शरीर क्रिया विज्ञान एवं खेलों में चोटें Notes, Class 12 physical education chapter 7 notes in hindi

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12 Class Physical Education Chapter 7 शरीर क्रिया विज्ञान एवं खेलों में चोटें Notes In Hindi Injuries in physiology and sports

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectPhysical Education
Chapter Chapter 7
Chapter Nameशरीर क्रिया विज्ञान एवं खेलों में चोटें
Injuries in physiology and sports
CategoryClass 12 Physical Education Notes in Hindi
MediumHindi

शरीर क्रिया विज्ञान एवं खेलों में चोटें Notes, Class 12 physical education chapter 7 notes in hindi जिसमे हम शारीरिक पुष्टि के घटकों को निर्धारित करने वाले शरीर – क्रियात्मक कारक कार्डियो श्वसन संस्थान पर व्यायाम के प्रभाव माँसपेशीय संस्थान पर व्यायाम के प्रभाव बुढ़ापे के कारण शरीर क्रियात्मक परिवर्तन खेल चोटें – वर्गीकरण कारण बचाव प्राथमिक चिकित्सा – लक्ष्य व उद्देश्य आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 12 Physical Education Chapter 7 शरीर क्रिया विज्ञान एवं खेलों में चोटें Injuries in physiology and sports Notes In Hindi

📚 अध्याय = 7 📚
💠 शरीर क्रिया विज्ञान एवं खेलों में चोटें 💠

❇️ शारीरिक पुष्टि के घटक :-

🔶 शक्ति :- 

माँसपेशियों का आकार 

माँसपेशियों की रचना 

शरीर का भार 

तंत्रिका आवेग की तीव्रता 

गतिविधि में भाग लेने वाली मांसपेशियों का समन्वय 

माँसपेशी की अतिवृिद्धि/अतिपुष्टि

🔶 गति :-

विस्फोट शक्ति 

माँसपेशीय संयोजन 

माँसपेशीय की लोच और आराम की योग्यता 

स्नायु संस्थान की गतिशीलता 

जैव रासायनिक भंडार तथा उपापचय योग्यता 

लचक

🔶 सहन क्षमता :- 

ऐरोबिक क्षमता 

एनारोबिक क्षमता 

क्रियाओं का अपव्यय 

मांसपेशीय संरचना

🔶  लचक :-

जोड़ों की शारीरिक संरचना 

आयु – लिंग 

माँसपेशीय शक्ति

माँसपेशीय का लचीलापन 

व्यक्ति की स्थिति 

चोटें 

माँसपेशीय खिंचाव 

वातावरण 

सक्रिय और गतिहीन जीवनशैली

❇️ शक्ति को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारक :-

🔹 किसी व्यक्ति की शक्ति की प्रभावित करने कारक इस प्रकार है :-

🔶 मांसपेशियों का आकार :- बड़ी तथा विशाल मासपेशियाँ अधिक शक्ति उत्पन्न करती है पुरूषों की मांसपेशियाँ बड़ी होती है । इसलिए वे शक्तिशाली होती है । भार प्रशिक्षण की सहायता से मांसपेशी के आकार को बढ़ाया जा सकता है ।

🔶 शरीर का भार :- अधिक भार वाले व्यक्ति हल्के व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होते है । जैसे अधिक शरीर भार वाले भारोत्तलक । 

🔶 मांसपेशी संरचना :- जिन मांसपेशीयों में फॉस्ट टिवच फाइबर की प्रतिशतता अधिक होती है । वे अधिक शक्ति उत्पन्न करते है । जबकि स्लो ट्विच फाइवर्स शीघ्रता से संकुचित नहीं हो सकते , किंतु वे लंबी अवधियों तक संकुचित रहने की क्षमता रखते है । इन फाइबर्स की प्रतिशतता का निर्धारण आनुवंशिक तौर पर किया जाता है ।

🔶 तंत्रिका आवेग की प्रबलता :- जब किसी केन्द्रीय स्नायु संस्थान ( CNS ) से आने वाली अधिक तीव्र तंत्रिका आवेग अधिक संख्या में गत्यात्मक ईकाइयों की उद्दीप्त करता है । तो मांसपेशी अधिक बल से संकुचित होती है । और अधिक बल उत्पन्न करती है ।

❇️ सहन क्षमता को प्रभावित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारक :-

🔶 एरोबिक क्षमता :-

ऑक्सीजन लेना तथा ग्रहण करना ।

ऑक्सीजन परिवहन

ऑक्सीजन अंत : ग्रहण 

ऊर्जा भड़ार 

🔶 एनारोबिक क्षमता :-

ATP और CP का शरीर में भड़ारण ।

बफ्फर क्षमता माँसपेशियों में अम्ल संचय को प्रभावहीन बनाना । 

लैक्टिक अम्ल की सहनशीलता ।

Vo2 Max यह ऑक्सीजन की वह मात्रा होती है जो सक्रिय मांसपेशियाँ व्यायाम के दौरान एक मिनट में प्रयोग में लाती है ।

❇️ लचक को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारक :-

🔶 मांसपेशीय शक्ति :- मांसपेशियों में शक्ति का एक न्यूनतम स्तर होना आवश्यक है । विशेषकर गुरूत्व तथा बाहरी बल के विरूद्ध ।

🔶 में जोड़ों की बनावट :- मानव शरीर में कई प्रकार के जोड़ होते है । कुछ जोड़ो में मूलभूत रूप से अन्य जोड़ों की अपेक्षा अधिक प्रकार की गतियाँ करने की क्षमता होती है । उदाहरण- कंधे के ‘ बाल एवं सॉकेट जोड़ की घुटने के जोड़ की अपेक्षा गति की सीमा कहीं अधिक होती है ।

🔶 आंतरिक वातावरण :- किसी खिलाड़ी का आंतरिक वातावरण भी खिलाड़ी की लचक को निर्धारित करता है । उदाहरण- 10 मिनट तक गर्म पानी में रहने से शरीर के तापमान तथा लचक में वृद्धि होती है । तथा 10 ° C तापमान में बाहर रहने से कमी होती है ।

🔶 चोट :- संयोजक ऊतको तथा मांसपेशियों में चोट के कारण प्रभावित क्षेत्र में सूजन हो सकती है , रेशेदार ऊतक कम लचीले होते है , तथा अंगों के संकुचन को कम कर सकते है । जिससे लचीलेपन में कमी का कारण बन है ।

🔶 आयु तथा लिंग :- आयु में वृद्धि के साथ – साथ लचक में भी कमी आती है । यह प्रशिक्षणीय है । इसमें प्रशिक्षण द्वारा वृद्धि की जा सकती है । चूँकि इससे शक्ति तथा सहन शक्ति में वृद्धि होती है । लिंग भी लचक को निर्धारित करता है । पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक लचक पाई जाती हैं ।

🔶 सक्रिय और गतिहीन जीवन शैली :- नियमित व्यायाम लचक को बढ़ाती है । जबकि निष्क्रिय व्यक्ति लचक को कोमल ऊतको और जोड़ों के न सिकुड़ने तथा फैलने के कारण खो देता है ।

🔶 वशांकुक्रम :- लिगामेंट और कैप्सूल की संरचनाओं के कारण अस्थि संरचना के जोड़ और लम्बाई वशांनुगत है जिसमें खिंचाव वाले व्यायामों के द्वारा लचक उत्पन्न नहीं की जा सकती ।

❇️ गति को निर्धारित करने वाले शरीर क्रियात्मक कारक :-

🔶 विस्फोत्क शक्ति :- प्रत्येक तीव्र तथा विस्फोट गतिविधि हेतु विस्फोटक शक्ति होना जरूरी है , जैसे किसी मुक्केबाज में विस्फोटक शक्ति की कमी होगी तो वह मुक्केबाजी में तेज पंच नहीं मार सकता , इसके अतिरिक्त विस्फोटक शक्ति मांसपेशिय संरचना , आकार तथा सामंजस्य पर भी निर्भर करती है । 

🔶 मांसपेशीय गठन :- जिन मांसपेशी में फास्ट ट्विच रेशे अधिक होते हैं । वह अधिक गति कर सकते है । मांसपेशी का गठन आनुवांशिक रूप से निर्धारित होता है । प्रशिक्षण के द्वारा हम केवल कुछ सुधार कर सकते है । 

🔶 मांसपेशीयों की लोच और आराम की योग्यता :- मांसपेशीयों में लोच की योग्यता से मांसपेशियाँ अधि कतम सीमा तक गति कर सकती है । जिससे विरोध / प्रतिरोध को कम करके गतिविधियों को तीव्र कर सकते हैं , जो मांसपेशियां जल्दी ( Relax ) होती है , वे ही जल्दी संकुचित ( Contract ) होती है ।

🔶 स्नायु संस्थान की गतिशीलता :- स्नायु संस्थान की मोटर इन्द्रिय स्नायु ( Motor and Sensory nerves ) शरीर के अंगों की गतिशीलता को निर्धारित करती है । प्रशिक्षण द्वारा हम एक सीमा तक स्नायु संस्थान की गतिशीलता को बढ़ा सकते हैं । क्योंकि गति का निर्धारण काफी सीमा तक आनुवाशिंक कारकों पर निर्भर करता है ।

🔶 जैव – रासायनिक भंडार तथा उपापचय योग्यता :- तीव्र गति व्यायामों में मांसपेशियों को अधिक मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है । और यह ऊर्जा हमें माँसपेशियों में फॉस्फोरस ( ATP ) तथा क्रिएटिन फॉस्फेट ( CP ) की पर्याप्त मात्रा से मिलती है । प्रशिक्षण द्वारा ATP तथा CP की मात्रा तथा ऊर्जा आपूर्ति की दर में आवश्यकतानुसार वृद्धि की जा सकती है ।

❇️ कार्डियो श्वसन संस्थान पर व्यायाम के प्रभाव :-

  • हृदय गति में वृद्धि 
  • रक्त प्रवाह में वृद्धि 
  • रक्त दाव में वृद्धि 
  • हृदय दर में कमी 
  • आघात आयतन व हृदय निकास में वृद्धि 
  • हृदय के आकार व वजन में वृद्धि 
  • धमनियों व महाधमनियों के व्यास में वृद्धि 
  • रक्त दाव में कमी 
  • शीघ्रक्षति पूर्ति दर 
  • हृदय रोगों का जोखिम कम 
  • दृढ़ इच्छा शक्ति 
  • टाइडल वायु की क्षमता में वृद्धि 
  • श्वसन क्रिया दर में कमी 
  • डायाफ्राम और मांसपेशियों में मजबूती 
  • दूसरे श्वास में देरी
  • बीमारियों से बचाव 
  • सहन शक्ति में वृद्धि 
  • असक्रिय वायु कोष्ठिकाएँ सक्रिय होना 
  • सहन शक्ति में वृद्धि 
  • अवशिष्ट वायु के आयतन में वृद्धि 
  • फेफड़ों और छाती के आकार में वृद्धि 
  • प्राणधर क्षमता में वृद्धि

❇️ कॉर्डियोश्वसन संस्थान पर व्यायामों से होने वाले प्रभाव :-

🔶 हृदय गति का बढ़ना :- जब कोई व्यक्ति व्यायाम करना प्रारम्भ करता है तो व्यायाम की प्रबलता के अनुरूप ही हृदय की गति बढ़ जाती है ।

🔶 स्ट्रोक आयतन में वृद्धि :- व्यायाम की तीव्रता तथा अवधि के बढ़ने के अनुरूप ही प्रत्येक धड़कन पर हृदय के बाएँ निलय से निकलने वाले रक्त की मात्रा ( Stroke Volume ) में वृद्धि होती है ।

🔶 रक्त का आयतन :- व्यायाम की तीव्रता तथा अवधि के अनुरूप ही हृदय द्वारा प्रति मिनट पम्प किए गए रक्त के आयतन ( Cardiac Volume ) में भी वृद्धि होती है ।

🔶 ऊतकों को रक्त की आपूर्ति बढ़ाना :- ऑक्सीजन की तत्काल आवश्यकता होती है तो हृदयवाहिनी संस्थान उन ऊतकों में रक्त के बहाव को बढ़ा देती है व जिनमें कम आवश्यकता होती है उनमें कम कर देता है ।

🔶 रक्त चाप में वृद्धि :- रक्त की आपूर्ति के कारण , रक्तचाप में वृद्धि होती है ।

🔶 प्राणाधार वायु की क्षमता में वृद्धि :- व्यायाम करने से व्यक्ति में आक्सीजन ( वायु की क्षमता में लगभग 3500 सीसी से बढ़कर 5500 सीसी हो जाती है ।

🔶 अवशिष्ट वायु के आयतन में वृद्धि :- नियमित व्यायाम से अवशिष्ट की मात्रा सामान्य से अधिक हो जाती है ।

🔶 असक्रिय वायु – कोशिकाएँ :- सक्रिय हो जाती है नियमित व्यायाम के दौरान O2 को अधिक मात्रा की कर पड़ती है ।

🔶 मिनट आयतन घटना :- एक मिनट में ली गई ऑक्सीजन की मात्रा में भी कमी आती है क्योंकि वायु कोष्ठिकाओं में गैसों के आदान में सुधार हो जाता है ।

🔶 दूसरे श्वास की स्थिति से छुटकारा :- नियमित व्यायाम करने से दूसरे श्वास की आवश्यकता समाप्त हो जाती है ।

🔶 सहन क्षमता में वृद्धि :- यदि लंबी अवधि व्यायाम किया जाए तो व्यक्ति की सहन शक्ति में वृद्धि हो जाती है , कोई भी कार्य बिना थके लंबे समय तक किया जा सकता है ।

❇️ माँसपेशीय संस्थान पर व्यायाम के प्रभाव :-

🔹 माँसपेशीय , एक विशिष्ट ऊतक है । शरीर और इसके अंगो को गति देता है तथा हमारे शरीर को आकार देती है ।

❇️ व्यायाम का मांसपेशीय तन्त्र पर प्रभाव :-

मांसपेशीयां का आकार बढ़ता है ।

कंकाल पेशी अतिवृद्धि 

मांसपेशीयों की अधिक ऊर्जा की पूर्ति 

प्रतिक्रिया समय में सुधार 

कोशिका नलिकाओं का निर्माण 

वसा में कमी 

मांसपेशीय सहन क्षमता में वृद्धि 

आसन विकृतियों में सुधार 

अतिरिक्त वसा पर नियंत्रण 

थकान में देरी 

पोषक तत्व भंडारण में वृद्धि 

शक्ति तथा गति

❇️ मांसपेशी संस्थान पर व्यायाम के प्रभाव :-

🔶 मांसपेशीय अतिवृद्धि :- लगातार व्यायाम करने से पेशीय आकार में वृद्धि होती है ।

🔶 कोशिका नलिकाओं का निर्माण :- प्रशिक्षण के कारण पेशियों में कोशिका नलिकाओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है । जिस कारण पेशियों का रंग गहरा लाल हो जाता है ।

🔶 अतिरिक्त वसा पर नियंत्रण :- नियमित व्यायाम करने से अतिरिक्त वसा पर नियंत्रण होता है । व्यायाम कैलोरीज घटाने में मदद करते है । जो वसा के रूप में जमा हो जाती है ।

🔶 थकान में देरी :- नियमित व्यायाम थकान में देरी करते है । यह थकान कार्बन डाइ आक्साइड , लैक्तिक एसिड और फास्फेट एसिड के कारण होती है ।

❇️ फास्ट ( सफेद ) ट्विच तन्तु :-

🔹 ऐसे तन्तु जो कि गति क्रियाओं के लिए जाने जाते हैं । ऐसे तन्तु जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में भी कार्य ( ऊर्जा ) करते हैं ।

❇️ स्लो ( लाल ) ट्विच तन्तु :-

🔹 यह सहनशक्ति क्रियाओं के लिए जाने जाते हैं । ऐसे तन्तु जो ऑक्सीजन की उपस्थिति में ही कार्य ( ऊर्जा ) करते हैं ।

❇️ नियमित व्यायाम करने से माँयपेशियों पर पड़ने वाले प्रभाव :-

माँसपेशियों का आकार बढ़ता है 

कंकाल पेशी अतिवृद्धि 

माँसपेशियों को अधिक ऊर्जा की पूर्ति 

प्रतिक्रिया समय में सुधार 

कोशिका नलिकाओं का निर्माण 

वसा में कमी 

माँसपेशीय सहन क्षमता में वृद्धि 

आसन विकृतियों में सुधार 

अतिरिक्त वसा पर नियंत्रण 

थकान में देरी 

पोषक तत्व भंडारण में वृद्धि 

शक्ति तथा गति में वृद्धि

❇️ बुढ़ापे के कारण शरीर क्रियात्मक परिवर्तन :-

🔹 वृद्धावस्था / बुढ़ापा उम्र की वह अवस्था है जिसमें अंगों व तन्त्रों की कार्यक्षमताओं में अत्यन्त धीमी गति से गिरावट आती है ।

मांसपेशियों के तनाव , लम्बाई , आकार व शक्ति में कमी 

अस्थि घनत्व में कमी 

श्वसन प्रणाली की क्षमता में कमी 

तन्त्रिका / स्नायु तन्त्र में शिथिलता 

उपापचय दर में कमी 

हृदय वाहिका तन्त्र की क्षमता में कमी 

पाचन तन्त्र की क्षमताओं में कमी 

उत्सर्जन तन्त्र की क्षमताओं में कमी 

ज्ञानेन्द्रियों की क्षमताओं में कमी 

लचक में कमी

❇️ खेल चोटें :-

🔹 खेलों में अभ्यास प्रशिक्षण या स्पर्धा के दौरान , खिलाड़ियों को लगने वाली खेल चोटें कही जाती है ।

🔹 खेल चोटे , खेलों में खेलते समय , शारीरिक कियाकलाप के दौरान घटने वाली दुर्घटनाऐ या परिस्थिति है जिससे खिलाडियों में खेलों में भाग लेने की स्थिति नहीं रहते या काम करने की क्षमता में कमी आ जाता है । इस स्थिति को भी खेल चोटे कहा जाता है ।

❇️ खेल चोटों का वर्गीकरण :-

🔶 बाहरी चोटें :-

🔹 कोमल / मुलायम उत्तक चोटे  

  • रंगड 
  • गुमचोट
  • विदारण फटना 
  • चीरा 

🔶 आंतरिक चोटें :-

🔹 कोमल / मुलायम उत्तक

  • मोच
  • खिंचाव

🔹 कठोर उत्तक चोटे

    • निचले जबड़े का विस्थापन 
    • कंधे के जोड़ का विस्थापन 
    • कुल्हे के जोड़ का विस्थापन 
    • कलाई के जोड़ का विस्थापन 
  • अस्थिभंग ( fracture )
    • तनाव अस्थिभंग 
    • कच्चा अस्थिभंग 
    • बहुखण्ड़ अस्थिभंग
    • अनुप्रस्थ अस्थिभंग 
    • तिरछा अस्थिभंग 
    • पच्चड़ी अस्थिभंग 
  • अतिप्रयोग
    • टेनिस एल्बों 
    • टेंडेनाइटिस 
    • पिंडली की चोट 
    • कँधें की चोट

❇️ खेल चोटों से बचाव :-

शरीर को गरमानें का उचित अभ्यास 

समुचित अनुकूलन

बचावकारी खेल उपकरण और साज – समान 

उचित विधियों का प्रयोग  

खेल कौशल का सही ज्ञान 

शरीर का उचित शीतलीकरण 

खेल – कूद का समुचित वातावरण 

खेल चोटों का प्रबंध 

खेल अधिकारियों का व्यवहार 

❇️ चोटों का प्रबंधन :-

🔶 मुलायम या कोमल उतको की चोटों का प्रबंधन :-

🔹 PRICE ( प्राइस थेरेपी ) 

  • P – Protection सुरक्षा 
  • R – Rest आराम 
  • I – Ice बर्फ 
  • C – Compression दबाव 
  • E – Elevation ऊपर उठाना

🔹 REST ( आराम थेरेपी )

  • R – Rest आराम 
  • E – Elevate ऊत्थान 
  • S – Support सहारा देना 
  • T – Tight सहारे के साथ बांधना ।

🔹 MICE Therapy ( माइस थेरेपी ) 

  • M – Mobilisation गतिशीलता 
  • I – Ice बर्फ 
  • C – Compression दबाब
  • E – Elevation ऊपर उठाना

🔶 जोड़ों की चोट का प्रबंधन :-

🔹 REST 

  • R – Rest 
  • E – Elevate 
  • S – Support 
  • T – Tight

🔹 PRICE 

  • P Protection रक्षण 
  • R- Rest आराम 
  • I – Ice बर्फ 
  • C – Compression दाब ( खून निकलने की परिस्थिति )
  • E – Elevation ऊपर उठाना

❇️ कोमल उत्तकों :-

🔹 कोमल उतकों , त्वचा , मांसपेशीय – स्नायु बंध ( Tendons ) एवं उत्तकों में लगने वाली चोटें को कोमल उत्तक चोटें कहते हैं ।

❇️ कोमल उत्तकों से बचाव :-

शरीर को खेल गतिविधियों में भाग लेने से पहले अच्छी तरफ से गर्माना चाहिए । 

उचित अनुकूल करना चाहिए । 

अच्छी गुणवता वाले उपकरण व सुविधाऐं का प्रयोग करना चाहिए ।

खेल मैदान या कोर्टस साफ व समतल होने चाहिए । 

खिलाड़ियों को खेलों के नियमों की जानकारी होनी चाहिए । 

प्रतियोगिता और प्रशिक्षण के समय खिलाड़ी सतर्क रहना चाहिए । 

थकावट , बीमारी व रोगों की दशा में खेलों में भाग नहीं ले चाहिए ।

❇️ जोड़ों का विस्थापन :-

🔹 जोड़ो का विस्थापन या Dislocation एक मुख्य चोट है । वास्तव में , यह जुड़ी हुई अस्थियों के जोड़ की सतहों का विस्थापन है । 

❇️ जोड़ों के विस्थापन के प्रकार :-

🔹 विस्थापन निम्न प्रकार के होते हैं

🔶 निचले जबड़े का विस्थापन :- सामान्यतया यह तब हो जाता है , जब ठोड़ी किसी वस्तु से टकरा जाए । अधिक मुँह खोलने से भी निचले जबड़े का विस्थापन हो सकता है ।

🔶 कंधे के जोड़ का विस्थापन :- कंधे के जोड़ का विस्थापन अचानक झटके या कठोर सतह पर गिरने से भी हो सकता है । इस चोट में ह्यूमरस का सिरा सॉकेट से बाहर आ जाता है ।

❇️ विस्थापन के लक्षण :-

  • बेरंग 
  • सृजन 
  • कुरूप 
  • गतिशीलता में कमी 
  • तीव्रता से दर्द 
  • वजन लेने में असमर्थ

❇️ विस्थापन से बचने के उपाय :-

किसी भी शारीरिक क्रिया खेल से पहले उचित ढंग से शरीर को गर्मा लेना चाहिए । 

तैयारी काल में उचित अनुकूलन करना चाहिए । 

गर्माने में खिचाव वाले व्यायाम शामिल करने चाहिए । 

अनुचित खेल सुविधाओं का अभाव खिलाड़ियों के आपसी मजाक नहीं करना चाहिए । 

बिना प्रशिक्षक के ज्यादा भार वाली क्रियाओं को नहीं करना चाहिए ।

थकावट के होने पर खेल रोक देना चाहिए असंतुलित आहार से बचना चाहिए ।

बिना नियमों के खेलने से बचना चाहिए कूलिंग डाउन करनी चाहिए ।

❇️ प्राथमिक चिकित्सा :-

🔹 प्राथमिक चिकित्सा ” एक ऐसी चिकित्सा है जो आपातकालीन व दुर्घटना के समय डॉक्टर के पहुँचने से पहले घायल व्यक्ति को अस्थाई तौर पर दर्द से आराम के लिए दी जाती है । 

❇️ प्राथमिक चिकित्सा का लक्ष्य जान बचाना :-

  • बीमारी और दर्द से आराम दिलवाना ।
  • घायल और बीमार व्यक्ति को संभालने की कोशिश करना ।
  • पुनः शक्ति प्राप्ति की कोशिश करना ।

❇️ तेजी से चिकित्सा उपलब्ध करवाना :-

  • चिकित्सक 
  • उपकरण 
  • सुविधाऐ 
  • विशेष सेवाऐं  व्यक्तिगत , मनोविज्ञानिक आदि।
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