भारत का भौतिक स्वरूप class 9 notes, Class 9 geography chapter 2 notes in hindi

Follow US On

9 Class Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप Notes In Hindi Physical Features of India

TextbookNCERT
ClassClass 9
SubjectGeography
Chapter Chapter 2
Chapter Nameभारत का भौतिक स्वरूप
Physical Features of India
CategoryClass 9 Geography Notes in Hindi
MediumHindi

भारत का भौतिक स्वरूप class 9 notes, Class 9 geography chapter 2 notes in hindi जिसमे हम स्थान , हिमालय पर्वत , उत्तरी मैदान , प्रायद्वीपीय पठार , भारतीय रेगिस्तान , तटीय मैदान , द्वीप आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 9 Geography Chapter 2 भारत का भौतिक स्वरूप Physical Features of India Notes In Hindi

📚 अध्याय = 2 📚
💠 भारत का भौतिक स्वरूप 💠

❇️ भारत का भौतिक स्वरूप :-

🔹 भूगोलवेताओं का मानना है कि भारत का जो भौतिक स्वरूप है , वह विश्व में पाये जाने वाले समस्त प्रकार के भू – आकृतियों का मिश्रण है । यहां पर पर्वत , मैदान , मरुस्थल , पठार तथा द्वीप समूह समस्त प्रकार की भू – आकृतियाँ पायी जाती है ।

🔹 भारत में विभिन्न प्रकार के शैल खण्ड पाये जाते है , जो कुछ मुलायम होती है कुछ कठोर होती है । भारत में भिन्न प्रकार की मृदा पायी जाती है जिनका विभाजन आकार तथा रंग के आधार पर किया जाता है । मृदाओं का रंग , आकार प्रकार उसकी जन्मदात्री शैल पर ही निर्भर करता है , कि उसका निर्माण किस शैल से हुआ हैं ।

❇️ भारत के संपूर्ण क्षेत्रफल का विभाजन :-

  • 10.7 % पर्वतीय भाग
  • 18.6 % पहाड़ियां
  • 27.7 % पठारी क्षेत्र
  • 43 % मैदानी भाग

❇️ विभिन्न प्रकार की भू – आकृतियाँ का निर्माण :-

🔹 इन भौतिक आकृतियों के निर्माण के पीछे कुछ सिद्धांत हैं जिनमें से एक सिद्धांत है- प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत ।

❇️ प्लेट विवर्तनिक का सिद्धांत :-

🔹 एक सिद्धांत जो भौतिक आकृतियों के निर्माण की व्याख्या करने की कोशिश करता है । 

🔹 प्लेट विवर्तनिक के सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की ऊपरी पर्पटी सात बड़ी एवं कुछ छोटी प्लेटों से बनी है ।

❇️ प्रमुख विवर्तनिक प्लेंटें :-

  • प्रशान्त महासागरीय प्लेट ।
  • उत्तर अमेरिकी प्लेट ।
  • दक्षिण अमेरिकी प्लेट ।
  • अफ्रीकी प्लेट ।
  • अंटार्कटिक प्लेट ।
  • यूरेशियन प्लेट ।
  • इंडो – आस्ट्रेलियन प्लेट ।

❇️ भारत की भौगोलिक आकृतियों का विभाजन :-

🔹 भारत की भौगोलिक आकृतियों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है :- 

  • हिमालय पर्वत श्रृंखला 
  • उत्तरी मैदान 
  • प्रायद्वीपीय पठार 
  • भारतीय मरुस्थल 
  • तटीय मैदान 
  • द्वीप समूह

❇️ हिमालय पर्वत :-

🔹 हिमालय को नवीन वलित पर्वत कहा जाता है । हिमालय पर्वत भारत की उत्तरी सीमा का निर्धाण करता है । हिमालय पर्वत सिन्धु नदी से लेकर ब्रहामपुत्र नदी तक फैला हुआ है ।

🔹 हिमालय की लम्बाई 2400 किलोमीटर है तथा चौड़ाई कश्मीर में 400 किलो मीटर तथा अरुणाचल प्रदेश में 150 किलोमीटर है ।

❇️ हिमालय का विभाजन :-

🔶 हिमालय का विभाजन दो आधार पर किया गया है :-

  • उत्तर दक्षिण विभाजन 
  • पश्चिम पूर्व विभाजन

🔶 उत्तर दक्षिण विभाजन में हिमालय को तीन भागों में विभाजित किया गया है :-

  • हिमाद्रि ( महान या आन्तरिक हिमालय ) 
  • हिमाचल ( निम्न हिमालय या मध्य हिमालय ) 
  • शिवालिक 

🔶 पश्चिम से पूर्व का विभाजन 4 भागों में किया गया है 

  • पंजाब हिमालय 
  • कुमाउ हिमालय 
  • नेपाल हिमालय 
  • असम हिमालय

❇️ हिमाद्रि ( महान या आन्तरिक हिमालय ) 

सबसे उत्तरी भाग में स्थित श्रृंखला को महान या आंतरिक हिमालय या हिमाद्रि कहते हैं । 

यह सबसे अधिक सतत् श्रृंखला है , जिसमें 6,000 मीटर की औसत ऊँचाई वाले सर्वाधिक ऊँचे शिखर हैं । 

इसमें हिमालय के सभी मुख्य शिखर हैं ।

महान हिमालय के वलय की प्रकृति असममित है । 

हिमालय के इस भाग का क्रोड ग्रेनाइट का बना है । 

यह श्रृंखला हमेशा बर्फ से ढँकी रहती है तथा इससे बहुत सी हिमानियों का प्रवाह होता है ।

❇️ हिमाचल ( निम्न हिमालय या मध्य हिमालय ) 

हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित श्रृंखला सबसे अधिक असम है एवं हिमाचल या निम्न हिमालय के नाम से जानी जाती है । 

इन शृंखलाओं का निर्माण मुख्यतः अत्याधिक संपीडित तथा परिवर्तित शैलों से हुआ हैं । 

इनकी ऊँचाई 3,700 मीटर से 4,500 मीटर के बीच तथा औसत चौड़ाई 50 किलोमीटर है । 

जबकि पीर पंजाल श्रृंखला सबसे लंबी तथा सबसे महत्त्वपूर्ण श्रृंखला है , धौलाधर एवं महाभारत शृंखलाएँ भी महत्त्वपूर्ण हैं ।

इसी श्रृंखला में कश्मीर की घाटी तथा हिमाचल के कांगड़ा एवं कुल्लू की घाटियाँ स्थित हैं ।

इस क्षेत्र को पहाड़ी नगरों के लिए जाना जाता है ।

❇️ शिवालिक :-

हिमालय की सबसे बाहरी श्रृंखला को शिवालिक कहा जाता है । 

इनकी चौड़ाई 10 से 50 कि ० मी ० तथा ऊँचाई 900 से 1,100 मीटर के बीच है । 

ये श्रृंखलाएँ , उत्तर में स्थित मुख्य हिमालय की श्रृंखलाओं से नदियों द्वारा लायी गयी असंपिडित अवसादों से बनी है । 

ये घाटियाँ बजरी तथा जलोढ़ की मोटी परत से ढँकी हुई हैं । 

निम्न हिमाचल तथा शिवालिक के बीच में स्थित लंबवत् घाटी को दून के नाम से जाना जाता है । 

कुछ प्रसिद्ध दून हैं – देहरादून , कोटलीदून एवं पाटलीदून ।

❇️ हिमाचल में पाए जाने वाले प्रमुख दर्रे :-

  • काराकोरम दर्रा 
  • रोहतांग दर्रा 
  • वुर्जिल दर्रा 
  • जोलिला दर्रा 
  • पीरपंजाल दर्रा 
  • शिपकिला दर्रा ।

❇️ पश्चिम से पूर्व का विभाजन :-

🔹 हिमालय को पश्चिम से पूर्व तक स्थित क्षेत्रों के आधार पर भी विभाजित किया गया है । इन वर्गीकरणों को नदी घाटियों की सीमाओं के आधार पर किया गया है ।  

सतलुज एवं सिंधु के बीच स्थित हिमालय के भाग को पंजाब हिमालय के नाम से जाना जाता है । 

पश्चिम से पूर्व तक क्रमशः इसे कश्मीर तथा हिमाचल के नाम से भी जाना जाता है । 

सतलुज तथा काली नदियों के बीच स्थित हिमालय के भाग को कुमाँऊ हिमालय के नाम से भी जाना जाता है । 

काली तथा तिस्ता नदियाँ , नेपाल हिमालय का एवं तिस्ता तथा दिहांग नदियाँ असम हिमालय का सीमांकन करती है । 

❇️ उत्तरी मैदान :-

🔹 उत्तर का मैदान तीन प्रमुख नदी तन्त्रों सिन्धु , गंगा , ब्रहामपुत्र तथा इनकी सहायक नदीयों से बना है हिमालय के गिरीपाद में लाखों वर्षों तक नदीयों द्वारा लाये गये अवसाद के जमाव से इस मैदान का निर्माण हुआ है । 

इसका विस्तार 7 लाख वर्ग कि० मी० के क्षेत्र पर है ।

इस मैदान की लम्बाई 2400 कि० मी० तथा चौडाई 240 कि० मी० से 320 कि० मी० है । 

यह मैदान भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला भाग है । 

कृषि के लिये अनुकूल दशाओं के कारण यह क्षेत्र सर्वाधिक कृषि उत्पादकता वाला क्षेत्र है इस कारण इसे भारत का अन्न भण्डार गृह कहा जाता है । 

❇️ उत्तरी मैदानो का विभाजन :-

🔹 उत्तर के मैदान को तीन भागों में विभाजित किया गया है :-

🔶 गंगा का मैदान :- 

🔹 गंगा के मैदान का विस्तार घघ्घर तथा तिस्ता नदियों के बीच है । यह उत्तरी भारत के राज्यों हरियाणा , दिल्ली , उत्तर प्रदेश , बिहार , झारखंड के कुछ भाग तथा पश्चिम बंगाल में फैला है ।

🔶 पंजाब का मैदान :- 

🔹 उत्तरी मैदान के पश्चिमी भाग को पंजाब का मैदान कहा जाता है । सिंधु तथा इसकी सहायक नदियों के द्वारा बनाये गए इस मैदान का बहुत बड़ा भाग पाकिस्तान में स्थित है ।

🔶 ब्रहामपुत्र का मैदान :-

🔹 ब्रह्मपुत्र का मैदान इसके पश्चिम विशेषकर असम में स्थित है ।

❇️ आकृतिक भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदानों का विभाजन :-

🔹 आकृतिक भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदानों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है ।

🔶 भाबर :-

🔹 नदियाँ पर्वतों से नीचे उतरते समय शिवालिक की ढाल पर 8 से 16 कि० मी० के चौड़ी पट्टी में गुटिका का निक्षेपण करती हैं । इसे ‘ भाबर ‘ के नाम से जाना जाता है । सभी सरिताएँ इस भाबर पट्टी में विलुप्त हो जाती हैं ।

🔶 तराई :-

🔹 इस पट्टी के दक्षिण में ये सरिताएँ एवं नदियाँ पुनः निकल आती हैं । एवं नम तथा दलदली क्षेत्र का निर्माण करती हैं , जिसे ‘ तराई ‘ कहा जाता है । 

🔶 भांगर :-

🔹 उत्तरी मैदान का सबसे विशालतम भाग पुराने जलोढ़ का बना है । वे नदियों के बाढ़ वाले मैदान के ऊपर स्थित हैं तथा वेदिका जैसी आकृति प्रदर्शित करते हैं । इस भाग को ‘ भांगर ’ के नाम से जाना जाता है । इस क्षेत्र की मृदा में चूनेदार निक्षेप पाए जाते हैं , जिसे स्थानीय भाषा में ‘ कंकड़ ‘ कहा जाता है । 

🔶 खादर :-

🔹 बाढ़ वाले मैदानों के नये तथा युवा निक्षेपों को ‘ खादर ‘ कहा जाता है । इनका लगभग प्रत्येक वर्ष पुननिर्माण होता है , इसलिए ये उपजाऊ होते हैं तथा गहन खेती के लिए आदर्श होते हैं ।

❇️ दोआब :-

🔹 दोआब का अर्थ है दो नदियों के बीच की भूमि । ‘ दोआब ‘ दो शब्दों से मिलकर बना है – दो तथा आब अर्थात् पानी । 

❇️ प्रायद्वीपीय पठार :-

🔹 प्रायद्वीपीय पठार एक मेज की आकृति वाला स्थल है जो पुराने क्रिस्टलीय , आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों से बना है । यह गोंडवाना भूमि के टूटने एवं अपवाह के कारण बना था ।

🔹  इस पठार के दो मुख्य भाग हैं :- 

  • ‘ मध्य उच्चभूमि ‘ 
  • ‘ दक्कन का पठार ‘ 

❇️ मध्य उच्चभूमि :-

🔹 नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो कि मालवा के पठार के अधिकतर भागों पर फैला है उसे मध्य उच्चभूमि के नाम से जाना जाता है । विंध्य श्रृंखला दक्षिण में सतपुड़ा श्रृंखला तथा उत्तर – पश्चिम में अरावली से घिरी है । पश्चिम में यह धीरे धीरे राजस्थान के बलुई तथा पथरीले मरुस्थल से मिल जाता है ।

❇️ दक्षिण का पठार :-

🔹 दक्षिण का पठार एक त्रिभुजाकार भूभाग है , जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है । उत्तर में इसके चौड़े आधार पर सतपुड़ा की श्रृंखला है , जबकि महादेव , कैमूर की पहाड़ी तथा मैकाल शृंखला इसके पूर्वी विस्तार हैं । 

🔹 दक्षिण का पठार पश्चिम में ऊँचा एवं पूर्व की ओर कम ढाल वाला है । इस पठार का एक भाग उत्तर – पूर्व में भी देखा जाता है , जिसे स्थानीय रूप से ‘ मेघालय ‘ , ‘ कार्बी एंगलौंग पठार ‘ तथा ‘ उत्तर कचार पहाड़ी ‘ के नाम से जाना जाता है ।

❇️ दक्कन ट्रैप :-

🔹 प्रायद्वीपीय पठार का वह क्षेत्र जहाँ काली मृदा पाई जाती है वह दक्कन ट्रैप कहलाता है ।

❇️ भारतीय मरूस्थल :-

🔹 अरावली पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर थार का मरुस्थल स्थित है । यह बालू के टिब्बों से ढँका एक तरंगित मैदान है । इस क्षेत्र में प्रति वर्ष 150 मि ० मी ० से भी कम वर्षा होती है । इस शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र में वनस्पति बहुत कम है ।

❇️ डेल्टा :-

🔹 नदी के सागर में मिलने से पहले उसके प्रवाह में हल्का सा अवरोध आने पर मलबे का निक्षेपण होने लगता है । इससे अवसाद जमा होकर एक त्रिभुजाकार रुप ले लेता है । जिस डेल्टा कहते है ।

❇️ तटीय मैदान :-

🔹 प्रायद्वीपीय पठार के किनारों संकीर्ण तटीय पट्टीयों का विस्तार है । यह पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत है । पश्चिमी तट , पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के बीच स्थित एक संकीर्ण मैदान है ।

❇️ तटीय मैदान का विभाजन :-

🔹 इस मैदान के तीन भाग हैं । तट के उत्तरी भाग को कोंकण ( मुंबई तथा गोवा ) , मध्य भाग को कन्नड मैदान एवं दक्षिणी भाग को मालाबार तट कहा जाता है ।

❇️ द्वीप समूह :-

🔹 भारत के दो प्रमुख द्वीप समूह हैं :-

🔶 अरब सागर के द्वीप :-

  • द्वीपों का यह समूह छोटे प्रवाल द्वीपों से बना है । 
  • पहले इनको लकादीव , मीनकाय तथा एमीनदीव के नाम से जाना जाता था । 
  • 1973 में इनका नाम लक्षद्वीप रखा गया । 
  • यह 32 वर्ग कि ० मी ० के छोटे से क्षेत्र में फैला है । 
  • कावारत्ती द्वीप लक्षद्वीप का प्रशासनिक मुख्यालय है । 
  • इस द्वीप समूह पर पादप तथा जंतु बहुत से प्रकार पाए जाते हैं । 
  • पिटली द्वीप , जहाँ मनुष्य का निवास नहीं है , वहाँ एक पक्षी अभयारण्य है ।

🔶 बंगाल की खाड़ी के द्वीप :-

  • ये अंडमान एवं निकोबार द्वीप हैं । 
  • यह द्वीप समूह आकार में बड़े संख्या में बहुल तथा बिखरे हुए हैं । 
  • यह द्वीप समूह मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है – उत्तर में अंडमान तथा दक्षिण में निकोबार । 
  • यह माना जाता है कि यह द्वीप समूह निमज्जित पर्वत श्रेणियों के शिखर हैं । 
  • यह द्वीप समूह देश की सुरक्षा के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है । 
  • इन द्वीप समूहों में पाए जाने वाले पादप एवं जंतुओं में बहुत अधिक विविधता है । 
  • ये द्वीप विषवत् वृत के समीप स्थित हैं एवं यहाँ की जलवायु विषुवतीय है तथा यह घने जंगलों से आच्छादित है ।
Legal Notice
 This is copyrighted content of INNOVATIVE GYAN and meant for Students and individual use only. Mass distribution in any format is strictly prohibited. We are serving Legal Notices and asking for compensation to App, Website, Video, Google Drive, YouTube, Facebook, Telegram Channels etc distributing this content without our permission. If you find similar content anywhere else, mail us at contact@innovativegyan.com. We will take strict legal action against them.

All Classes Notes