तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य notes, Class 11 history chapter 3 notes in hindi

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11 Class History Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य Notes In Hindi An Empire Across Three Continents

TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectHistory
Chapter Chapter 3
Chapter Nameतीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य
An Empire Across Three Continents 
CategoryClass 11 History Notes in Hindi
MediumHindi

तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य notes, Class 11 history chapter 3 notes in hindi जिसमे हम रोम साम्राज्य , वर्ष वृतांत  , पैपाइरस , तीसरी शताब्दी का संकट , दास प्रजजन आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 11 History Chapter 3 लेखन कला और शहरी जीवन An Empire Across Three Continents Notes In Hindi

📚 अध्याय = 3 📚
💠 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य 💠

❇️ रोम साम्राज्य :-

🔹 आज का अधिकांश यूरोप पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका का हिस्सा शामिल था ।

❇️ रोमन साम्राज्य का फैलाव तीन महाद्वीपों में :-

  • यूरोप 
  • पश्चिमी एशिया 
  • उत्तरी अफ्रीका

❇️ रोमन साम्राज्य की जानकारी के स्रोत :-

🔹 सामग्री जिसे तीन वर्गों में विभाजित किया गया है :- 

🔶 पाठ्य सामग्री :-

  • वर्ष वृत्तान्त 
  • पत्र 
  • व्याख्यान 
  • प्रवचन 
  • कानून

🔶 प्रलेख या दस्तावेज :-

  • पैपाइरस पर लिखे गए

🔶 भौतिक अवशेष :-

  • इमारतें 
  • बर्तन 
  • सिक्के

❇️ वर्ष वृतांत :-

🔹 समकालीन व्यक्तियों द्वारा प्रतिवर्ष लिखे जाने वाले इतिहास के ब्यौरे को ‘ वर्ष – वृतांत कहा जाता है ।

❇️ पैपाइरस :-

🔹 पैपाइरस एक सरकंडे जैसा पौधा था , जो नील नदी के किनारे उगा करता था , इस से लेखन सामग्री तैयार की जाती थी ।

❇️ रोमन साम्राज्य का आरंभिक काल :-

🔹 रोम साम्राज्य में 509 ई . पू . से 27 ई . पू . तक गणतंत्र शासन व्यवस्था चली ।

🔹 प्रथम सम्राट ऑगस्टस – 27 ई . पू . में ऑगस्टस ने गणतंत्र शासन व्यवस्था का तख्ता पलट दिया और स्वयं सम्राट बन गया , उसके राज्य को प्रिंसिपेट कहा गया । वह एक प्रमुख नागरिक के रूप में था , निरंकुश शासक नहीं था ।

🔹 रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास के तीन प्रमुख खिलाड़ी – सम्राट , अभिजात वर्ग और सेना ।

🔹 प्रांतों की स्थापना ।

🔹 सार्वजनिक स्नानगृह ।

❇️ मध्य का काल ( तीसरी शताब्दी का संकट )

🔹 प्रथम और द्वितीय शताब्दियां – शांति , समृद्धि और आर्थिक विस्तार की प्रतीक थी ।

🔹 तीसरी शताब्दी में तनाव उभरा । जब ईरान के ससानी वंश के बार – बार आक्रमण हुए । इसी बीच जर्मन मूल की जनजातियों ( फ्रेंक , एलमन्नाइ और गोथ ) ने रोमन साम्राज्य के विभिन्न प्रांतों पर कब्जा कर लिया जिससे साम्राज्य में अस्थिरता आई ।

🔹 47 वर्षों में 25 सम्राट हुए । इसे तीसरी शताब्दी का संकट कहा जाता है ।

❇️ परवर्ती पुरा काल :-

🔹 चौथी से सातवीं शताब्दी

🔹 डायोक्लीशियन का शासन 284 – 305 ई .

🔹 कॉन्स्टैनटाइन शासक

  • इसाई धर्म राज धर्म
  • सॉलिडस सोने का सिक्का
  • कुस्तुनतुनियाँ राजधानी
  • व्यापार विकास
  • स्थापत्य कला

🔹  जस्टीनियन शासक

❇️ रोमन साम्राज्य में लिंग , साक्षरता , संस्कृति :-

🔹 एकल परिवार का समाज में चलन ।

🔹 महिलाओं की अच्छी स्थिति , संपत्ति में स्वामित्व व संचालन में कानूनी अधिकार होना ।

🔹 कामचलाऊ साक्षरता होना ।

🔹 सांस्कृतिक विविधता होना ।

❇️ रोमन साम्राज्य का विस्तार :-

🔹 रोम साम्राज्य का आर्थिक आधारभूत ढाँचा काफी मजबूत था ।

🔹 बंदरगाह , खानें , खदानें , ईंट के भट्टे जैतून का तेल के कारखाने अधिक मात्रा में व्याप्त होना ।

🔹 असाधारण उर्वरता के क्षेत्र होना ।

🔹 सुगठित वाणिज्यिक व बैंकिंग व्यवस्था तथा धन का व्यापक रूप से प्रयोग ।

🔹 तरल पदार्थों की दुलाई जिन कन्टेनरों में की जाती थी उन्हें ‘ एम्फोरा कहा जाता था ।

🔹 स्पेन में उत्पादित जैतून का तेल ‘ ड्रेसल – 20 ‘ नामक कन्टेनरों में ले जाया जाता था ।

❇️ रोमन साम्राज्य में श्रमिकों पर नियंत्रण :-

🔹 दासता की मजबूत जड़ें पूरे रोमन समाज मे फैली हुई थी ।

🔹 इटली में 75 लाख की आबादी में से 30 लाख दासो की संख्या थी ।

🔹 दासों को पूंजी निवेश का दर्जा प्राप्त था।

🔹 ऊँच वर्ग के लोगों द्वारा श्रमिकों एवं दासों से क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता था ।

🔹 ग्रामीण लोग ऋणग्रसता से जूझ रहे थे |

🔹 दासों के प्रति व्यवहार सहानुभूति पर नहीं बल्कि हिसाब – किताब पर आधारित था ।

❇️ रोमन साम्राज्य में सामाजिक श्रेणियाँ प्रारंभिक राज्य :-

🔹 सैनेटर , अश्वारोही , जनता का सम्मानित वर्ग , फूहड़ निम्नतर वर्ग , दास ।

🔹 परवर्ती काल , अभिजात वर्ग , मध्यम वर्ग और निम्नतर वर्ग ।

🔹 भ्रष्टाचार और लूट – खसोट ।

❇️ रोमन साम्राज्य में पुराकाल की विशेषतायें :-

🔹 रोमवासी बहुदेववादी थे । लोग जूपिटर , जूनो , मिनर्वा तथा मॉर्स जैसे देवी – देवताओं की पूजा करते थे ।

🔹 यहूदी धर्म रोमन साम्राज्य का एक अन्य बड़ा धर्म था ।

🔹 सम्राट डायोक्लीशियन द्वारा सीमाओं पर किले बनवाना ।

🔹 सम्राट कॉन्स्टैनटाइन ने ईसाई धर्म को राजधर्म बनाने का निर्णय लिया ।

🔹 साम्राज्य के पश्चिमी भाग में उत्तर से आने वाले समूहों – गोथ , बैंडल तथा लोम्बार्ड आदि ने बड़े प्रांतों पर कब्जा करके रोमोत्तर राज्य स्थापित कर लिए ।

🔹 प्रांतों का पुनर्गठन करना ।

🔹 सैनिक और असैनिक कार्यों को अलग करना ।

🔹 इस्लाम का विस्तार – ‘ प्राचीन विश्व इतिहास की सबसे बड़ी राजनीतिक क्रान्ति ।

❇️ रोमन साम्राज्य में सैनिक प्रबंध की विशेषताएं :-

  • रोम सेना राजनीति की महत्वपूर्ण संस्था
  • व्यावसायिक सेना
  • सेवा करने की अवधि निश्चित होना
  • सबसे बड़ा एकल निकाय
  • सैनेट में सेना का डर
  • मतभेद होने पर गृहयुद्ध
  • आंदोलन व विद्रोह
  • शासक अथवा सम्राटों का भाग्य निर्धारित करने की शक्ति ।

❇️ दास प्रजजन :-

🔹 गुलामों की संख्या बढ़ाने की एक ऐसी प्रथा थी जिसके अंतर्गत दासियों और उनके साथ मर्दो को अधिकाधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था | उनके बच्चे भी आगे चलकर दास ही बनते थे ।

❇️ दास श्रमिकों के साथ समस्याएँ :-

🔹 रोम में सरकारी निर्माण कार्यों पर , स्पष्ट रूप से मुक्त श्रमिकों का व्यापक प्रयोग किया जाता था क्योंकि दास – श्रम का बहुतायत प्रयोग बहुत मँहगा पड़ता था ।

🔹 भाड़े के मजदूरों के विपरीत , गुलाम श्रमिकों को वर्ष भर रखने केए भोजन देना पड़ता था और उनके अन्य खर्चे भी उठाने पड़ते थे , जिससे इन गुलाम श्रमिकों को रखने की लागत बढ़ जाती थी ।

🔹 वेतनभोगी मजदुर सस्ते तो पड़ते ही थे , उन्हें आसानी से छोड़ा और रखा जा सकता था ।

❇️ रोमन साम्राज्य में श्रम – प्रबंधन की विशेषताएँ :-

🔹 दास श्रम महंगा होने के कारण दासों को मुक्त किया जाने लगा ।

🔹 अब इन दासों या मुक्त व्यक्तियों को व्यापार प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया जाने लगा ।

🔹 मालिक गुलामों अथवा मुक्त हुए गुलामों को अपनी ओर से व्यापार चलाने के पूँजी यहाँ तक की पूरा कारोबार सौप देते थे ।

🔹 मुक्त तथा दास , दोनों प्रकार के श्रमिकों के लिए निरीक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू था । निरीक्षण को सरल बनाने के लिए , कामगारों को कभी – कभी छोटे दलों में विभाजित कर दिया जाता था ।

🔹 श्रमिकों के लिए छोटे – छोटे समूह बनाये गए थे जिससे ये पता लग सके कि कौन काम कर रहा है और काम चोरी ।

❇️ अश्वारोही ( इक्वाइट्स ) :-

🔹 अश्वारोही ( इक्वाइट्स ) या नाइट वर्ग परंपरागत रूप से दूसरा सबसे अधिक शक्तिशाली और धनवान समूह था । मूल रूप से वे ऐसे परिवार थे जिनकी संपत्ति उन्हें घुड़सेना में भर्ती होने की औपचारिक योग्यता प्रदान करती थी , इसीलिए इन्हें इक्वाइट्स कहा जाता था ।

❇️ अश्वारोही ( इक्वाइट्स ) या नाइट वर्ग की विशेषताएँ :-

🔹 सैनेटरों की तरह अधिकतर नाइट जमींदार होते थे ।

🔹 ये सैनेटरों के विपरीत उनमें से कई लोग जहाजों के मालिक , व्यापारी और साहूकार ( बैंकर ) भी होते थे , यानी वे व्यापारिक क्रियाकलापों में संलग्न रहते थे ।

🔹 इन्हें जनता का सम्माननीय वर्ग माना जाता था , जिनका संबंध महान घरानों से था ।

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