12 Class Sociology Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ Notes In Hindi The Challenges of Cultural Diversity
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Sociology |
Chapter | Chapter 6 |
Chapter Name | सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ The Challenges of Cultural Diversity |
Category | Class 12 Sociology Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियां class 12 notes, Class 12 sociology chapter 6 notes in hindi जिसमे हम सूचनाधिकार अधिनियम , विविधता , सांस्कृतिक विविधता , सामुदायिक पहचान , नागरिक समाज , सत्तावादी राज्य , धर्मनिरपेक्षतावाद ‘ सांप्रदायिकता आदि के बारे में पड़ेंगे ।
Class 12 Sociology Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ The Challenges of Cultural Diversity Notes In Hindi
📚 अध्याय = 6 📚
💠 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ 💠
❇️ विविधता :-
🔹 विविधता शब्द असमानताओं के बजाय अंतरों पर बल देता है । जब हम यह कहते है कि भारत एक महान सांस्कृतिक विविधता वाला राष्ट्र है वो हमारा तात्पर्य यह होता है कि यहाँ अनेक प्रकार के सामाजिक समूह एवं समुदाय निवास करते है ।
❇️ भारत में सांस्कृतिक विविधता :-
🔹 भारतम में विभिन्न प्रदेशों में भाषा , रहन – सहन , खानपान , वेश – भूषा , प्रथा , परम्परा , लोकगीत , लोकगाथा , विवाह प्रणाली , जीवन संस्कार , कला , संगीत तथा नृत्य में भी हमें अनेक रोचक व आकर्षक भेद देखने को मिलते है ।
🔹 भारतीय राष्ट्र राज्य सामाजिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से विश्व के सर्वाधिक विविधतापूर्ण देशों में से एक है । जनसंख्या की दृष्टि से विश्वभर में इसका स्थान दूसरा है ।
🔹 यहाँ के एक अरब से ज्यादा लोग कुल मिलाकर लगभग 1632 भिन्न – भिन्न भाषाएँ और बोलियाँ बोलते हैं । 18 भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिया गया है ।
🔹 80 % से अधिक आबादी हिन्दुओं की है । लगभग 13.4 % आबादी मुसलमानों की है । 2.3 % ईसाई , 1.9 % सिख , 0.8 % बौद्ध , 0.4 % जैन है ।
🔹 संविधान में यह घोषणा की गई है भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य होगा ।
🔹 सांस्कृतिक विविधता से सम्प्रदायवाद , जातिवाद , क्षेत्रवाद , भाषावाद आदि पनपते है । एक समुदाय दूसरे समुदाय को नीचा दिखाता है ।
🔹 जैसे- नदियों के जल , सरकारी नौकरियों , अनुदानों के बंटवारे को लेकर खींचतान शुरू हो जाती है । रंगभेद रंग के आधार पर भेदभाव जैसे- गोरा या काला ।
❇️ सामुदायिक पहचान :-
🔹 हमारा समुदाय हमें भाषा ( मातृभाषा ) और सांस्कृतिक मूल्य प्रदान करता है जिनके माध्यम से हम विश्व को समझते हैं । यह हमारी स्वयं की पहचान को भी सहारा देता है ।
🔹 सामुदायिक पहचान , जन्म तथा अपनेपन पर आधारित है , न कि किसी उपलब्धि के आधार पर यह ‘ हम क्या ‘ हैं इस भाव की द्योतक है न कि हम क्या बन गए हैं ।
❇️ सामुदायिक पहचान का महत्त्व :-
🔹 संभवतः इस आकस्मिक , शर्त सहित अथवा लगभग अनिवारणीय तरीके से संबंधित होने के कारण ही हम अक्सर अपनी सामुदायिक पहचान से भावनात्मक रूप से इतना गहरे जुड़े होते हैं ।
🔹 सामुदायिक संबंधों ( परिवार , तानेदारी , जाति , नृजातीयता , भाषा , क्षेत्र या धर्म ) के बढ़ते हुए और परस्पर व्यापी दायरे ही हमारी दुनिया को सार्थकता प्रदान करते हैं और हमें पहचान प्रदान करते हैं कि हम कौन हैं ।
❇️ राष्ट्र की व्याख्या करना सरल है पर परिभाषित करना कठिन क्यों ?
🔹 राष्ट्र एक अनूठे किस्म का समुदाय होता है । जिसका वर्णन तो आसान है पर इसे परिभाषित करना कठिन है । हम ऐसे अनेक विशिष्ट राष्ट्रों का वर्णन कर सकते है । जिनकी स्थापना साझे- धर्म , भाषा , इतिहास अथवा क्षेत्रीय संस्कृति जैसी साझी सांस्कृतिक , ऐतिहासिक ओर राजनीतिक संस्थानों के आधार पर की गई है ।
🔹 उदाहरण के लिए , ऐसे बहुत से राष्ट्र है जिनकी अपनी एक साझा या सामान्य भाषा , धर्म , नृजातीयता आदि नहीं है । दूसरी ओर ऐसी अनेक भाषाएं , धर्म या नृजातिया है जो कई राष्ट्रों में पाई जाती है । लेकिन इससे यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि यह सभी मिलकर एक एकीकृत राष्ट्र का निर्माण करते हैं । उदाहरण के लिए सभी अंग्रेजी भाषी लोग या सभी बौद्धर्मावलंबी ।
❇️ आत्मासात्करणवादी और एकीकरणवादी रणनीतियाँ :-
🔹 यह एकल राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने की कोशिश करती है जैसे : –
संपूर्ण शक्ति को ऐसे मंचों में केन्द्रित करना जहाँ प्रभावशाली समूह बहुसंख्यक हो और स्थानीय या अल्पसंख्यक समूहों की स्वायत्ता को मिटाना ।
प्रभावशाली समूह की परंपराओं पर आधारित एक एकीकृत कानून एवं न्याय व्यवस्था को थोपना और अन्य समूहों द्वारा प्रयुक्त वैकल्पिक व्यवस्थाओं को खत्म कर देना ।
प्रभावशाली समूह की भाषा को ही एकमात्र राजकीय ‘ राष्ट्रभाषा ‘ के रूप में अपनाना और उसके प्रयोग को सभी सार्वजनिक संस्थाओं में अनिवार्य बना देना ।
प्रभावशाली समूह की भाषा और संस्कृति को राष्ट्रीय संस्थाओं के जरिए , जिनमें राज्य नियंत्रित , जनसंपर्क के माध्यम और शैक्षिक संस्थाएँ शामिल है , बढ़ावा देना ।
प्रभावशाली समूह के इतिहास , शूरवीरों और संस्कृति को सम्मान प्रदान करने वाले राज्य प्रतीकों को अपनाना , राष्ट्रीय पर्व , छुट्टी या सड़कों आदि के नाम निर्धारित करते समय भी इन्हीं बातों का ध्यान रखना ।
अल्पसंख्यक समूहों और देशज लोगों से जमीनें , जंगल एवं मत्सय क्षेत्र छीनकर , उन्हें ‘ राष्ट्रीय संसाधन ‘ घोषित कर देना ।
❇️ भारतीय सन्दर्भ में क्षेत्रवाद :-
🔹 भारत में क्षेत्रवाद भारत की भाषाओं , संस्कृतियों , जनजातियों और धर्मों की विविधता के कारण पाया जाता है इसे विशेष पहचान चिन्हकों के भौगोलिक संकेद्रण के कारण भी प्रोत्साहन मिलता है ओर क्षेत्रीय वंचन का भाव अग्नि में घी का काम करना है । भारतीय संघवाद इन क्षेत्रीय भावुकताओं को समायोजित करने वाला एक साधन है ।
❇️ क्षेत्रवाद किन कारकों पर आधारित है ?
🔹 क्षेत्रवाद भाषा पर आधारित है जैसे पुराना बंबई राज्य मराठी , गुजराती , कन्नड़ एवं कोंकणी बोलने वाले लोगों का बहुभाषी राज्य था । मद्रास राज्य तमिल , तेलुगु , कन्नड़ , मलयालम बोलने वाले लोगों से बना था ।
🔹 क्षेत्रवाद धर्म पर आधारित है ।
🔹 क्षेत्रवाद जनजातीय पहचान पर भी आधारित था जैसे सन् 2000 में छत्तीसगढ़ , झारखंड , उत्तरांचल जनजातीय पहचान पर आधारित थे ।
❇️ अल्पसंख्यक का समाजशास्त्रीय अर्थ :-
🔹 वह समूह जो धर्म , जाति की दृष्टि से संख्या में कम हो । जैसे- सिक्ख , मुस्लिम , जैन , पारसी , बौद्ध ।
🔹 अल्पसंख्यक समूहों की धारणा का समाजशास्त्र में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है एवं सिफ एक संख्यात्मक विशिष्टता के अलावा और अधिक महत्त्व है- इसमें आमतौर पर असुविधा या हानि का कुछ भावनिहित है । अतः विशेषाधिकार प्राप्त अल्पसंख्यक जैसे अत्यंत धनवान लोगों को आमतौर पर अल्पसंख्यक नहीं कहा जा सकता ।
❇️ अल्पसंख्यकों को क्यों संवेधानिक संरक्षण दिया जाना चाहिए ?
🔹 बहुसंख्यक वर्ग के जनसांख्यिकीय प्रभुत्व के कारण धार्मिक अथवा सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को विशेष संरक्षण की आवश्यक्ता होती है ।
🔹 धार्मिक तथा सांस्कृतिक अल्पसंख्यक वर्ग राजनीति दृष्टि से कमजोर होते है भले ही उनकी आर्थिक या सामाजिक स्थिति कैसी भी हो , अतः इन्हें संरक्षण की आवश्यकता होती है ।
🔹 बहुसंख्यक समुदाय राजनीतिक शक्ति को हथिया लेगा और उनकी धार्मिक या सांस्कृतिक संस्थाओं को दबाने के लिए राजतंत्र का दुरुपयोग करेगा और उन्हे अपनी पहचान छोड़ देने के लिए मजबूर कर देगा ।
❇️ अल्पसंख्यको एवं सांस्कृतिक विविधता पर भारतीय संविधान में महत्वपूर्ण अनुच्छेद :-
🔶 अनुच्छेद 29 :-
🔹 भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाषा के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को , जिसकी अपनी विशेष भाषा , लिपि या संस्कृति है , उसे बनाए रखने का अधिकार होगा ।
🔹 राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता पाने वाली कसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म , मूलवंश , जाति , भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा ।
🔶 अनुच्छेद 30 :-
🔹 धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रूचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा ।
🔹 शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरूद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है ।
❇️ सांप्रदायिकता :-
🔹 रोजमर्रा की भाषा में ‘ सांप्रदायिकता ‘ का अर्थ है धार्मिक पहचान पर आधारित आक्रामक उग्रवाद , अपने आपमें एक ऐसी अभिवृत्ति है जो अपने समूह को ही वैध या श्रेष्ठ समूह मानती है ओर अन्य समूह को निम्न , अवैध अथवा विरोधी समझती है ।
🔹 सांप्रदायिकता एक आक्रामक राजनीतिक विचारधारा है जो धर्म से जुड़ी होती है । सांप्रदायिकता राजनीति से सरोकार रखती है धर्म से नहीं । यद्यपि संप्रदायिकता धर्म के साथ गहन रूप से जुड़ा होता है ।
❇️ भारत मे सांप्रदायिकता :-
🔹 भारत में बार – बार सांप्रदायिक तनाव फैलते हैं जो कि चिंता का विषय बना हुआ है । इसमें लूटा जाता है , बलात्कार होता है ओर लोगों की जान ली जाती है , जैसा कि 1984 में सिक्खों के साथ एवं 2002 में गुजरात के मुसलमानों के साथ हुआ , इसके अलावा भी हजारों ऐसे फसाद हुए हैं । जिसमें सदैव अल्पसंख्यकों का बड़ा नुकसान हुआ है ।
❇️ धर्मनिरपेक्षतावाद :-
🔹 पश्चिमी नजरिये के अनुसार इसका अर्थ है चर्च या धर्मो को राज्य से अलग रखना । धर्म का सत्ता से अलग रखना पश्चिमी देशों के लिए एक सामाजिक इतिहास की हैसियत रखता है ।
❇️ भारत मे धर्मनिरपेक्षतावाद :-
🔹 भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्ष राज्य वह होता है । जो किसी विशेष धर्म का अन्य धर्मों की तुलना में पक्ष नहीं लेता । भारतीय भाव के राज्य के सभी धर्मों को समान आदर देने के कारण दोनों के बीच तनाव से एक तरह की कठिन स्थिति पैदा हो जाती है हर फैसला धर्म को ध्यान में रखते हुए लिया जाता है । उदाहरण के लिए हर धर्म के त्योहार पर सरकारी छुट्टी होती है ।
❇️ सत्तावादी राज्य :-
🔹 एक सत्तावादी राज्य लोकतंत्रात्मक राज्य का विपरीत होता है ।
🔹 इसमें लोगों की आवाज नहीं सुनी जाती है । और जिनके पास शक्ति होती है वे किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होते ।
🔹 सत्तावादी राज्य अक्सर भाषा की स्वतंत्रता , प्रेस की स्वतन्त्रता , सत्ता के दुरूपयोग से संरक्षण का अधिकार विधि ( कानून ) की अपेक्षित प्रक्रियाओं का अधिकार जैसी अनेक प्रकार की नागरिक स्वतंत्रताओं को अक्सर सीमित या समाप्त कर देते हैं ।
❇️ भारत मे सत्तावादी राज्य का इतिहास :-
🔹 भारतीय लोगों को सत्तावादी शासन का थोड़ा अनुभव आपातकाल के दौरान हुआ जो 1975 से 1977 तक लागू रही थी ।
🔹 संसद को निलंबित कर दिया गया था । नागरिक स्वतंत्रताएँ छीन ली गई और राजनीतिक रूप सक्रिय लोग बड़ी संख्या में गिरफ्तार हुए बिना मुकदमा चलाए जेलों में डाल दिए गए ।
🔹 जनसंचार के माध्यमों पर सेंसर व्यवस्था लागू कर दी गई थी ।
🔹 सबसे कुख्यात कार्यक्रम नसबंदी अभियान था । लोगों की शल्यक्रिया के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं से मौत हुई ।
🔹 1977 के प्रारंभ में चुनाव कराएँ गए तो लोगों ने बढ़ – चढ़कर सत्ताधारी कांग्रेस दल के विरोध में बोट डाले ।
❇️ नागरिक समाज :-
🔹 नागरिक समाज उस व्यापक कार्यक्षेत्र को कहते हैं जो परिवार के निजी क्षेत्र से परे होता है , लेकिन राज्य और बाजार दोनों क्षेत्र से बाहर होता है ।
🔹 नागरिक समाज में स्वैच्छिक संगठन होते है ।
🔹 यह सक्रिय नागरिकता का क्षेत्र है यहाँ व्यक्ति मिलकर सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं । जैसे- गैर सरकारी संस्थाएँ , राजनीतिक दल , मीडिया , श्रमिक संघ आदि ।
❇️ नागरिक समाज के द्वारा उठाए गए मुद्दे :-
- जनजाति की भूमि की लड़ाई ।
- पर्यावरण की सुरक्षा उदाहरण ।
- मानक अधिकार और दलितों के हक की लड़ाई ( मुद्दे ) ।
- नगरीय शासन का हस्तांतरण ।
- स्त्रियों के प्रति हिंसा और बलात्कार के विरूद्ध अभियान ।
- बाँधों के निर्माण अथवा विकास की अन्य परियोजनाओं के कारण विस्थापित हुए लोगों का पुर्नवास ।
- गंदी बस्तियाँ हटाने के विरूद्ध और आवासीय अधिकारों के लिए अभियान ।
- प्राथमिक शिक्षा संबंधी सुधार ।
- दलितों को भूमि का वितरण ।
- राज्य को काम काज पर नजर रखने और उससे कानून का पालन करवाना ।
❇️ सूचनाधिकार अधिनियम 2005 :-
🔹 लोगों के उत्तर देने के लिए राज्य को बाध्य करना ।
🔹 सूचनाधिकार अधिनियम 2005 भारतीय संसद द्वारा अधिनियमित एक ऐसा कानून है जिसके तहत भारतीयों को ( जम्मू और कश्मीर ) सरकारी अभिलेखों तक पहुँचने का अधिकार दिया गया है ।
🔹 कोई भी व्यक्ति किसी “ सार्वजनिक प्राधिकरण ” से सूचना के लिए अनुरोध कर सकता है ओर उस प्राधिकरण से यह आशा की जाती है कि वह शीघ्रता से यानी 30 दिन के भीतर उसे उत्तर देगा ।
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