनाओं की प्रकृति गुणात्मक होती है । इसमें स्वभाव , अच्छाई , बुराई आदि का अध्ययन किया जाता है ।

🔶  गणनात्मक सर्वेक्षण का उद्देश्य :- सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य समाज के बारे गुणात्मक तथ्य प्राप्त करना होता है । इसलिए आधुनिक युग में इस प्रकार के सर्वेक्षण में निरंतर वृद्धि होती जा रही है । इसमें सामाजिक जीवन का संख्यात्मक सर्वेक्षण किया जाता है ।

🔶 आवृत्तिपूर्ण सर्वेक्षण :- सामाजिक जीवन गतिशील होने के कारण बार बार एक ही घटना के बारे में सर्वेक्षण करना पड़ता है । इस प्रकार के सर्वेक्षण को आवृत्तिपूर्ण सर्वेक्षण कहते है ।

❇️ सर्वेक्षण पद्धति के गुण :-

सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति का सबसे महत्वपूर्ण गुण यह है कि इसके द्वारा समाज के विषय में गहन जानकारी प्राप्त होती है । 

सामाजिक गतिशीलता की दिशा और प्रभाव का ज्ञान मिलता है । 

सामाजिक सर्वेक्षण के माध्यम से जो निष्कर्ष प्राप्त होते है , वे अधिक विश्वसनीय और वैविक होते है ।

नई उपकल्पनाओं की जानकारी हमें सामाजिक सर्वेक्षण के माध्यम से मिलती है जिनके ऊपर आगे चलकर शोध किया जाता है ।

सामाजिक सर्वेक्षण के द्वारा हम समस्या से सीधे सम्पर्क में आते है और इस प्रकार उस सम्बन्ध में व्यवहारिक ज्ञान भी प्राप्त करते है ।

सामाजिक सर्वेक्षण के द्वारा हमें समस्या की वास्तविक जानकारी मिलती है और इस प्रकार पक्षपात की सम्भावना कम हो जाती है ।

सामाजिक सर्वेक्षण में अधिक समय लगने के कारण जानकारी समय पर नहीं मिल पाती है ।

सामाजिक सर्वेक्षण का क्षेत्र अधिक विस्तृत होने के कारण ही सर्वेक्षण अधिक समय तक चलता है ।

सामाजिक सर्वेक्षण अकुशल शोधकर्ता द्वारा संपन्न किया जाता है तो निष्कर्ष अविश्वसनीय होते है ।

सामाजिक सर्वेक्षण पूर्व नियोजित और योजनाबद्ध होने के कारण अनुसंधनकर्ता स्वतन्त्र रूप से अपनी बुद्धि का प्रयोग नही कर सकता है ।

सामाजिक घटनाएँ अमूर्त होती है इसके साथ ही उनकी प्रकृति बिखरी हुई होने के कारण सामाजिक सर्वेक्षण में कठिनाई होती है ।

सामाजिक सर्वेक्षण में धन और समय अधिक लगता है , इसलिए विस्तृत क्षेत्र में सर्वेक्षण न किया जाकर सीमित क्षेत्र में सर्वेक्षण किया जाता है ।

❇️ निरीक्षण / अवलोकन / प्रेक्षण :-

🔹 अवलोकन सामाजिक शोध की ऐसी प्रविधि है जिसमें अनुसंधानकर्ता अपने अध्ययन करने वाले समुदाय के व्यवहार की सीधी जांच अपनी आँखो से करते है । यह प्रविधि मानवशास्त्र में सर्वप्रथम उपयोग में लाने वाले मानवशास्त्री बेंसिला मलिनोवासकी रहे है । मानवशास्त्र से ही यह शोध प्रविधि समाजशास्त्र में आई है ।

❇️ अवलोकन की विशेषताएं :-

निरीक्षण के द्वारा प्राथमिक सामग्री का संकलन किया जाता है । 

निरीक्षण विधि के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से अध्ययन किया जाता है ।

निरीक्षण प्रविधि में मानव इन्द्रियों का पूर्ण उपयोग किया जाता है ।

निरीक्षण विधि के द्वारा उद्धेश्यपूर्ण या विचारपूर्वक मूल समस्या का अध्ययन किया जाता है । 

कार्य – कारण सम्बन्ध की जानकारी हमें अवलोकन के द्वारा ही मिल पाती है । 

निरीक्षण विधि से सामूहिक व्यवहार का अध्ययन के लिए सर्वोत्तम विधि है ।

❇️ अवलोकन के प्रकार :-

🔹 अवलोकन दो प्रकार से किया जाता है :-

  • सहभागी अवलोकन 
  • असहभागी अवलोकन

❇️ सहभागी अवलोकन :-

🔹 सहभागी अवलोकन वह अवलोकन है जिसमें अवलोकनकर्ता अध्ययन किये जाने वाले समूह में जाकर रहने लगता है । वह समूह में इस प्रकार घुल – मिल जाता है कि समूह के सभी क्रियाकलापों में समूह के सदस्यों कि भाति भाग लेता है और साथ – साथ सामाजिक सम्बंधों का भी अध्ययन करता है ।

❇️ सहभागी अवलोकन के गुण :- 

सहभागी अवलोकन से अनुसंधानकर्ता को समस्या का सूक्ष्म अध्ययन करने में मदद मिलती है । 

सहभागी अवलोकन प्रत्यक्ष अध्ययन का अवसर प्रदान करता है ।

सहभागी निरीक्षण से प्रत्यक्ष अध्ययन नहीं कर सकते बल्कि सामाजिक जीवन की विस्तृत सूचनाएं भी प्राप्त कर सकते है । 

सहभागी अवलोकन से सूचनादाता के अप्रभावित व वास्तविक व्यवहार का अध्ययन सम्भव है । 

सहभागी निरीक्षण असहभागी निरीक्षण कि तुलना में काफी सरल है ।

❇️ सहभागी अवलोकन के दोष :-

अवलोकनकर्ता की अध्ययनरत समूह में कभी – कभी पूर्ण सहभागिता सम्भव नहीं हो पाती है । 

सहभागी निरीक्षण एक खर्चीली प्रणाली है ।

सहभागी अवलोकन में अध्ययन कि गति धीरे – धीरे आगे बढ़ती है । 

इस विधि के द्वारा सीमित क्षेत्र में ही ज्ञान एवम् अनुभव प्राप्त कर सकता है । 

कभी – कभी अध्ययनरत समूह के सदस्य निरीक्षणकर्ता के आने से अपना वास्तविक सामाजिक व्यवहार बदल लेते है । परिणामस्वरूप परिवर्तित व्यवहार का अध्ययन कठिन हो जाता है । 

अवलोकनकर्ता के समूह का सदस्य बन जाने के कारण अनुसंधनकर्ता के अध्ययन व्यक्तिगत पक्षपात आने की सम्भावना रहती है ।

❇️ असहभागी अवलोकन / निरीक्षण :-

🔹 असहभागी अवलोकन में , अनुसंधानकर्ता समूह या समुदाय का , जिसका की उसे अध्ययन करना है , निरीक्षण एक तटस्थ दृष्टा की भाँति वैज्ञानिक भावना से करता है ।

❇️ असहभागी अवलोकन / निरीक्षण के लाभ :-

  • असहभागी अवलोकन में सत्यता और वैषविकता आने कि अधिक सम्भावना रहती है । 
  • असहभागी निरीक्षण से विश्वसनीय सूचनाओं की प्राप्ति होती है । 
  • सहभागी कि तुलना में असहभागी निरीक्षण में कम समय और कम धन लगता है ।

❇️ असहभागी अवलोकन / निरीक्षण की हानि :-

असहभागी निरीक्षणकर्ता कई घटनाओं एंव क्रियाओं का महत्व समझने में असफल होता है ।

यह निरीक्षण विशुद्ध रूप से असहभागी निरीक्षण भी है ।

अजनबी व्यक्ति के प्रति समुदाय के लोगों का व्यवहार संदेहास्पद भी होना स्वभाविक है , परिणाम स्वरूप समुदाय के सदस्यों के व्यवहारों में बनावट आ जाती है ।

❇️ साक्षात्कार :-

🔹 एक व्यक्ति अथवा समूह के साथ विशिष्ट प्रयोजन से आयोजित औपचारिक वार्तालाप की प्रक्रिया साक्षात्कार – विधि कहलाती है । सामाजिक शोध कि एक विधि के रूप में साक्षात्कार का मुख्य उद्देश्य शोध सम्बन्धी सूचनांए एकत्रित करना है ।

❇️ साक्षात्कार के उद्देश्य :-

🔶 व्यक्तिगत सूचनाएं :- साक्षात्कार विधि के द्वारा व्यक्तिगत सम्पर्क से सूचनाएं प्राप्त की जाती है ।

🔶 प्रत्यक्ष सम्पर्क :- शोधकर्ता और सूचनादाता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध बनने से अधिक विश्वसनीय सूचनाएं प्राप्त की जा सकती है ।

🔶 समस्याओं के विभिन्न पहलुओं की जानकारी :- इस विधि में शोधकर्ता विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापितरिता है जिससे समस्या के विषय में गहन जानकारी मिलती है ।

🔶 गुणात्मक तथ्यों के लिए :- साक्षात्कार विधि के द्वारा लोगों के जीवन , सम्बन्धित गुणात्मक प्रकृति की व्यक्तिगत तथा आंतरिक सूचनाये जैसे – आदर्श सामाजिक मूल्य , विशेष अभिरुचियाँ , स्वभाव , भावनाएँ , विचार , अच्छाई – बुराइ , अमूर्त तथा अदृश्य गुणों तथा व्यवहारों का ज्ञान प्राप्त होता है ।

❇️ साक्षात्कार के प्रकार :-

🔶 व्यक्तिगत साक्षात्कार :- इस प्रकार के साक्षात्कार में केवल दो व्यक्ति शोधकर्ता और सूचनादाता होते है । इस विधि के द्वारा वास्तविक सूचनाएं सरलता से मिल जाती है ।

🔶 सामूहिक साक्षात्कार :- इस प्रकार के साक्षात्कार में एक या अधिक साक्षात्कर्ता अनेक सुचनादाताओं में समस्या से जुड़ी सुचना एकत्रित करते है ।

🔶 प्रत्यक्ष साक्षात्कार :- इस विधि में साक्षातकर्ता और सूचनादाता आमने – सामने प्रत्यक्ष रूप से वार्तालाप करते है ।

🔶 अप्रत्यक्ष साक्षात्कार :- इस प्रकार के साक्षात्कार में प्रत्यक्ष आमने – सामने न बैठकर फोन , इंटरनेट द्वारा सुचना ग्रहण की जाती है ।

🔶 औपचारिक साक्षात्कार :- औपचारिक साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता सूचनादाता पहले से निर्मित साक्षात्कार अनुसूची में से प्रश्न पूछता है और उनके उत्तर वही लिखता है ।

🔶 अनोपचारिक साक्षात्कार :- इस प्रकार के साक्षात्कार में शोधकर्ता सूचनादाता स्वतन्त्र रूप से अपनी अनुसंधान की समस्या के विभिन्न पहलुओं पर वार्तालाप करता है ।

❇️ साक्षात्कार प्रविधि का महत्त्व :-

व्यक्ति का मनौवैज्ञानिक रूप से अध्ययन सिर्फ साक्षात्कार से ही सम्भव है ।

साक्षात्कार विधि के द्वारा ही अमूर्त घटनाओं का अध्ययन किया जा सकता है , जैसे – सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन । 

साक्षात्कार विधि से अधिक मार्मिक और गोपनीय आंतरिक जीवन का अध्ययन किया जा सकता है । 

भूतकालीन घटनाओं का अध्ययन केवल साक्षात्कार विधि से सम्भव है । क्योकि समाज परिवर्तनशील है । परिणामरूवरूप अनेक घटनाये इतिहास में चुप जाती है । 

साक्षात्कार विधि के माध्यम से हम किसी भी पृष्ठभूमि के व्यक्ति का अध्ययन कर सकते है । जैसे- अशिक्षित , शिक्षित , ग्रामीण , नगरीय , आदि जो सूचनादाता प्रश्नों को समझ नहीं पाते शोधकर्ता उन्हें समझाकर सुचना प्राप्त कर लेते है ।

साक्षात्कार एक लचीली शोध प्रविधि है । 

विविध सूचनाओं कि प्राप्ति का साधन साक्षात्कार विधि है ।

❇️ साक्षात्कार प्राविधि की हानियाँ :-

  • दोषपूर्ण स्मरण शक्ति
  • सत्यापन का अभाव
  • विश्वसनीयता की कमी 
  • विचारों की स्वतंत्राता 
  • हीनता की भावना 
  • अधिक समय और धन खर्च

❇️ जनगणना :-

🔹 आबादी के प्रत्येक सदस्य को शामिल करने वाला एक व्यापक सर्वेक्षण ।

❇️ वंशावली :-

🔹 पीढ़िया में पारिवारिक समबंधों को रेखाकिंत करने वाला एक विस्तारित परिवारिक वृक्ष ।

❇️ नमूना :-

🔹 एक उप समूह या चयन ( आमतौर पर छोटा ) एक बड़ी आबादी से लिया जो उसका प्रतिनिधित्व करता है ।

❇️ नमूनाकरण त्रुटि :-

🔹 सर्वेक्षण के परिणामों में त्रुटि का अपरिहार्य अंतर क्योंकि यह पूरी आबादी के बजाय केवल एक छोटे से नमूने से जानकारी पर आधरित है ।

❇️ गैर – नमूना त्रृटि :-

🔹 तरीकों के प्रारुप या आवेदन में गलतियों के कारण सर्वेक्षण परिणामों में त्रुटियाँ ।

❇️ आबादी :-

🔹 संख्यिकीय अर्थ में बड़े निकाय ( व्यक्तियों गांवों , परिवारों , आदि ) जिनमें से नमूना तैयार किया जाता है ।

❇️ संभावना :-

🔹 किसी घटना की संभावना या आशा ( संख्यिकीय अर्थ में ) ।

❇️ प्रश्नावली :-

🔹 सर्वेक्षण या साक्षात्कार में पूछे जाने वाले प्रश्नों की एक लिखित सूची ।

❇️ सम्भावित्ता :-

🔹 यह सुनिश्चित करना कि एक घटना ( जैसे नमूना में किसी विशेष आइटम का चयन ) मौके पर पूरी तरह से निर्भर करता है और कुछ भी नहीं ।

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