उपभोक्ता अधिकार notes, Class 10 economics chapter 5 notes in hindi

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10 Class अर्थशास्त्र Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार Notes in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 10
Subjectअर्थशास्त्र Economics
Chapter Chapter 5
Chapter Nameउपभोक्ता अधिकार
CategoryClass 10 अर्थशास्त्र Notes in Hindi
MediumHindi

उपभोक्ता अधिकार notes, Class 10 economics chapter 5 notes in hindi. जिसमे उपभोक्ता , उत्पादक , उपभोक्ताओं के अधिकार , उपभोक्ताओं के शोषण के कारण , भारत में उपभोक्ता आंदोलन , उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 ( कोपरा ) , उपभोक्ताओं के कर्त्तव्य , राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस , उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया की सीमाएँ , भारत सरकार द्वारा उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 10 Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार Notes in hindi

📚 अध्याय = 5 📚
💠 उपभोक्ता अधिकार 💠

❇️ उपभोक्ता :-

🔹 बाजार से अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुएं खरीदने वाले लोग । 

❇️ उत्पादक :-

🔹 दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं का निर्माण या उत्पादन करने वाले लोग । 

❇️ उपभोक्ताओं के अधिकार :-

🔹 उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए कानून द्वारा दिए गए अधिकार जैसे :-

  • सुरक्षा का अधिकार
  • सूचना का अधिकार
  • चुनने का अधिकार 
  • क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार 
  • उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार 

❇️ उपभोक्ताओं के शोषण के कारण :-

  • सीमित सूचना 
  • सीमित आपूर्ति 
  • सीमित प्रतिस्पर्धा 
  • साक्षरता कम होना

❇️ भारत में उपभोक्ता आंदोलन :-

🔹 भारत के व्यापारियों के बीच मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन, आदि की परंपरा काफी पुरानी है । 

🔹 भारत में उपभोक्ता आंदोलन 1960 के दशक में शुरु हुए थे । 1970 के दशक तक इस तरह के आंदोलन केवल अखबारों में लेख लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित होते थे । लेकिन हाल के वर्षों में इस आंदोलन में गति आई है ।

🔹 लोग विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से इतने अधिक असंतुष्ट हो गये थे कि उनके पास आंदोलन करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था ।

🔹 एक लंबे संघर्ष के बाद सरकार ने भी उपभोक्ताओं की बात सुन ली । इसके परिणामस्वरूप सरकार ने 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट (कोपरा) को लागू किया ।

❇️ उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 ( कोपरा ) :-

🔹 उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया कानून । 

🔹 कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्रा स्थापित किया गया है । 

🔹 जिला स्तर पर 20 लाख राज्य स्तर पर 20 लाख से एक करोड तक तथा राष्ट्रीय स्तर की अदालतें 1 करोड से उपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती है ।

❇️ उपभोक्ताओं के कर्त्तव्य :-

कोई भी माल खरीदते समय उपभोक्ताओं को सामान की गुणवत्ता अवश्य देखनी चाहिए । 

जहां भी संभव हो गारंटी कार्ड अवश्य लेना चाहिए ।

खरीदे गए सामान व सेवा की रसीद अवश्यक लेनी चाहिए । 

अपनी वास्तविक समस्या की शिकायत अवश्यक करनी चाहिए । 

आई.एस.आई. तथा एगमार्क निशानों वाला सामान ही खरीदे । 

अपने अधिकारों की जानकारी अवश्यक होनी चाहिए ।

आवश्यकता पड़ने पर उन अधिकारों का प्रयोग भी करना चाहिए ।

❇️ राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस :-

🔹 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है । यह वही दिन है जब भारतीय संसद ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट लागू किया था । भारत उन गिने चुने देशों में से है जहाँ उपभोक्ता की सुनवाई के लिये अलग से कोर्ट हैं । 

🔹 आज देश में 2000 से अधिक उपभोक्ता संगठन हैं , जिनमें से केवल 50-60 ही अपने कार्यों के लिए पूर्ण संगठित और मान्यता प्राप्त हैं ।

🔹 लेकिन उपभोक्ता की सुनवाई की प्रक्रिया जटिल, महंगी और लंबी होती जा रही है । वकीलों की ऊँची फीस के कारण अक्सर उपभोक्ता मुकदमे लड़ने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है ।

❇️ उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया की सीमाएँ :-

उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल , खर्चीली और समय साध्य साबित हो रही है ।

कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पडता है । 

यह मुकदमें अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने और आगे बढ़ने आदि में काफी समय लेते है । 

अधिकांश खरीददारियों के समय रसीद नहीं दी जाती हैं । ऐसी स्थिति में प्रमाण जुटाना आसान नहीं होता है । 

 बाज़ार में अधिकांश खरीददारियाँ छोटे फुटकर दुकानों से होती है । 

श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कानूनों के लागू होने के बावजूद खास तौर से असंगठित क्षेत्रा में ये कमजोर है । 

इस प्रकार बाज़ारों के कार्य करने के लिए नियमों और विनियमों का प्रायः पालन नहीं होता ।

❇️ भारत सरकार द्वारा उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम :-

  • कानूनी कदम :- 1986 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 
  • प्रशासनिक कदम :- सार्वजनिक वितरण प्रणाली 
  • तकनीकी कदम :- वस्तुओं का मानकीकरण 
  • सूचना का अधिकार अधिनियम ( 2005 ) 
  • त्रि – स्तरीय उपभोक्ता अदालतों की स्थापना ।

❇️ उपभोक्ता संरक्षण परिषद् और उपभोक्ता अदालत में अंतर :-

🔶 उपभोक्ता संरक्षण परिषद् :- ये उपभोक्ता का मार्गदर्शन करती है कि कैसे उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज करायें । यह जनता को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करती है ।

🔶 उपभोक्ता अदालत :- लोग उपभोक्ता अदालत में न्याय पाने के लिए जाते है । दोषी को दण्ड दिया जाता है । उन पर जुर्माना लगाती है या सज़ा देती है ।

❇️ आर टी आई – सूचना का अधिकार :-

🔹सन् 2005 के अक्टूबर में भारत सरकार ने एक कानून लागू किया जो आर टी आई या सूचना पाने का अधिकार के नाम से जाना जाता है । जो अपने नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्यकलापों की सभी सूचनाएं पाने का अधिकार सुनिश्चित करता है ।

❇️ न्याय पाने के लिए उपभोक्ता को कहाँ जाना चाहिए ?

न्याय पाने के लिए उपभोक्ता को उपभोक्ता अदालत जाना चाहिए । 

कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया है । 

जिला स्तर का न्यायालय 20 लाख तक के दावों से संबंधित मुकदमों पर विचार करता है ।

राज्य स्तरीय अदालतें 20 लाख से एक करोड़ तक । 

राष्ट्रीय स्तर की अदालतें 1 करोड़ से ऊपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती हैं ।

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