योग और जीवन शैली Notes, Class 12 physical education chapter 3 notes in hindi

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12 Class Physical Education Chapter 3 योग और जीवन शैली Notes In Hindi Yoga and Lifestyle

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectPhysical Education
Chapter Chapter 3
Chapter Nameयोग और जीवन शैली
Yoga and Lifestyle
CategoryClass 12 Physical Education Notes in Hindi
MediumHindi

योग और जीवन शैली Notes, Class 12 physical education chapter 3 notes in hindi जिसमे हम योगासनों द्वारा रोगों से बचाव के उपाय । मोटापा : – वज्रासन , हस्तोत्तानासन , त्रिकोणासन , अर्ध – मत्स्येन्द्वासन के लाभ तथा सावधानियाँ । मधुमेह : – भुजंगासन , पश्चिमोत्तानासन , पवनमुक्तासन अर्धमत्स्येन्द्रासन के लाभ तथा सावधानियाँ । अस्थमाः- सुखासन , चक्रासन , गोमुखासन , पर्वतासन , भुजगासन , पश्चिमेत्तासान , मत्स्यासन के लाभ तथा सावधानियाँ । उच्चरक्त चाप : – ताड़ासन , वज्रासन , पवनमुक्तासन , अर्धचक्रासन , भुजगासन , शवासना पीठ दर्द : – ताड़ासन , अर्धमत्स्येन्द्रासन , वक्रासन , शलभासन , भुजंगासन आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 12 Physical Education Chapter 3 योग और जीवन शैली Yoga and Lifestyle Notes In Hindi

📚 अध्याय = 3 📚
💠 योग और जीवन शैली 💠

❇️ आसन :- 

🔹 शरीर की वह मुद्रा है , जोकि मूल रूप से ध्यान में बैठने के लिए प्रयोग होती है तथा बाद में हर योग तथा आधुनिक योग के विभिन्न आसनों में जैसे- खड़े आसन ( तिकोनासान ) बैठकर ( पद्मासन ) लेटकर ( शवासन ) उल्टे होकर ( शीर्षाशन ) संतुलन वाले ( कुक्कुटासन ) आगे की ओर झुकने ( पश्चिमोताआसन ) , पीछे की ओर झुकने ( धनुरासन ) को आपस में जोड़ती है ।

❇️ पंतजली के अनुसार आसन :-

🔹 “ स्थिरसुखमासनम ” पतंजली योगसूत्र के अनुसार आसन एक स्थिर एवंम् सुखदायक स्थिति है । 

❇️ आसन करने के लाभ :-

🔹 रोग निवारक के रूप में अध्ययनों से यह पता चलता है कि आसन से लचीलापन , शक्ति स्वयं के संतुलन में सुधार होता है , तथा इससे तनाव को कम करने और विशेष रूप से अस्थमा तथा मधुमेह जैसी कुछ बीमारियों को कम करने में मदद मिलती है ।

🔹 आसनों के नियमित अभ्यास से मानसिक स्पष्टता तथा शांति पैदा होती है , शरीर में जागरूकता बढ़ती है जो तनावों से छुटकारा दिलाता है । आसन करने से एकाग्रता बढ़ती है तथा स्वयं के प्रति जागरूकता बढ़ती है । जब भी व्यक्ति आसन करने हेतु अपनी चटाई को बिछाता है तथा विभिन्न मुद्राओं द्वारा अपने शरीर को घुमाता है तो वह अनगित स्वास्थ्य लाभों को प्राप्त करना शुरू कर देता है ।

❇️ जीवन शैली संबंधित रोगों की रोकथाम में योग की भूमिका :-

🔹 जीवन शैली संबंधित विकारों के प्रबंधन में सदैव योग के मौलिक सिद्धांतों की चर्चा की जाती है । जिसमें व्यक्ति का उचित दृष्टिकोण तथा मनोवैज्ञानिक विकास शामिल है । योगी की जीवन शैली एक समग्र कला एवं विज्ञान है जिसके अभ्यास द्वारा तनाव प्रबंधन , चयापचय का सामान्य होना , शिथलीकरण , कल्पना शक्ति में वृद्धि तथा प्रचलित रोगों जैसे मधुमेय व उच्च रक्तचाप आदि को नियंत्रित किया जा सकता है ।

❇️ जीवनशैली संबंधित विकार :-

  • मोटापा 
  • मधुमेह 
  • अस्थमा 
  • उच्च रक्तचाप 
  • पीठ दर्द

❇️ मोटापा या स्थूलता :-

🔹 मोटापा विश्व की समस्या बन चुका है वयस्को के साथ – साथ बच्चे भी मोटापे से ग्रस्त हो रहे हैं । मोटापा शरीर की वह दशा होती है जिसमें , शरीर में वसा की मात्रा बहुत अधिक होती है । खान – पान की गलत आदतें और निष्कृय जीवन शैली इसका मुख्य कारण है । 

🔹 दुसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि वह दशा जब एक व्यक्ति का भार आदर्श भार से 20 % या इससे अधिक होता है वह मोटापा कहलाता है । 

❇️ मोटापे होने के कारण :-

🔹 मोटापे के दो मुख्य कारण है हमारे खान – पान की गलत आदतें तथा पाचन प्रणाली का बिगड़ना बारबार खाना , दवाइयां , मनोवैज्ञानिक घटक , सामाजिक मुद्दे , हार्मोन में बदलाव , गर्भधारण , कार्बोहाइड्रेट खाना इत्यादि । मोटापे के अनेक कारण हैं , जैसे अत्याधिक भोजन , परिश्रम रहित जीवन , थायराइड , वंशानुगत इत्यादि । 

❇️ मोटापे से नुकसान :-

🔹 मोटापे के अनेक स्वास्थ्य जोखिमों के कारण इसको बीमारी का दर्जा दिया जा चुका है । मोटापे के कारण व्यक्ति अनेक बीमारियां जैसे मधुमेह , अतिरिक्त दबाव , कैंसर , गठिया आदि रोगों का शिकार हो जाते है । 

❇️ मोटापे से छूटकारा :-

🔹 निम्न आसनों को नियमित रूप में करने से मोटापे से छूटकारा पाया जा सकता है ।

  • हस्तोत्तानासन 
  • त्रिकोणासन
  • अर्धमत्स्येन्द्रासन 
  • बज्रासन

❇️ बज्रासन :-

🔶 पूर्व स्थिति :- 

  • दोनों पैरों को सामने की ओर सीधे रखकर बैठ जाये । 

🔶 विधि :- 

दायें पैर को घुटने से मोड़कर दायें नितम्ब के नीचे रखें ।

बाये पैर को घुटने से मोड़ कर बाये नितम्ब के नीचे रखें ।

कमरे , गर्दन एवं सिर को सीधा रखते हुये , दोनों पैरों के अंगूठे मिले हुये , एड़ी खुली हुई , घुटने तथा पैर का निचला भाग जमीन से लगा रहे । 

दोनों हाथों को जघांओं पर रखे तथा दृष्टि सामने की ओर हो । 

🔶 लाभ :- 

यह आसन ध्यानात्मक आसन है ।

इसे भोजन के पश्चात भी किया जा सकता है ।

इसके अभ्यास से पाचन संस्थान पर प्रभाव पड़ता है । 

उपापचय , मेटाबो- लिज्म प्रक्रिया ठीक प्रकार से होती है । 

भोजन शीघ्र पचता है पिण्डली और जंघाओं के लिए भी उत्तम है ।

❇️ हस्तोत्तानासन :-

🔶 पूर्व स्थिति :- 

  • दोनों पैरों को मिलाकर सीधे खड़े हो जाएँ ।

🔶 विधि :- 

हाथों की हथेलियों आकाश की ओर उगलियों को परस्पर फंसाते हुये ऊपर की तरह ताने हाथ सीधे व कानो से सटे रहे श्वास लेते हुए अपनी कमर से दहिनी ओर 5 से 10 सेकंड करे । श्वास बाहर छोड़ते हुए मध्यावस्था में आये इसी को दूसरी ओर भी करें । 

🔶 लाभ :-

संपूर्ण शरीर को आराम मिलता है बच्चो का कद बढ़ाने में सहायक कमर की लचक बढ़ाता है उदर – विकार के लिये भी उपयोगी कमर की चर्बी कम करता है ।

❇️ त्रिकोणासन :-

🔶 पूर्व स्थिति :-

  • दोनों पैर मिलाकर सीधे खड़े हो जाए ।

🔶 विधि :- 

दोनों पैरो के बीच में 3 से 4 फुट का अन्तर ले । श्वास भरते हुए बायें हाथ को कान से लगाते हुये सीधा करे श्वास निकालते हुए दाहिनी ओर झुकें दायें हाथ से पैर को अंगुठे को स्पर्श करे । श्वास भरते हुए सीध होकर हाथ बदलकर बायी ओर झुके । 

🔶 लाभ :-

इस आसन के प्रभाव से कमर व कटि प्रदेश लचीला होता है अनावश्यक चर्बी घटती है हाथ कंधे जघा आदि शक्तिशाली होते है ।

❇️ अर्धमत्स्येन्द्रासन :-

🔶 पूर्व स्थिति :-

  • दोनों पैर सीधे करके बैठे । 

🔶 विधि :-

दाँए पैर के घुटने को मोड़ने हुये एड़ी बाएं नितम्ब के बाहरी तल तक पहुंचाए बाँए पैर को मोड़े और बाई एडी को दाँए घुटने के ऊपर से ले जाकर उसके पार दाए घुटने के साथ बाएं एड़ी का पंजा जमा दें । 

बाँया घुटना छाती के समीप रहे । अब कटि क्षेत्र से घूमें और दाई बाजु से श्वास निकालते हुए बाएं घुटने को घेरते हुये इस हाथ से बाए पैर के अंगूठे को पकड़े ग्रीवा घड़ सिर बाई ओर मुड़ जाऐगा । 

अर्धयत्स्येन्द्रासन पैरों की स्थिति बदल कर आसन के पुनः दोहराए ।

🔶 लाभ :- 

🔹 रीड़ की हड्डी मजबूत बनती है , नाड़ियों को लाभ पहुँचाता है । चेहरे पर चमक लाता है , मासिक धर्म नियंत्रित करता है पैनक्रियाज ग्रन्थि का स्त्राव नियंत्रित होता है . श्वसन तत्रं के लिए बहुउपयोगी , मोटापे को रोकता है ।

❇️ मधुमेह :-

🔹 मधुमेह आमतौर पर चयापचयी विकार ( Melabolic ) के रूप में जाना जाता है , जिसमें रक्त में लंबे समय तक शर्करा की अधिक मात्र पाई जाती है । मधुमेह में या तो पेक्रियाज ( अग्नाशय ) पर्याप्त इस्सुलिन नहीं बना पाता या शरीर की कोशिकाएं बनाए गए इन्सुलिन को ठीक से प्रतिक्रिया नहीं कर पाती । 

❇️ मधुमेह का कारण :-

🔹  मधुमेह का मुख्य कारण , आरामपस्त जीवन है । 

❇️ मधुमेह के लक्षण :-

🔹 मधुमेह के कारण व्यक्ति के अन्दर थकान , मूत्र का अधिक आना , प्यास का अधिक लगना , व भूख का बढ़ना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं । 

❇️ मधुमेह से नुकसान :-

🔹 मधुमेह के कारण आँखों से धुंधला दिखाई देना , गुर्दे का खराब होना , हृदय सम्बन्धित रोग , वजन कम होना इत्यादि होते हैं । 

❇️ मधुमेह से बचाव :-

🔹 इस बीमारी से व्यक्ति या तो बच सकता है या इसे नियंत्रण में रख सकता है । यदि वह भुंजगासन , पश्चिमोतानासन पवनमुक्तासन व अर्धमत्स्येन्द्रासन का अभ्यास करे ।

❇️ अर्धमत्स्येन्द्रासन :-

🔹 योगी मत्स्येन्द्र के नाम से इस आसन को जाना जाता है । . नीचे बैठकर दोनों पैरों को सीधा फैला दें । 

🔶 विधि :-

दायें पैर को इस प्रकार मोड़ें कि ऐड़ी बाएँ नितम्ब के पास आ जाएं । 

बाएँ पैर को मोड़कर दायें घुटने के बाहर की ओर खड़ा करें । 

दाईं भुजा के ऊपरी भाग में घुटने को श्वास बाहर निकालते हुए दबाएँ और बायें पैर का पंजा पकड़ लें । 

बायां हाथ कमर के पीछे रखें तथा गर्दन को अधिक से अधिक धड़ को घुमाते हुए बाई और मोड़ें । 

श्वास को सामान्य बनाये रखें । 

यही क्रिया दूसरी ओर से दोहराएँ ।

🔶 लाभ :-

सिर का माइग्रेन तथा रीढ़ के सभी प्रकार के दोष दूर होते हैं । 

महिलाओं में ऋतु रोध में नियंत्रण होता है और चेहरे में चमक आती है । 

जिगर , तिल्ली एवं अमाशय पर दबाव पड़ने से वे सक्रिय होते हैं । 

इससे मधुमेह आदि रोगों से मुक्ति मिलती है । 

पेडू के अतरंग अंगों में तालमेल बना रहता है । 

फेफड़े व हृदय को बल मिलता है । 

इसे करने से कूल्हे मजबूत होते हैं ।

🔶 विपरीत संकेत :-

गर्भावस्था में इस आसन को न करें । 

रीढ़ की बीमारी या स्लीप डिस्क होने पर यह आसन वर्जित है ।  

गर्दन व कंधों में दर्द होने पर यह आसन वर्जित है । 

कूल्हे की चोट लगने पर इस आसन को न करें । 

घुटने और एड़ियों के लिंगामेंट ( अस्थिबंध ) खराब होने पर इस आसन का अभ्यास न करें । 

❇️ पश्चिमोत्तानासन :-

🔶 विधि :-

दोनों पैर सामने रखते हुए सीधे बैठ पाएँ । 

श्वास भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर ले जाएँ तथा सिर , गर्दन व कमर के भाग को ऊपर की ओर खिंचाव दें । 

श्वास छोड़ते हुए दोनों हाथों को नीचे लाएँ तथा कमर के भाग को आगे की ओर करते हुए पैरों से लगा दें ।

हाथों से पैर के अंगूठे पकड़े कोहनियाँ जमीन पर लगाएँ । 

माथा छाती व पेट पूरी तरह पैरों से लगे हों ।

🔶 लाभ :- 

इससे पाचन शक्ति मजबूत होती है और रुकी हुई वायु बाहर आती है । 

श्वसन प्रणाली मजबूत होती है ।

रीढ़ की हड्डी की गोटियाँ सीधी हो जाती है ।

मधुमेह के रोगी , गुदा एवं यकृत के रोगियों के लिए चिकित्सा का कार्य करती है । 

मासिक धर्म की शिथिलता में लाभदायक है । 

🔶 विपरीत संकेत :-

स्लिप डिक्स की समस्या में अभ्यास वर्जित है । 

यदि किसी व्यक्ति को हर्निया की समस्या है तो इस आसन को न करें । 

महिलाएँ गर्भावस्था में इस आसन को न करें । य

दि व्यक्ति को स्पांडिलॉसिस ( कशेरूका संधि रोग ) है तो इसका अभ्यास न करे ।

❇️ पवनमुक्तामन :-

🔶 विधि :-

पंजे और एड़ी को जमीन पर रखते हुए कमर के बल सीधा लेट जायें , एड़ी पंजे मिलायें ।

दोनों पांव को मोड़े , दोनों हाथों की उंगलियों का ग्रिप बना कर घुटने को पकड़े ।  

श्वास भरें , भरे हुए श्वास में घुटने से पेट को अधिक से अधिक दबाएं । 

श्वास छोड़ते हुए ठोड़ी को घुटने से लगाएं । 

श्वास लेते हुए सिर वापिस तथा श्वास छोड़ते हुए दोनों पांव वापसी की स्थिति में ले जायें ।

🔶 लाभ :-

पीठ व पेट की मांसपेशियाँ सशक्त होती हैं । 

वायु विकार दूर होता है । 

आंते , जिगर , तिल्ली , अमाशय के विकार समाप्त होते है । 

पेट का मोटापा कम होता है । 

मधुमेह रोग में लाभदायक है । 

🔶 विपरीत संकेत :- 

सर्वाइकिल व गर्दन दर्द के रोगी इस आसन को न करें । 

स्लिप डिस्क वाले व्यक्तियों के लिए पूर्णतः निषेध है । 

 हृदय रोगी भी इस आसन को न करें । 

गर्भावस्था में यह आसन वर्जित है ।

❇️ भुजंग आसन :-

🔶 विधि :- 

आसन पर पेट को बल लेट जायें । 

दोनों पैरों की एड़ियाँ तथा पंजों को मिलाकर , लिटाकर तान दें । 

दोनों हाथों को मोड़कर चेहरे के दाँए – बाँए ले आयें । 

कोहनियाँ अधिक से अधिक अंदर की ओर हों . माथा जमीन से लगा दें । 

गर्दन को पीछे की ओर इतना मोड़े कि सिर का पिछला भाग रीढ़ से लग जाए ।  

अब धीरे – धीरे श्वास भरते हुए धड़ को ऊपर उठा दें । 

सारा भार पेडू पर आ जाएं । 

हथेलियाँ आसन पर केवल स्पर्श करेंगी तथा श्वास सामान्य रहेगा ।

श्वास छोड़ते हुए धीरे – धीरे वापस आ जाएँ । 

पहले धड़ फिर माथा जमीन पर लगा दें ।

🔶 लाभ :-

इस आसन से पाचन शक्ति बढ़ती है । 

सुस्त यकृत भी मजबूत बनता है । 

थाइराइड रोग में लाभदायक है ।

गुर्दा ठीक प्रकार , से कार्य करता है । 

कमर दर्द , गर्दन दर्द , तनाव , कब्ज , रक्त शुद्धी व स्त्री रोग में लाभदायक है ।

🔶 विपरीत संकेत :-

रीढ़ की समस्या होने पर ना करें । 

गर्दन दर्द होने पर न करें । 

अल्सर की समस्या होने पर भी इसका अभ्यास न करे ।

गर्भवती महिलाओं के लिए यह आसन वर्जित है ।

अस्थमा के रोगी भी इस आसन को न करें ।

❇️ अस्थमा Asthema :-

🔹 अस्थमा एक गम्भीर बीमारी है जो श्वास नालिकाओं से सम्बन्धित है । यह श्वास नलिकाओं में सूजन कर देती है जिससे वो बहुत संवेदनशील हो जाती है तथा किसी भी प्रभावित करने वाली चीज के स्र्पश से यह तीखी प्रतिक्रिया करती है । इस प्रतिक्रिया से नलिकाओं में संकुचन होता है तथा इससे फेंफड़ों में हवा की मात्रा कम हो जाती है , जिससे रोग ग्रस्त व्यक्ति को सांस लेना मुश्किल हो जाता है । 

❇️ अस्थमा के लक्षण :-

🔹 खाँसी का दौरा होना , दिल की धड़कन बढ़ना , सांस की रफ्तार बढ़ना , बैचनी होना , सीने में जकड़न , थकावट , हाथों , पैरों , कंधों व पीठ में दर्द होना अस्थमा के लक्षण है ।

❇️ अस्थमा के कारण :-

🔹 धूल , धुवाँ , वायु – प्रदुषण , आनुवांशिकता , पराग कण , जानवरों की त्वचा के बाल या पखं आदि इसके प्रमुख कारण है । 

❇️ अस्थमा से बचाव :-

🔹 अस्थमा को खत्म नहीं किया जा सकता है , परन्तु इस पर नियन्त्रण पाया जा सकता है । सुखासन , चक्रासन , गोमुखासन , पर्वतासन , भुजंगासन , पश्चिमोत्तानासन , मत्स्यासन को अगर नियमित रूप से किया जाये तो अस्थमा पर नियन्त्रण पाया जा सकता है ।

❇️ गोमुखासन :-

🔹 गोमुखासन करते समय शरीर का आकार गाय के मुख के समान होने के इसे गोमुखासन कहा जाता है , अंग्रेजी में इसें The cow face pose कहा जाता है ।

🔶 पूर्व स्थिति :-

  • सुखासन या दण्डासन में बैठ जाए । 

🔶 विधि :-

सुखासन या दण्डासन में बैठ जायें । 

बाँए पैर की एडी को दाहिने नितम्ब के पास रखिए । 

दाहिने पैर को बाई जाँघ के ऊपर से करते हुए इस प्रकार स्थिर करे की घुटने एक दुसरे के ऊपर रहने चाहिए । 

बाँए हाथ को पीठ के पीछे मोड़कर हथेलियों को ऊपर की ओर ले जाए । 

दाहिने हाथ को दाहिने कंधे पर सीधा उठा ले और पीछे की ओर घुमाते हुए कोहनी से मोड़कर हाथों को परस्पर बांध ले । 

अब दोनों हाथों को धीरे से अपनी दिशा में खींचे । 

दृष्टि सामने की ओर रखें । 

पैर बदलकर भी करें ।

🔶 लाभ :- 

अस्थमा के बचाव के लिये उपयोगी , वजन को कम करता है । 

शरीर को सुडोल , लचीला और आकर्षक बनाता है । 

🔶 गोमुखासन के विपरीत संकेत :- 

यदि कधे जाम हों तो इस आसन को न करें । 

किसी भी तरह के दर्द जैसे- कंधे , घुटने , हेमस्ट्रिंग , क्वाड्रीशैप में हो तो इस आसन को न करें ।

साइटिका होने पर न करें । 

कंधे का गर्दन पर किसी भी चोट होने पर इसे न करें । 

गर्भावस्था में वर्जित है ।

❇️ पर्वतासन :-

🔹 इस आसन को करते समय मनुष्य की आकृति एक पर्वत के समान हो जाती है जिसके कारण इसे पर्वतासन कहते है , यह आसन करने में बहुत ही सरल होता है । 

🔶 पूर्व स्थिति :- 

  • पद्मासन में बैठ जाए ।

🔶 विधि :- 

जमीन पर दरी या आसन पर पद्मासन में बैठे । 

लम्बी श्वास लेते हुए अपने हाथों को ऊपर की तरह इस तरह से ले जाएं कि आपके हाथ सिर के ऊपर हो और हाथों की हथेलियां आपस में जुड़ जाएँ । 

🔶 लाभ :-

अस्थमा की बीमारी में बहुत ही लाभदायक है , रक्त साफ करता है । 

सीना चौड़ा और कंधों को मजबूती देता है , फेफड़े स्वस्थ रहते है । 

पर्वतासन के विपरीत संकेत : यदि व्यक्ति के कलाई कूल्हे या एड़ी में चोट होते इस आसन का अभ्यास न करें । 

रीढ़ की हड्डी में चोट होने पर भी इस आसन का अभ्यास न करें ।

❇️ मत्स्यासन :-

🔹 यह आसान पानी में किया जाये तो शरीर मछली कि तरह तैरने लग जाता है , इसलिए इसे मत्स्यासन कहते है । 

🔶 पूर्व स्थिति :- 

  • दोनों पैरो को सीधा रखकर बैठ जाए । 

🔶 विधि :- 

दोनों पैरो को सामने की ओर सीधे रखकर बैठ जाएँ । 

पदमासन लगाएँ । 

दोनों हाथों की कोहनियों का सहारा लेते हुए कमर के बल लेट जाएँ । 

हाथों के सहारे से गर्दन को मोड़े तथा माथे को जमीन से लगाने की कोशिश करें । 

दोनों हाथों से पैरों के अगूंठे पकड़ें तथा कोहनियों को जमीन से लगाएँ । 

पेट के भाग को अधिक से अधिक ऊपर उठायें । 

🔶 लाभ :- 

यह आसन दमे के रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद है । 

शुद्व रक्त का निर्माण तथा संचार करता है ।

मधुमेह तथा पेट के रोग दूर होते है । 

कब्ज दूर करता है खाँसी दूर होती है ।

चेहरे और त्वचा को आकर्षक बनाता है ।

🔶 विपरीत संकेत :-

इस आसन का अभ्यास न करें यदि ।

किसी प्रकार का गर्दन या कमर में चोट हो ।

गर्भावस्था में ।

माईग्रेन में ।

स्कोन्डोलोसिस व कमर दर्द ।

उच्च या कम रक्त दबाव में ।

❇️ सुखासन :-

🔶 पूर्व स्थिति :-

  • दोनों पैर सामने की ओर रखकर सीधे बैठ जाएं । 

🔶 विधि :-

सामान्य रूप में बैठना ही सुखासन है । 

बाये पैर को मोड़ते हुए दायें पैर की जंघा के नीचे रखें । 

दायें पैर को मोड़ते हुए बायें पैर की पिण्डली के नीचे रखें । 

सिर , गर्दन व कमर को सीधी रखें । 

दोनों हाथ ज्ञान मुद्रा में या अज्जली मुद्रा में रखें । 

ध्यान के समय अधिक देर तक बैठने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है । 

पैर बदलकर भी बैठ सकते है ।

🔶 लाभ :- 

यह आसन बहुत देर तक ध्यान , अध्ययन आदि के समय उपयोग में लाया जा सकता है । 

कमर सीधी कर बैठने से पैरों में शक्ति आती है , दर्द दूर होते है तथा योगाभ्यासी अन्य आसन अर्द्धपद्मासन या पद्मासन करने के योग्य हो जाते है । 

🔶 सावधानियाँ :- 

रीढ़ की हडडी में किसी प्रकार की चोट हो तो अधिक समय तक ना बैठे , घुटनों के जोड़ों में परेशानी हो तो ये आसन ना करें ।

❇️ चक्रासन :-

🔶 पूर्व स्थिति :- 

दोनों पैर सीधे करते हुए कमर के बल लेट जायें । 

दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर एडियों से नितम्बों को स्पर्श करते हुए रखें । 

दोनों हाथों को मोड़कर कन्धों के पीछे रखें । 

हाथों के पंजे अन्दर की ओर मुड़े ।

🔶 विधि :-

हाथों और पैरों के ऊपर पूरे शरीर को धीरे – धीरे ऊपर उठा दे ।

हाथ और पैरों में आधे फुट का अन्तर रहे तथा सिर दोनों हाथों के बीच में रहे । 

शरीर को ऊपर की ओर अधिक से अधिक खिंचाव दें जिससे की चक्राकार बन जाए । 

❇️ लाभ :-

पूरे शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता है जिससे रक्त संचार , माँस – पेशियाँ व हड्डियों में लचीलापन आता है । 

कमर दर्द को दूर करता है , फेफर्डो में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाता है इससे शरीर की कार्य क्षमता बढ़ती है । 

🔶 सावधानी :-

  • पूर्णता प्राप्त करने से पूर्व बार – बार अभ्यास करें ।

❇️ उच्च रक्तचाप :-

🔹 यह एक ऐसी स्वास्थ्य समस्या बन गई है जो पूरे विश्व को प्रभावित कर रही है । वैसे तो आयु के साथ – साथ रक्त चाप में वृद्धि होती है परन्तु अब नवयुवक भी इस समस्या से ग्रस्त हो रहे है ।

🔶 उच्च रक्तचाप का कारण :- दोष पूर्ण जीवन शैली ही इसका मुख्य कारण है । बढ़ती उम्र है , आनुवशिक कारण , मोटापा , शारीरिक गतिविधियों की कमी , धूम्रपान , अल्कोहल , ज्यादा नमक खाने से , अधिक वसायुक्त भोजन ग्रहण करने से , मानसिक तनाव मधुमेह अन्य महिलाओं की तुलना में गर्भावती महिला भी उच्च रक्त चाप से ग्रस्त हो जाती है । इन सभी कारण से उच्च रक्त चाप में वृद्धि हो जाती है । 

🔶 उच्च रक्तचाप के प्रभाव :- इस बीमारी में धमनियां और शिराएं धीमी हो जाती है । जब हदय का संकुचन होता है तो रक्त वाहिनियों में रक्त का धक्का लगता है परिणाम स्वरूप धमनियां में रक्त का दबाव बढ़ता है । इस दबाव को सिस्टोलिक रक्त दबाव कहा जाता है । 

🔹 हदय की दो धड़कनों के मध्य रहने वाले दबाव को डाइस्टोलिक रक्त दबाव कहा जाता है रक्त दबाव के दोनों नम्बरों को mm | Hg यूनिट ( मिलीलीटर / मर्करी ) में मापा जाता है किसी व्यस्क का सामान्य रक्त दबाव 120/80 mmHg माना जाता है जब किसी व्यक्ति का रक्त दबाव 140 / 90mmHg ऊपर होता है उसे उच्चरक्त दबाव कहते है ।

❇️ उच्चरक्त चाप से बचाव :-

🔹 उच्चरक्त चाप से बचने के लिए , ताड़ासन पवनमुक्तासन , वज्रासन , अर्धचक्रासन , भुंजागासन शवासन नियमित करने चाहिये ।

❇️ ताड़ासन :-

🔶 पूर्व स्थिति :- 

  • दोनों पैरो को मिलाकर तथा दोनों हथेलियों को बगल में रखकर सीधे खड़े हो जाये ।

🔶 विधि :- 

पैरो के बल खडे होकर श्वास भरते हुए हाथ आकाश की ओर खीचते हैं । 

एड़िया भी उठा लेते है । 

थोड़ी देर इसी स्थिति में रहते हुए श्वास छोड़ते हुए खड़े होने की स्थिति में विश्राम करते है । 

इस आसन को 1 से 5 बार करें ।

🔶 लाभ :- 

शरीर में स्फूर्ति और लम्बाई बढ़ती है । 

इसके करने से प्रसव पीडा में कमी आती है लकवे में लाभ होता है । 

रक्त चाप ठीक रहता है । 

🔶 सावधानियाँ :- 

  • सभी के लिए अच्छा है सिर्फ बीमार व्यक्ति को नहीं करना चाहिए ।

❇️ अर्धचक्रासन :-

🔶 पूर्व स्थिति :- 

  • दोनों पैरों को मिलाकर खड़े हो जायें । 
  • हाथों को शरीर के पास रखें । 

🔶 विधि :-

  • अपने हाथों को कूल्हों पर रखो । 
  • धीमी गति से साँस लेने के साथ अपने घुटनों को झुकाये बिना पीछे मुडे । 
  • कुछ समय इसी मुद्रा में रहें । 

🔶 लाभ :-

  • कमर लचीली होती है । 
  • रीड़ की हडडी मजबूत होती है । 
  • उच्चरक्त चाप सामान्य हो जाता है ।
  • हाथों तथा पैरों की माँसपेशियाँ भी मजबूत होती है । 

🔶 सावधानियाँ :- 

  • पीछे घूमने के दौरान अपने घुटनों को नहीं मोड़े । 

❇️ शवासन :-

🔶 पूर्व स्थिति :-

  • दोनों पैर सीधे रखते हुए कमर के बल लेट जाएँ । 

🔶 विधि :- 

दोनों पैरों में एक फुट का अन्तर रखें तथा एड़ी अन्दर व पंजे बाहर रखते हुए बिल्कुल शिथिल अवस्था में छोड़ दे  

दोनों हाथों की हथेलियाँ ऊपर रखते हुए शरीर से थोड़ी दूरी पर शिथिल अवस्था में रखें । 

आँख बन्द करके मन को श्वास पर केन्द्रित करें किसी भी प्रकार का काम या विचार नही आने दें । 

पैर से सिर तक के भाग को शिथिल कर लें तथा अनुभव करें कि शरीर केवल शव रह गया है ।

🔶 लाभ :-

  • सम्पूर्ण शरीर की कोशिकाओं , अंगों , रक्तवाहिनी , नलिकाओं , उच्चरक्त चाप , मास्तिष्क और शारीरिक तनाव को दूर करने में सक्षम है । 
  • शारीरिक व मानसिक थकावट दूर होती है । 

🔶 सावधानी :- 

  • शवासन करने का स्थान शान्त व बाह्य प्रदूषण , कोलाहल ( शोर ) से रहित होना चाहिए ।

❇️ पीठ दर्द :-

🔹 पीठ दर्द एक विश्व व्यापक समस्या है पीठ दर्द आधुनिक जीवन शैली की देन है । दुनिया भर में लोग बदलती और निष्कृय जीवन शैली के चलते तरह – तरह की समस्याओं से ग्रस्त हो रहे है पीठ दर्द उनमें से एक है । वास्तव में पीठ दर्द केवल हमारे देश की समस्या नहीं है अपितु यह एक विश्वव्यापी समस्या है । वास्तव में दस में से नौ व्यक्ति पीठ दर्द को अपने जीवन में कम से कम एक बार अवश्य महसूस करते है । इसीलिए यह कहा जाता है कि सारे विश्व में पीठ दर्द एक बहुत ही सामान्य समस्या है । इस समस्या के कारण प्रभावित व्यक्ति अपना कार्य आसानीपूर्वक तथा कुशलता पूर्वक करने के योग्य नहीं होते । 

❇️ पीठ दर्द के कारण :-

🔹 पीठ दर्द व्यक्तिगत स्वास्थ्य सम्बन्धी बुरी आदतें , अतिभार होना , शारीरिक क्रियाओं या व्यायाम का अभाव , लचक की कमी , पीठ पर अधिक दवाब होना आदि से हो सकती है । 

❇️ पीठ दर्द से बचाव :-

🔹 योगा करने से पीठ दर्द से बचाव हो सकता है ताड़ासन , वक्रासन , शलभासन , भुजगासन तथा अर्धमत्स्येन्द्रासन पीठ दर्द में किये जा सकते हैं ।

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