Class 12 geography chapter 4 notes in hindi, मानव विकास Notes

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12 Class Geography Chapter 4 मानव विकास Notes In Hindi Human Development 

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectGeography
Chapter Chapter 4
Chapter Nameमानव विकास
CategoryClass 12 Geography Notes in Hindi
MediumHindi

Class 12 geography chapter 4 notes in hindi, मानव विकास Notes इस अध्याय मे हम विकास , वृद्धि , मानव विकास , मानव विकास सूचकांक , जैसे विषयो के बारे में विस्तार से जानेंगे ।

❇️ सार्थक जीवन :-

🔹 सार्थक जीवन केवल दीर्घ नहीं होता । जीवन का कोई उद्देश्य होना जरूरी है । अर्थात् लोग स्वस्थ हो विवेक पूर्वक सोचकर समाज में प्रतिभागिता करें व उद्देश्यों को पूरा करने में स्वतन्त्र हों ।

❇️ विकास :-

🔹 गुणात्मक परिवर्तनों को विकास कहा जाता है विकल्पों में वृद्धि होना वर्तमान स्थिति में परिवर्तन होना ही विकास है ।

❇️ वृद्धि :-

🔹 वृद्धि मात्रात्मक होती है वृद्धि को मापा जा सकता है वृद्धि धनात्मक भी हो सकती है और ऋणात्मक भी संख्या में होने वाले परिवर्तन को ही वृद्धि कहा जाता है ।

❇️ विकास और वृद्धि में अन्तर :-

🔹 वृद्धि समय के संदर्भ के मात्रात्मक एंव मूल्य निरपेक्ष परिवर्तन को सूचित करती है । यह धनात्मक व ऋणात्मक दोनों हो सकती है ।

🔹 विकास का अर्थ गुणात्मक परिर्वन से है जो मूल्य सापेक्ष होता है ।

🔹 विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक वर्तमान दशाओं में सकारात्मक वृद्धि ना हो । यह गुणात्मक एवं पूर्ण सकारात्मक परिवर्तन की सूचक है ।

❇️ मानव विकास :-

🔹  मानव विकास से तात्पर्य लोगों के विकल्पों में वृद्धि करना तथा उनके जीवन में सुधार लाना है । यह व्यक्ति के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन को प्रदर्शित करता है ।

❇️ डॉ . महबूब उल हक द्वारा मानव विकास का वर्णन :-

🔹  ” मानव विकास का अभिप्राय ऐसे विकास से है जो लोगों के विकल्पों में वृद्धि करता है और उनके जीवन में सुधार लाता है । विकास का मूल उद्देश्य ऐसी दशाओं को उत्पन्न करना है जिनमें लोग सार्थक जीवन व्यतीत कर सकें ।

❇️  ” मानव विकास के चार स्तम्भ :-

🔶 1 ) समता :- उपलब्ध अवसरों में प्रत्येक व्यक्ति को समान भागीदारी मिलना ही समानता है । लोगों को उपलब्ध अवसर लिंग , प्रजाति , आय और भारत के संदर्भ में जाति के भेदभाव के विचार के बिना समान होने चाहिए ।

🔶 2 )  सतत् पोषणीयता :- सतत् पोषणीयता का अर्थ अवसरों की उपलब्धि में निरन्तरता है । इसके लिए आवश्यक है कि प्रत्येक पीढ़ी को समान अवसर मिलें । भावी पीढ़ियों को ध्यान में रखकर पर्यावरणीय , वित्तीय और मानव संसाधनों का उपयोग करना चाहिए । इनमें से किसी भी संसाधन का दुरूपयोग भावी पीढ़ी के लिए अवसरों को कम करेगा ।

🔶 3 ) उत्पादकता :- यहाँ उत्पादकता शब्द का प्रयोग मानव श्रम की उत्पादकता के संदर्भ में किया जाता है । लोगों को समर्थ और सक्षम बनाकर मानव श्रम की उत्पादकता को निरन्तर बेहतर बनाना चाहिए । लोगों के ज्ञान को बढ़ाने के प्रयास तथा उन्हें बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने से उनकी कार्य क्षमता बेहतर होगी ।

🔶 4 ) सशक्तीकरण :- सशक्तिकरण का तात्पर्य आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े हुए लोगों को हर तरह से समर्थ बनाना । जिससे वे विकल्प चुनने के लिए स्वतंत्र रहे ।

❇️ मानव विकास के विभिन्न उपागम :-

🔹 मानव विकास से सम्बन्धित समस्याओं के लिए अनेक उपागम है । उनमें से कुछ महत्वपूर्ण निम्न है :-

🔶 आय उपागम :- यह मानव के सबसे पुराने उपागमों में से एक है । इसमें मानव विकास को आय के साथ जोड़कर देखा जाता है । आय का उच्च स्तर विकास के ऊंचे स्तर को दर्शाता है ।

🔶  कल्याण उपागम :- यह उपागम मानव को लाभार्थी अथवा सभी विकासात्मक गतिविधियों के लक्ष्य के रूप में देखता है । सरकार कल्याण पर अधिकतम व्यय करके मानव विकास के स्तरों में वृद्धि करने के लिए जिम्मेदार है ।

🔶 आधारभूत आवश्यकता उपागम :- इस उपागम को मूलरूप से अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन ने प्रस्तावित किया था । इसमें छ : न्यूनतम् आवश्यकताओं जैसे – शिक्षा , भोजन , जलापूर्ति , स्वच्छता , स्वास्थ्य और आवास की पहचान की गई थी । इनमें मानव विकल्पों के प्रश्न की उपेक्षा की गई है ।

🔶  क्षमता उपागम :- इस उपागम का संबंध प्रो . अमर्त्य सेन से है । संसाधनों तक पहंच के क्षेत्रों में मानव क्षमताओं का निर्माण करना बढ़ते मानव विकास की कुंजी है ।

❇️ मानव विकास क्यों महत्वपूर्ण है ?

🔹  देश के आर्थिक विकास के लिए मानव विकास अति आवश्यक है जो निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट होता है ।

🔹 मानव विकास से राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की जा सकती है ।

🔹 यदि देश में योग्य कुशल प्रतिभावान व्यक्ति वैज्ञानिक आदि होंगे तो देश के प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण , व कुशलतम उपयोग हो सकता है । मानव विकास से उत्पादन की नई तकनीकों का विकास होगा ।

🔹 श्रम न केवल उत्पादक है बल्कि उपभोक्ता भी है । यह वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन ही नहीं उनका उपयोग भी करता है । इस तरह श्रम वस्तुओं की और सेवाओं की मांग करता है ।

❇️ मानव विकास सूचकांक :-

🔹 मानव विकास सूचकांक ‘ एक मापक है जिसके द्वारा किसी देश के लोगो के विकास का मापन , उनके स्वास्थ्य , शिक्षा के स्तर तथा संसाधनों तक उनकी पहुंच के संदर्भ में किया जाता है । यह सूचकांक 0 – 1 के बीच कुछ भी हो सकता है ।

❇️ मानव विकास सूचकांक का मापन किस प्रकार किया जाता है ? 

🔹  संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ‘ मानव विकास लोगों के विकल्पों को विकसित व परिवर्द्धित करने की प्रक्रिया है । मानव विकास सूचकांक स्वास्थ्य , शिक्षा तथा संसाधनों तक पहुंच जैसे प्रमुख क्षेत्रों में निष्पादन के आधार पर देशों का क्रम तैयार करता है । यह क्रम 0 से 1 के बीच के स्कोर पर आधारित होता है , जो किसी देश के मानव विकास सूचकों के रिकार्ड से प्राप्त किया जाता है ।

❇️ मानव विकास के मापन के तीन प्रमुख सूचकांक :-

🔶 1 ) स्वास्थ्य :- स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने के लिए चुना गया सूचक जन्म के समय जीवन प्रत्याशा है जो दीर्घ एंव स्वस्थ्य जीवन का सूचक है ।

🔶 2 ) शिक्षा :- शिक्षा का मूल्यांकन करने के लिए प्रौढ़ साक्षरता दर और सकल नामांकन अनुपात को आधार माना जाता है । यह मनुष्य की ज्ञान तक पहुंच को प्रदर्शित करता है ।

🔶  3 ) संसाधनों तक पहुंच :- यह लोगों की क्रय शक्ति को प्रकट करता है । यह आर्थिक सामर्थ्य का सूचक है ।

❇️ संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम :-

🔹 1990 से संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ( यूएनडीपी ) मानव विकास सूचकांक और मानव गरीबी सूचकांक को मापकर मानव विकास रिपोर्ट प्रकाशित करता है ।

❇️ मानव विकास के उच्च स्तर वाले देश :-

🔹 इन देशों में सेवाओं जैसे शिक्षा एंव स्वास्थ्य पर सरकार द्वारा अत्याधिक निवेश किया जाता है तथा इन सेवाओं को उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता होती है ।

🔹 राजनैतिक उपद्रव एवं सामाजिक अस्थिरता यहाँ पर नहीं पाई जाती है।

🔹  यहाँ बहुत अधिक सामाजिक विविधता नहीं है ।

🔹 इस देशों में नार्वे , आईसलैंड , आस्ट्रेलिया , लेक्जेमबर्ग , कनाडा आदि ।

❇️ मानव विकास के निम्न स्तर वाले देश :-

🔹 सामाजिक सेवाओं में सरकार द्वारा आवश्यक निवेश किया जाता है ।

🔹  इन देशों में प्रतिरक्षा एवं गृहकलह शान्त करने में अधिक व्यय होता है । अधिकांश देशों में आर्थिक विकास की गति बहुत धीमी है ।

🔹  अधिकांश देश राजनैतिक उपद्रवों गृहयुद्ध , सामाजिक अस्थिरता – अकाल अथवा बीमारियों के दौर से गुज़र रहे हैं ।

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