सामाजिक आंदोलन notes, Class 12 sociology chapter 8 notes in hindi

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12 Class Sociology – II Chapter 8 सामाजिक आंदोलन Notes In Hindi Social Movements

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectSociology 2nd Book
Chapter Chapter 8
Chapter Nameसामाजिक आंदोलन
Social Movements
CategoryClass 12 Sociology Notes in Hindi
MediumHindi

सामाजिक आंदोलन notes, Class 12 sociology chapter 8 notes in hindi जिसमे हम सामाजिक आन्दोलन , महिलाओं का अन्दोलन , जन जातीय अन्दोलन , कामगारों का अन्दोलन , पारिस्थितिकीय अन्दोलन आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 12 Sociology – II Chapter 8 सामाजिक आंदोलन Social Movements Notes In Hindi

📚 अध्याय = 8 📚
💠 सामाजिक आंदोलन 💠

❇️ सामाजिक आन्दोलन :-

🔹 ये समाज को एक आकार देते है । 19वीं सदी में कुछ सुधार आन्दोलन हुए जैसे-जाति व्यवस्था के विरूद्ध, लिंग आधारित, भेदभाव के विरूद्ध, राष्ट्रीय आज़ादी की आन्दोलन आदि ।

❇️ सामाजिक आन्दोलन के लक्षण :-

🔹 लम्बे समय तक निरंतर सामुहिक गतिविधियों की आवश्यकता । सामाजिक आन्दोलन प्रायः किसी जनहित के मामले में परिवर्तन के लिए होते हैं । जैसे आदिवासिओं का जंगल पर अधिकार, विस्थापित लोगों का पुनर्वास ।

🔹 सामाजिक परिवर्तन लाने को लिए । सामाजिक आन्दोलन के विरोध में प्रतिरोधी अन्दोलन जन्म लेते हैं, जैसे सती प्रथा के विरूद्ध आन्दोलन के खिलाफ धर्म सभा बनी; जिसने अंग्रजो से सती प्रथा खत्म करने के विरूद्ध कानून न बनाने की मांग की ।

🔹 सामाजिक आन्दोलन विरोध के विभिन्न साधन विकसित करते है-मोमबत्ती या मशाल जुलूस, नुक्कड़ नाटक, गीत ।

❇️ सामाजिक आन्दोलन के सिद्धांत :-

🔶 सापेक्षिक वचन का सिद्धान्त :-

🔹 सामाजिक संघर्ष तब उत्पन्न होता है जब सामाजिक समूह अपनी स्थिति खराब समझता है । मनोवैज्ञानिक कारण जैसे क्षोभ व रोष ।

🔶 सापेक्षिक वंचन के सिद्धांत की सीमाएं :- सामुहिक गतिविधि के लिए वंचन का आभास आवश्यक है लेकिन एक प्रर्याप्त कारण नहीं है ।

🔶 दि लोजिक ऑफ कलैक्टिव एक्शन :-

🔹 सामाजिक आन्दोलन में स्वयं का हित चाहने वाले विवेकी व्यक्तिगत अभिनेताओं का पुर्ण योग है । व्यक्ति कुछ प्राप्त करने लिए इनमे शामिल होगा उसे इसमें जोखिम भी कम हो और लाभ अधिक ।

🔶 सीमाएं :- सामाजिक आन्दोलन की सफलता संसाधनों व योग्यताओं पर निर्भर करती है ।

🔶 संसाधन गतिशीलता का सिद्धांत :-

🔹 सामाजिक आन्दोलन नेतृत्व, संगठनात्मक क्षमता तथा संचार सुविधाओं का एकत्र करना इसकी सफलता का जरिया है ।

🔶 सीमाएं :- प्राप्त संसाधनों की सीमा में वंचित नहीं, नए प्रतीक व पहचान की रचना भी कर सकती हैं ।

❇️ सामाजिक आंदोलनों के प्रकार :-

🔶 प्रतिदानात्मक आन्दोलन :- व्यक्तियों की चेतना तथा गतिविधियों में परिवर्तन लाते है । जैसे केरल के इजहावा समुदाय के लोगो ने नारायण गुरू के नेतृत्व मे अपनी सामाजिक प्रथाओं को बदला ।

🔶 सुधारवादी आन्दोलन :- सामाजिक तथा राजनीतिक विन्यास को धीमे व प्रगतिशील चरणों द्वारा बदलना । जैसे – 1960 के दशक में भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन व सूचना का अधिकार ।

🔶 क्रांन्ति आन्दोलन :- सामाजिक सम्बन्धों में आमूल परिवर्तन करना तथा राजसत्ता पर अधिकार करना । जैसे- बोल्शेविक क्रान्ति जिसमें रूस में जार को अपदस्थ किया ।

❇️ सामाजिक अन्दोलन के अन्य प्रकार :-

🔹 पुराना सामाजिक आन्दोलन (आजादी पूर्व)- नारी आन्दोलन, सती प्रथा के विरूद्ध आन्दोलन, बाल विवाह, जाति प्रथा के विरूद्ध । राजनीतिक दायरे में होते थे ।

🔹नया सामाजिक आन्दोलन- जीवन स्तर को बदलने व शुद्ध पर्यावरण के लिए । बिना राजनीतिक दायरे के होते हैं तथा राज्य धर दबाव ड़ालते है । अन्तर्राष्ट्रीय है ।

❇️ पारिस्थितिकीय अन्दोलन :-

🔶 उदाहरण :- चिपको आन्दोलन

🔹 उत्तरांचल में वनों को काटने से रोकने तथा पर्यावरण का बचाव करने के लिए स्त्रियाँ पेड़ों से चिपक गई तथा पेड़ काटने नहीं दिये । इस प्रकार यह आन्दोलन आर्थिक, पारिस्थितिकीय व राजनीतिक बन गया ।

❇️ वर्ग आधारित आन्दोलन :-

🔹 किसान आन्दोलन :- 1858 -1914 के बीच स्थानीयता, विभाजन व विभिन्न शिकायतों से सीमित होने की ओर प्रवृत हुआ ।

  • 1859 – 62 मील की खेती के विरोद्ध में
  • 1857 – दक्षिण का विद्रोह जो साहुकारो के विरोद्ध में
  • 1928 – लगान विरोद्ध बारदोली, सूरत में
  • 1920 – ब्रिटिश सरकार की वन नीतियों के विरुद्ध
  • 1920 – 1940 – अल इंडिया किसान सभा

❇️ स्वतंत्रता के समय दो मुख्य किसान आंदोलन हुए :-

🔹 1946 – 1947 तिभागा आन्दोलन :- यह संघर्ष पट्टेदारी के लिए हुआ ।

🔹 1946 – 1951 तेलंगाना आन्दोलन :- यह हैदराबाद की सांमती दशाओं के विरुद्ध था ।

❇️ स्वतंत्रा के बाद दो बड़े सामाजिक आंदोलन हुए :-

🔹 1967 नक्सली आन्दोलन :- यह आंदोलन भूमि को लेकर हुआ था।

🔹 नए किसानों का आंदोलन

❇️ नया किसान आन्दोलन :-

  • 1970 में पंजाब व तमिलनाडु में प्रारंभ हुआ ।
  • दल रहित थे ।
  • क्षेत्रीय आधार पर संगठित थे ।
  • कृषक के स्थान पर किसान जुड़े थे ( किसान उन्हें कहा जाता है जो कि वस्तुओं के उत्पादन और खरीद दोनों में बाजार से जुड़े होते है । )
  • राज्य विरोधी व नगर विरोधी थे ।
  • लाभ प्रद कीमतें , कृषि निवेश की कीमते , टैक्स व उधार की वापसी की माँगे थी ।
  • सड़क व रेल मार्ग को बंद किया गया था ।
  • महिला मुद्दों को शामिल किया गया ।

❇️ कामगारों का अन्दोलन :-

🔹 1860 में कारखानो में उत्पादन का कार्य शुरू हुआ । कच्चा माल भारत से ले जाकर, इंग्लैड में निर्माण किया जाता था ।

बाद में ऐसे कारखानों को मद्रास, बंबई और कलकत्ता स्थापित किया गया ।

कामगारों ने अपनी कार्य दशाओं के लिए विरोध किया ।

1918 मे शुरूआत सर्वप्रथम मजदूर संघ की स्थापना हुई ।

1920 में एटक की स्थापना हुई ( ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस-एटक )

कार्य के घंटों की अवधि को घटाकर 10 घंटे कर दिया गया ।

1926 में मजदूर संघ अधिनियम पारित हुआ जिसने मज़दूर संघों के पंजीकरण कि प्रावधान किया, और कुछ नियम बनाए ।

❇️ जाति अधारित अन्दोलन :-

🔶 दलित आन्दोलन :- दलित शब्द मराठी, हिन्दी, गुजराती व अन्य भाषाओं के रूप मे पहचान प्राप्त करने का संघर्ष है । दलित समानता, आत्मसम्मान, अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए संघर्ष कर रहे हैं ।

मध्यप्रदेश में चमारों का सतनामी आन्दोलन

पंजाब में अदिधर्म आन्दोलन

महाराष्ट्र में महार आन्दोलन

आगरा में जाटवों की गतिशीलता

दक्षिण भारत में ब्राह्मण विरोधी अन्दोलन

🔶 पिछड़े वर्ग का आन्दोलन :-

पिछड़े जातियों, वर्गों का राजनीतिक इकाई के रूप मे उदय ।

औपनिवेशिक काल में राज्य अपनी संरक्षित का वितरण जाति अधारित करते थे ।

लोग सामाजिक तथा राजनीतिक पहचान के लिए जाति में रहते है ।

आधुनिक काल में जाति अपनी कर्मकांडो विषय वस्तु छोड़ने लगी तथा राजनीतिक गतिशीलता के पंथनिरपेक्ष हो गई है ।

🔶 उच्चजाति का आन्दोलन :- दलित व पिछडो के बढ़ते प्रभाव से उच्च जातियों ने उपेक्षित महसूस किया ।

❇️ जन जातीय अन्दोलन :-

🔹 जनजातीय आंदोलनों में से कई मध्य भारत में स्थित है । जैसे छोटे नागपुर व संथाल परगना में स्थित संथाल, हो, मुंडा, ओराव, मीणा आदि ।

🔶 झारखन्ड :-

बिहार से अलग होकर 2000 में झारखन्ड राज्य बना ।

आन्दोलन की शुरूआत विरसा मुण्डाने की थी ।

ईसाई मिशनरी ने सक्षरता का अभियान चलाया ।

दिक्कुओं – (व्यापारी व महाजन) के प्रति घृणा ।

आदिवासीयों का अलग थलग किया जाना ।

🔶 पूर्वीतर राज्यों के आन्दोलन :- वन भूमि से लोगों का विस्थापन तथा पारिस्थितिकीय मुद्दे ।

❇️ महिलाओं का अन्दोलन :-

1970 के दशक में भारत मे महिला आन्दोलन का नवीनीकरण हुआ ।

महिला आन्दोलन स्वायत थे तथा राजनीतिक दलो से स्वतन्त्र थे ।

महिलाओं के प्रति हिंसा के बारे मे अभियान चलाए ।

स्कूल के प्रार्थना पत्र में माता पिता दोनो के नाम शामिल ।

यौन उत्पीड़न व दहेज के विरोध मे ।

कुछ महिला संगठनों के नाम- विन्स इंडिया एसोसिएशन (1971), ऑल इंडिया विमंश कांफ्रेंस (1926)

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