भू संसाधन तथा कृषि notes, Class 12 geography book 2 chapter 5 notes in hindi

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12 Class Geography – II Notes In Hindi Chapter 5 भू संसाधन तथा कृषि Land Resource and Agriculture

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectGeography 2nd Book
Chapter Chapter 5
Chapter Nameभू संसाधन तथा कृषि
CategoryClass 12 Geography Notes in Hindi
MediumHindi

भू संसाधन तथा कृषि notes, Class 12 geography book 2 chapter 5 notes in hindi इस अध्याय मे हम भू संसाधन तथा कृषि पाठ के बारे में पड़ेगे । जिसमे भू – उपयोग वर्गीकरण , साझा संपत्ति संसाधन , भारत में कृषि , हरित क्रान्ति , आदि जैसे विषयो के बारे में विस्तार से जानेंगे ।

❇️ भू – उपयोग वर्गीकरण :-

🔹 भूराजस्व विभाग भू – उपयोग संबंधी अभिलेख रखता है । भू – उपयोग संवर्गों का योग कुल प्रतिवेदन ( रिपोर्टिंग ) क्षेत्र के बराबर होता है जो कि भौगोलिक क्षेत्र से भिन्न है । भारत की प्रशासकीय इकाइयों के भौगोलिक क्षेत्र की सही जानकारी देने का दायित्व भारतीय सर्वेक्षण विभाग पर है ।

❇️ भूराजस्व अभिलेख द्वारा अपनाया गया भू – उपयोग वर्गीकरण निम्न प्रकार है ❇️

❇️ 1. वनों के अधीन क्षेत्र :-

🔹 ये क्षेत्र वनों के अधीन होते हैं , सरकार द्वारा वन क्षेत्रों का सीमांकन इस प्रकार किया जाता है जहाँ वन विकसित हो सकते हैं ।

❇️ 2. गैर कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि :-

🔹 इस वर्ग की भूमि में भूमि का उपयोग सड़कों , नहरों , उद्योगों , दुकानों आदि के लिए किया जाता है ।

❇️ 3. बंजर एवं व्यर्थ भूमि :-

🔹 वह भूमि जो भौतिक दृष्टि से कृषि के अयोग्य है जैसे वन , ऊबड़ – खाबड़ भूमि एंव पहाड़ी भूमि , रेगिस्तान एंव उपरदित खड्ड भूमि आदि । 

❇️ 4. स्थायी चारागाह क्षेत्र :-

🔹 इस प्रकार की अधिकतर भूमि पर ग्राम पंचायत या सरकार का स्वामित्व होता है । इस भूमि का केवल एक छोटा सा भाग निजी स्वामित्व में होता है ।

❇️ 5. कृषि योग्य व्यर्थ भूमि :-

🔹 यह वह भूमि है जो पिछले पाँच वर्षों या उससे अधिक समय तक व्यर्थ पड़ी है । इस भूमि को कृषि तकनीकी के जरिये कृषि क्षेत्र के योग्य बनाया जा सकता है ।

❇️ 6. वर्तमान परती भूमि :-

🔹 यह वह भूमि जिस पर एक वर्ष या उससे कम समय के लिये खेती नहीं की जाती । यह भूमि की उर्वरत बढ़ाने का प्राकृतिक तरीका होता है ।

❇️ 7. पुरातन परती भूमि :-

🔹 वह भूमि जिसे एक वर्ष से अधिक किन्तु पाँच वर्ष से कम के लिये खेती हेतु प्रयोग नहीं किया जाता ।

❇️ 8. निबल बोया क्षेत्र :-

🔹 वह भूमि जिस पर फसलें उगाई एवं काटी जाती हैं , वह निवल बोया क्षेत्र कहलाता है |

❇️ 9. विविध तरु फसलों एवं उपवनों के अंतर्गत क्षेत्र :-

🔹इस वर्ग में वह भूमि शामिल है , जिस पर उद्यान एवं फलदार वृक्ष हैं , इस प्रकार की ज्यादतर भूमि निजी स्वामित्व में होती है ।

❇️ शुद्ध बुआई क्षेत्र :-

🔹 किसी कृषि वर्ष में बोया गया कुल फसल क्षेत्र शुद्ध बुआई क्षेत्र कहलाता है ।

❇️ सकल बोया गया क्षेत्र :-

🔹 जोते एव बोये गये क्षेत्र में शुद्ध बुआई क्षेत्र तथा शुद्ध क्षेत्र का वह भाग शामिल किया जाता है जिसका उपयोग एक से अधिक बार किया गया हो ।

❇️ साझा संपत्ति संसाधन :-

🔹  साझा संपत्ति संसाधन पर राज्यों का स्वामित्व होता है । यह संसाधन पशुओं के लिये चारा , घरेलू उपयोग हेतु ईंधन , लकड़ी तथा वन उत्पाद उपलब्ध कराते है ।

❇️ साझा संपत्ति संसाधन का विशेष महत्व :-

🔹  ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन छोटे कषकों तथा अन्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के व्यक्तियों के जीवन यापन में इनका महत्व है क्योंकि भूमिहीन होने के कारण पशुपालन से प्राप्त आजीविका पर निर्भर है । 

🔹  ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की जिम्मेदारी चारा व ईंधन एकत्रित करने की होती है । 

🔹 साझा संपत्ति संसाधन वन उत्पाद जैसे – फल , रेशे , गिरी , औषधीय पौधे आदि उपलब्ध कराती है । 

❇️ साझा संपत्ति संसाधन की प्रमुख विशेषताएं :-

🔹 पशुओं के लिए चारा , घरेलू उपयोग हेतु ईंधन , लकड़ी तथा साथ ही अन्य वन उत्पाद जैसे फल , रेशे , गिरी , औषधीय पौधे आदि साझा संपति संसाधन में आते हैं ।

🔹 आर्थिक रूप में कमजोर वर्ग के व्यक्तियों के जीवन – यापन में इन भूमियों का विशेष महत्व है क्योंकि इनमें से अधिकतर भूमिहीन होने के कारण पशुपालन से प्राप्त अजीविका पर निर्भर हैं । 

🔹 महिलाओं के लिए भी इनका विशेष महत्व है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में चारा व ईंधन लकड़ी के एकत्रीकरण की जिम्मदारी उन्हीं की होती है । 

🔹 सामुदायिक वन , चारागाह , ग्रामीण जलीय क्षेत्र तथा अन्य सार्वजनिक स्थान साझा संपत्ति संसाधन के उदाहरण है ।

❇️ भारत में कृषि ऋतु :-

🔶 खरीफ ऋतु :- यह ऋतु जून माह में प्रारम्भ होकर सितम्बर माह तक रहती है । इस ऋतु में चावल , कपास , जूट , ज्वार बाजरा व अरहर आदि की कृषि की जाती है । खरीफ की फसल दक्षिण पश्चिम मानसून के साथ सम्बद्ध है । दक्षिण पश्चिम मानसून के साथ चावल की फसल शुरू होती है ।

🔶 रबी ऋत :- रबी की ऋतु अक्टूबर – नवम्बर में शरद ऋतु से प्रारम्भ होती है । गेहूँ , चना , तोराई , सरसों , जौ आदि फसलों की कृषि इसके अन्तर्गत की जाती है ।

🔶 जायद ऋतु :- जायद एक अल्पकालिक ग्रीष्मकालीन फसल ऋतु हैं जो रबी की कटाई के बाद प्रारम्भ होती है । इस ऋतु में तरबूज , खीरा , सब्जियां व चारे की फसलों की कृषि होती है ।

❇️ भारत में कृषि के प्रकार :-

  • 1 ) सिंचित कृषि 
  • 2 ) वर्षा निर्भर कृषि

❇️ सिंचित कृषि :-

🔹 वर्षा के अतिरिक्त जल की कमी को सिंचाई द्वारा पूरा किया जाता है । इसका उद्देश्य अधिकतम क्षेत्र को पर्याप्त आर्द्रता उपलब्ध कराना है । 

🔹 फसलों को पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध कराकर अधिकतम उत्पादकता प्राप्त कराना तथा उत्पादन योग्य क्षेत्र को बढ़ाना ।

❇️ वर्षा निर्भर कृषि :-

🔹 यह पूर्णतया वर्षा पर निर्भर होती है ।

🔹  उपलब्ध आर्द्रता की मात्रा के आधार पर इसे शुष्क भूमि कृषि व आर्द्र भूमि कृषि में बाँटते हैं ।

❇️ भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याएं :-

🔶 छोटी कृषि जोत :- बढ़ती जनसंख्या के कारण भूमि जोतों का आकार लगातार सिकुड़ रहा है । लगभग 60 प्रतिशत किसानों की जोतो का आकार तो एक हेक्टेयर से भी कम है और अगली पीढी के लिए इसके और भी हिस्से हो जाते हैं जो कि आर्थिक दृष्टि से लाभकारी नहीं है । ऐसी कृषि जोतो पर केवल निर्वाह कृषि की जा सकती है । 

🔶 कृषि योग्य भूमि का निम्नीकरण :- कृषि योग्य भूमि की निम्नीकरण कृषि की एक अन्य गंभीर समस्या है इससे लगातार भूमि का उपजाऊपन कम हो जाता है । यह समस्या उन क्षेत्रों में ज्यादा गंभीर है जहां अधिक सिंचाई की जाती है । कृषि भूमि का एक बहुत बड़ा भाग लवणता , क्षारता व जलाक्रांतता के कारण बंजर हो चुका है । कीटनाशक रसायनों के कारण भी उर्वरता शक्ति कम हो जाती है ।

🔶 अल्प बेरोजगारी :- भारतीय कृषि में विशेषकर असिंचित क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अल्प बेरोजगारी पाई जाती है । फसल ऋतु में वर्ष भर रोजगार उपलब्ध नहीं होता क्योंकि कृषि कार्य लगातार गहन श्रम वाले नहीं है । इसी को अल्प बेरोजगारी कहते हैं । 

❇️ भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व :-

  • देश की कुल श्रमिक शक्ति का 80 प्रतिशत भाग कृषि का है । 
  • देश के कुल राष्ट्रीय उत्पाद में 26 प्रतिशत योगदान कृषि का है ।
  • कृषि से कई कृषि प्रधान उद्योगों को कच्चा माल मिलता है जैसे कपड़ा उद्योग , जूट उद्योग , चीनी उद्योग । 
  • कृषि से ही पशुओं को चारा प्राप्त होता है । 
  • कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारशिला ही नहीं बल्कि जीवन यापन की एक विधि है ।

❇️ हरित क्रान्ति :-

🔹 1960 – 70 के दशक में खाद्यान्नों विशेषरूप से गेहूँ के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि की गयी । इसे ही हरित क्रान्ति कहा जाता है । खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि के लिये निम्न उपायों को अपनाया गया । 

❇️ हरित क्रान्ति की सफलता के प्रमुख कारण :-

  • उच्च उत्पादकता वाले बीज ।
  • रासायनिक उर्वरकों का उपयोग । 
  • सिंचाई की सुविधा । 
  • पंजाब , हरियाणा एवं प . उत्तर प्रदेश में हरित क्रान्ति के कारण गेहूँ के उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि हुई ।

❇️ हरित क्रान्ति की विशेषताएं :-

  • उन्नत किस्म के बीज 
  • सिंचाई की सुविधा 
  • रासायनिक उर्वरक
  • कीटनाशक दवाईयां 
  • कृषि मशीनें कृषि 

❇️ भारतीय कृषि के विकास में ‘ हरित क्रांति की भूमिका :-

🔹  भारत में 1960 के दशक में खाद्यान फसलों के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए अधिक उत्पादन देने वाली नई किस्मों के बीज किसानों को उपलब्ध कराये गये । किसानों को अन्य कृषि निवेश भी उपलब्ध कराये गए . जिसे पैकेज प्रौद्योगिकी के नाम से जाना जाता है । जिसके फलस्वरूप पंजाब , हरियाणा , उत्तर प्रदेश , आंध्र प्रदेश , गुजरात , राज्यों में खाद्यान्नों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई । इसे हरित क्रान्ति के नाम से जाना जाता है । 

❇️ भूमि संसाधनों के निम्नीकरण के कारण :-

  • नहर द्वारा अत्यधिक सिंचाई – जिसके कारण लवणता एंव क्षारीयता में वृद्धि होती है ।
  • कीटनाशकों का अत्याधिक प्रयोग ।
  • जलाक्रांतता ( पानी का भराव होना ) । 
  • फसलों को हेर – फेर करके न बोना , दलहन फसलों को कम बोना । 
  • सिंचाई पर अत्याधिक निर्भर फसलों को उगाना ।
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