प्राकृतिक वनस्पति Notes, कक्षा 11 भूगोल अध्याय 5 प्राकृतिक वनस्पति नोट्स

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11 Class Geography – II Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति Notes In Hindi Natural Vegetation

TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectGeography 2nd Book
Chapter Chapter 5
Chapter Nameप्राकृतिक वनस्पति
Natural Vegetation
CategoryClass 11 Geography Notes in Hindi
MediumHindi

प्राकृतिक वनस्पति Notes, कक्षा 11 भूगोल अध्याय 5 प्राकृतिक वनस्पति नोट्स जिसमे हम प्राकृतिक वनस्पति , वन क्षेत्र , सामाजिक वानिकी , वन संरक्षण आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 11 Geography – II Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति Natural Vegetation Notes In Hindi

📚 अध्याय = 5 📚
💠 प्राकृतिक वनस्पति 💠

❇️ परिचय :-

🔹 इस अध्याय में हम प्राकृतिक वनस्पतियों के बारे में पढ़ने वाले हैं ।

❇️ प्राकृतिक वनस्पति :-

🔹 प्राकृतिक वनस्पति में वे पौधे सम्मिलित किए जाते हैं जो मानव की प्रत्यक्ष या परोक्ष सहायता के बिना उगते हैं और जो अपने आकर , संरचना तथा अपनी आवश्यकताओं को प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार ढाल लेते हैं । 

❇️  प्राकृतिक वनस्पति के प्रकार :-

🔹 प्रमुख वनस्पति प्रकार तथा जलवायु परिस्थिति के आधार पर भारतीय वनों को पाँच वर्गों में रखा गया है ।

  • उष्ण कटिबंधीय सदाबाहर एवं अर्ध – सदाबहार वन ।
  • उष्ण कटिबंधीय पर्णपपती वन । 
  • उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन । 
  • पर्वतीय वन ।
  • वेलाचली व अनूप वन ।

❇️  शोलास वन :-

🔹 नीलगिरी अन्य मलाई और पालनी पहाड़ियों पर पाये जाने वाले शीतोष्ण कटिबंद को शोलास कहा जाता है ।

❇️ उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन :-

🔹 उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन आर्द्र तथा उष्ण भागों में मिलते हैं । इन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वर्षा 200 सेमी से अधिक और सापेक्ष आर्द्रता 70 प्रतिशत से अधिक होती है औसत तापमान 24 डिग्री से . होता है । ये वन भारत में पश्चिमी घाट , उत्तर पूर्वी पहाड़ियों एवं अंडमान व निकोबार में पाये जाते हैं । 

❇️  उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन :-

🔹 ये वे वन हैं जो 100 से 200 सेमी . वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं । इन वनों का विस्तार गंगा की मध्य एवं निचली घाटी अर्थात भाबर एवं तराई प्रदेश , पूर्वी मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ का उत्तरी भाग , झारखंड , पश्चिम बंगाल , उड़ीसा , आंध्र प्रदेश , महाराष्ट्र , कर्नाटक , तमिलनाडु तथा केरल के कुछ भागों में मिलते है । प्रमुख पेड़ साल , सागवान , शीशम , चंदन , आम आदि है ।

🔹 ये पेड़ ग्रीष्म ऋतु में अपने पत्ते गिरा देते हैं । इसलिए इन्हें पतझड़ वन भी कहा जाता है । उनकी ऊँचाई 30 से 45 मीटर तक होती है । ये इमारती लकड़ी प्रदान करते हैं । जिससे इनका आर्थिक महत्व अधिक है । ये वन हमारे कुल वन के क्षेत्र के 25 प्रतिशत क्षेत्र में फैले हुए है ।

❇️ उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन :-

🔹 जिन क्षेत्रों में 70 सेंटीमीटर से कम बारिश होती है वहां कटीले वन तथा झाड़ियां पाई जाती है । 

🔹 इस प्रकार की वनस्पति देश के उत्तर पश्चिम भाग में पाई जाती है जिनमें गुजरात राजस्थान छत्तीसगढ़ उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश तथा हरियाणा के कुछ क्षेत्र शामिल हैं । 

🔹 अकाशिया खजूर नागफनी यहां की प्रमुख पादप प्रजातियां है इन वनों के वृक्ष बिखरे हुए होते हैं इनकी जड़ें लंबी तथा जल की तलाश में फैली हुई होती है ।

🔹 पत्तियों का आकार काफी छोटा होता है । इन जंगलों में चूहे खरगोश लोमड़ी भेड़िए शेर सिंह जंगली गधा और घोड़े तथा ऊंट पाए जाते हैं ।

❇️ पर्णपाती वन :-

🔹 यह वन 100 से 200 सेमी . वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं । ये सहयाद्रि के पूर्वी ढाल , प्रायद्वीप के उत्तर – पूर्वी पठार , हिमालय की तलहटी के भाबर और तराई क्षेत्रों तथा उत्तर – पूर्वी भारत में पाये जाते हैं । 

🔹 ये वन ग्रीष्म ऋतु में अपने पत्ते गिरा देते हैं । ये कम घने होते हैं । वृक्षों की ऊँचाई अपेक्षाकृत कम होती है ।

🔹 इन वनों की लकड़ी कम कठोर होती है । ये वन लगभग पूरे भारत में पाये जाते है । 

🔹 इन वनों की लकड़ी बहुत उपयोगी होती है । 

❇️ अनूप वन :-

🔹 भारत के उन क्षेत्रों में जहाँ जमीन हमेशा जलयुक्त अथवा आर्द्र होती है वहाँ की प्राकृतिक वनस्पति को वेलांचली या अनूप वन कहते हैं । भारत में इस तरह की आठ आर्द्र भूमियाँ है जो अपने सघन वनों एवं जैव विविधता के लिए विख्यात हैं ।

🔹 भारत में प0 बंगाल का सुंदर वन डेल्टा अपने मैंग्रोव वनों के लिए विश्व विख्यात है । इन वनों में टाइगर से लेकर सरीसृप तक बड़े – छोटे जानवर पाये जाते हैं । 

🔹 पर्यावरण संरक्षण , जैवविविधता एवं प्राकृतिक वनस्पतियों के संरक्षण के लिये इन वनों के अस्तित्व की सुरक्षा की आवश्यकता है ।

❇️  वन क्षेत्र :-

🔹 ये वे क्षेत्र हैं जहां राजस्व विभाग के अनुसार वन होने चाहिये । इसके अन्तर्गत एक निश्चित क्षेत्र को वन क्षेत्र के रुप में अधिसूचित किया जाता है । 

❇️ वास्तविक वन आवरण :-

🔹  इसके अन्तर्गत वह क्षेत्र आता है जो वास्तव में प्राकृतिक वनस्पतियों के झुरमुट से ढका होता है । भारत में सन् 2001 में वास्तविक वन आवरण केवल 20.55 प्रतिशत था । 

❇️  सामाजिक वानिकी का अर्थ :-

🔹 सामाजिक वानिकी का अर्थ है पर्यावरणीय , सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद के उद्देश्य से वनों के प्रबंधन में समाज की भूमिका तय करना एवं ऊसर भूमि पर वन लगाना

❇️ सामाजिक वानिकी :-

🔹 सामाजिक वानिकी शब्दावली का प्रयोग सबसे पहले राष्ट्रीय कृषि आयोग ने ( 1976-79 ई 0 ) में किया था ।

❇️ सामाजिक वानिकी के उद्देश्य :-

  • जनसंख्या के लिए जलावन लकड़ी की उपलब्धता । 
  • छोटी इमारती लकड़ी ।
  • फलों का उत्पादन बढ़ाना । 
  • छोटे – छोटे वन उत्पादों की आपूर्ति करना ।

❇️  सामाजिक वानिकी के अंग :-

🔹 इसके तीन अंग है : 

🔶 शहरी वानिकी :- शहरों में निजी व सार्वजनिक भूमि जैसे -हरित पट्टी , पार्क , सड़को व रेलमार्गो व औद्योगिक व व्यापारिक स्थलों के साथ वृक्ष लगाना और उनका प्रबंधन करना ।

🔶 ग्रामीण वानिकी :- इसके अंतर्गत कृषि वानिकी और समुदाय कृषि वानिकी को बढ़ावा देना । 

🔶 फार्म वानिकी :- इसके अंतर्गत कृषि योग्य तथा बंजर भूमि पर पेड़ लगाना तथा फसलें उगाना जिससे खाद्यान्न , चारा , ईंधन व फल – सब्जियाँ मिल सकें ।

❇️  वन्य प्राणियों की संख्या में कमी :-

🔹 औद्योगिकी और तकनीकी विकास के कारण वनों का दोहन ।

🔹 खेती , मानवीय बस्ती , सड़कों , खदानों , जलाशयों आदि के लिए जमीन से वनों की सफाई ।

🔹 स्थानीय लोगों के चारे , ईंधन और इमारती लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई ।

🔹 पालतू पशुओं के लिए नए चरागाह की खोज में मानव ने वन्य जीवों और उनके आवासों को नष्ट कर दिया ।

🔹 रजवाड़ों तथा संधांत वर्ग ने शिकार क्रीड़ा बनाया और एक ही बार में सैंकड़ों वन्य जीवों को शिकार बनाया / व्यापारिक महत्व के लिए अभी भी मारा जा रहा है ।

🔹 जंगलो में आग लगने से ।

❇️  भारत में वन्य प्राणी संरक्षण :-

🔶 वन्य प्राणी अधिनियम :- 

🔹 भारत में वन्य प्राणी अधिनियम 1972 ई . में पास हुआ । 

❇️ वन्य प्राणी अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य :-

🔸 वन्य प्राणी अधिनियम के दो प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं :-

🔹  इस अधिनियम के अनुसार कुछ सूचीबद्ध संकटापन्न प्रजातियों को सुरक्षा प्रदान करना । 

🔹 सरकार द्वारा निर्धारित नेशनल पार्कों , पशुविहारों जैसे संरक्षित क्षेत्रों को कानूनी सहायता प्रदान करना ।

❇️ वन संरक्षण नीति :-

🔹 स्वतंत्रता के पश्चात भारत में पहली बार वन नीति 1952 में लागू की गई थी । सन् 1988 में नई राष्ट्रीय वन नीति वनों के क्षेत्रफल में हो रही कमी को रोकने के लिए बनाई गई थी ।

❇️ वन संरक्षण नीति के प्रमुख उद्देश्य :-

🔹 देश के 33 प्रतिशत भाग पर वन लगाना । 

🔹 पर्यावरण संतुलन बनाए रखना तथा परिस्थितिक असंतुलित क्षेत्रों में वन लगाना । 

🔹 देश की प्राकृतिक धरोहर , जैव – विविधता तथा आनुवांशिक मूल का संरक्षण ।

🔹 मृदा अपरदन और मरुस्थलीकरण को रोकना तथा बाढ़ व सूखा को नियंत्रित करना । 

🔹 निम्नीकृत भूमि पर सामाजिक वानिकी एवं वनरोपण द्वारा वन आवरण का विस्तार करना । 

🔹 वनों की उत्पादकता बढ़ाकर वनों पर निर्भर ग्रामीण जनजातियों को इमारती लकड़ी , ईधन , चारा और भोजन उपलब्ध करवाना और लकड़ी के स्थान पर अन्य वस्तुओं को प्रयोग में लाना । 

🔹 पेड़ लगाने को बढ़ावा देने के लिए तथा पेड़ों की कटाई रोकने के लिए जन – आन्दोलन चलाना , जिसमें महिलाएं भी शामिल हों ताकि वनों पर दबाव कम हो । 

🔹 वन और वन्य जीव संरक्षण में लोगों की भागीदारी ।

❇️  जीवन मंडल निचय :-

🔹 जीवमंडल निचय ( आरक्षित क्षेत्र ) विशेष प्रकार के भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तंत्र है , जिन्हें यूनेस्को ने मानव और जीवमंडल कार्यक्रम के अन्तर्गत मान्यता प्रदान की है ।

❇️ जीव मंडल निचय के मुख्य उद्देश्य :-

🔹 जीव मंडल निचय के तीन मुख्य उद्देश्य है 

  • संरक्षण 
  • विकास
  • व्यवस्था

🔹  इसमें क्षेत्र को प्राकृतिक अवस्था में रखा जाता है । सभी प्रकार की वनस्पति और वन जीवों का संरक्षण किया जाता है । उदाहरणतया नंदा देवी , नीलगिरी , सुन्दर वन आदि ।

❇️  भारत के वे जीव मंडल निचय जिनके नाम यूनेस्को के जीव मंडल निचय विश्व नेटवर्क पर मान्यता प्राप्त हैं :-

🔹 भारत के 14 जीव मंडल निचय हैं , जिनमें से 4 जीव मंडल निचय

  • नीलगिरी 
  • नंदादेवी
  • सुंदर वन 
  • मन्नार की खाड़ी यूनेस्को द्वारा जीव मंडल निचय विश्व नेटवर्क पर मान्यता प्राप्त हैं ।

❇️  नीलगिरी जीवमंडल निचय :-

🔹 स्थापना :- 1986 ( भारत का पहला जीवमंडल निचय )

🔹 इसमें वायनाड वन्य जीवन सुरक्षित क्षेत्र , नगरहोल , बांदीपुर , मदुमलाई और निलंबूर का सारा वन से ढका ढाल , ऊपरी नीलगिरी पठार , साइलेंट वैली और सिदुवानी पहाड़ियां शामिल हैं ।

🔹 कुल क्षेत्र :- 5,520 वर्ग किलोमीटर 

🔹 प्राकृतिक वनस्पति :- शुष्क / आद्र पर्णपाती वन , अर्ध सदाबहार और आद्र सदाबहार वन , सदाबहार शोलास , घांस के मैदान और दलदल।

🔹 संकटापन्न प्राणी :- नीलगिरी ताहर / शेर जैसी दुम वाला बन्दर।

🔹 अन्य प्राणी :- हाथी , बाघ गौर , संभार , चीतल 

🔹 इसकी स्थलाकृति उबड़ खाबड़ है ।

🔹 पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले 80 % फूलदार पौधे इसी निचय में मिलते हैं ।

❇️  नंदा देवी जीवमंडल निचय :-

🔹  स्थान :- उत्तराखंड ( चमोली , अल्मोड़ा , पिथोरागढ़ बागेश्वर ) 

🔹 शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं ।

🔹 प्रजातियाँ :- सिल्वर वुड , लैटिफोली – ओरचिड और रोडोडेड्रान ।

🔹 वन्य जीव :- हिम तेंदुआ , काला भालू , भूरा भालू , कस्तूरी मृग , हिम – मुर्गा सुनहरा बाज और काला बाज।

❇️  सुंदरवन जीवमंडल निचय :-

🔹 स्थान :- पश्चिम बंगाल , गंगा नदी के दलदली डेल्टा पर 

🔹 क्षेत्र :- 9,630 वर्ग किलोमीटर 

🔹 वन :- मैन्ग्रोव , अनूप , वनाच्छादित द्वीप 

🔹 लगभग 200 रॉयल बंगाल टाइगर

🔹 मैन्ग्रोव वनों में 170 से ज्यादा पक्षी प्रजातियाँ

🔹 स्वयं को लवणीय और ताजे जल पर्यावरण के अनुसार ढालते हुए बाघ पानी में तैरते हैं और चीतल , भौंकने वाले मृग , जंगली सूअर और यहाँ तक की लंगूरों जैसे दुर्लभ शिकार भी कर लेते हैं । 

🔹यहाँ के मैन्ग्रोव वनों में हेरिशिएरा फोमिज नामक इमारती लकड़ी पाई जाती है जो की बहुत बेशकीमती है।

❇️ फार्म वानिकी :-

🔹 इसमें किसान अपने खेतों में व्यापारिक महत्व वाले अथवा दूसरे वृक्ष लगाते है ।

🔹 ( i ) वन – विभाग इसके लिए छोटे और मध्यम किसानों को निःशुल्क पौधे उपलब्ध कराता है ।

🔹 ( ii ) खेतों की मेड़े चरागाह , घास – स्थल घर के पास पड़ी खाली जमीन और पशुओं के बाड़ों में पेड़ लगाए जाते हैं ।

❇️ प्रोजेक्ट टाईगर तथा प्रोजेक्ट एलिफेंट :-

🔹 प्रोजेक्ट टाईगर ( 1973 ई . ) तथा प्रोजेक्ट एलिफेंट ( 1992 ई . ) में इन प्रजातियों के संरक्षण और उनके प्राकृतिक आवास को बचाने के लिए आरंभ किए गए थे । इनका मुख्य उद्देश्य भारत में बाघों व हाथियों की जनसंख्या के स्तर को बनाए रखना है ।

❇️ राष्ट्रीय उद्यान :-

🔹 सुरक्षा की दृष्टि से राष्ट्रीय उद्यानों को उच्च स्तर प्रदान किया जाता है । इसकी सीमा में पशुचारण की मनाही है । साथ ही इसकी सीमा में किसी भी व्यक्ति को भूमि अधिकार नहीं मिलता ।

❇️ अभ्यारण्य :-

🔹 इसमें कम सुरक्षा का प्रावधान है । इसमें वन जीवों की सुरक्षा के साथ – साथ नियंत्रित मानवीय गातिविधियों की अनुमति होती है । इसमें किसी अच्छे कार्य के लिए भूमि का उपयोग हो सकता है ।

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