9 Class History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति Notes In Hindi The French revolution
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | फ्रांसीसी क्रांति The French revolution |
Category | Class 9 History Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
फ्रांसीसी क्रांति notes, Class 9 history chapter 1 notes in hindi जिसमे हम फ्रांसीसी क्रांति , फ्रांसीसी क्रांति के कारण , मध्यवर्ग , फ्रांस संवैधानिक राजतंत्र आदि के बारे में पड़ेंगे ।
Class 9 History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति the french revolution Notes In Hindi
📚 अध्याय = 1 📚
💠 फ्रांसीसी क्रांति 💠
❇️ फ्रांसीसी क्रांति :-
🔹 1789 में फ्रांसीसी क्रांति शुरू हुई । मध्यम वर्ग द्वारा शुरू की गई घटनाओं की श्रृंखला ने उच्च वर्गों को झकझोर दिया ।
🔹 लोगों ने राजशाही के क्रूर शासन के खिलाफ विद्रोह किया । इस क्रांति ने स्वतंत्रता , बंधुत्व और समानता के विचारों को सामने रखा ।
🔹 क्रांति की शुरुआत 14 जुलाई , 1789 को बास्तील के किले से हुई ।
🔹 बास्तील के किले से सभी नफरत करते थे , क्योंकि बास्तील का किला सम्राट की निरंकुश शक्तियों का प्रतीक था ।
🔹 14 जुलाई 1789 को क्रुद्ध भीड ने बास्तील के किले को तोड़ दिया और राजनितिक कैदियों को रिहा करवा लिया ।
❇️ फ्रांसीसी क्रांति के कारण :-
🔶 सामाजिक कारण :-
- समाज का वर्गों में बटा होना
- सामाजिक विभेद
- माध्यम वर्ग का उदय
🔶 राजनीतिक कारण :-
- आयोग्य शासन
- विशेषाधिकार
🔶 तात्कालिक कारण :-
- लुई XVI का नया कर लगाने का प्रस्ताव
🔶 आर्थिक कारण :-
- लगभग 12 अरब लिब्रे का कर्ज ।
- खाली राजकोष
- जीविका संकट
- कर व्यवस्था
🔶 सुधारकों एवं विचारकों का प्रभाव :-
- रूसों
- मिराब्यों
- आबे शिया
❇️ फ्रांसीसी क्रांति के सामाजिक कारण :-
🔹 अठारहवीं शताब्दी के दौरान फ्रांसीसी समाज तीन वर्गों में विभाजित था :-
- प्रथम एस्टेट :- जिसमें चर्च के पादरी आते थे ।
- द्वितीय एस्टेट :- जिसमें फ्रांसीसी समाज का कुलीन वर्ग आता था ।
- तृतीय एस्टेट :- जिसमें बड़े व्यवसायी , व्यापारी , अदालती कर्मचारी , वकील , किसान , कारीगर , भूमिहीन मजदूर आदि आते थे ।
🔹 लगभग 60 % जमीन पर कुलीनों , चर्च और तीसरे एस्टेट के अमीरों का अधिकार था ।
- टाइद ( TITHE ) :- तृतीय एस्टेट से चर्च द्वारा वसूला जाने वाला कर था ।
- टाइल ( TAILLE ) :- तृतीय एस्टेट से सरकार द्वारा वसूला जाने वाला टैक्स था ।
🔹 प्रथम दो एस्टेट्स पादरी वर्ग और कुलीन वर्ग के लोगों को जन्म से कुछ विशेषाधिकार प्राप्त थे जैसे – राज्य को दिये जाने वाले कर ( टैक्स ) से छूट ।
🔹 राज्य के सभी टैक्स केवल तृतीय एस्टेट द्वारा वहन किए जाते थे ।
❇️ फ्रांसीसी क्रांति के आर्थिक कारण :-
🔶 निर्वाह संकट :-
🔹 फ्रांस की जनसंख्या 1715 में लगभग 2.3 करोड़ से बढ़कर 1789 में 2.8 करोड़ हो गई ।
🔹 अनाज उत्पादन की तुलना में उसकी माँग काफ़ी तेज़ी से बढ़ी । अधिकांश लोगों के मुख्य खाद्य पावरोटी की कीमत में तेज़ी से वृद्धि हुई ।
🔹 अधिकतर कामगार कारखानों में मज़दूरी करते थे और उनकी मज़दूरी मालिक तय करते थे । लेकिन मज़दूरी महँगाई की दर से नहीं बढ़ रही थी । फलस्वरूप , अमीर – गरीब की खाई चौड़ी होती गई ।
🔹 स्थितियाँ तब और बदतर हो जातीं जब सूखे या ओले के प्रकोप से पैदावार गिर जाती । इससे रोज़ी – रोटी का संकट पैदा हो जाता था । ऐसे जीविका संकट प्राचीन राजतंत्र के दौरान फ़्रांस में काफ़ी आम थे ।
🔹 इससे खाद्यान्नों की कमी या जीवन निर्वाह संकट पैदा हो गया जो पुराने शासन के दौरान बार – बार होने लगा ।
❇️ फ्रांसीसी क्रांति के राजनीतिक कारण :-
🔹 मध्यम वर्ग , जिसमें वकील , शिक्षक , लेखक , विचारक आदि आते थे , ने जन्म आधारित विशेषाधिकार पर प्रश्न उठाने शुरू कर दिये ।
❇️ मध्यवर्ग :-
🔹 18 वीं सदी में एक नए सामाजिक समूह का उदय हुआ जिसे मध्यवर्ग कहा गया ।
🔹 उभरते मध्यवर्ग ने विशेषाधिकारों के अंत की कल्पना की ।
🔹 जिसने ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों के उत्पादन के बल पर संपत्ति अर्जित की थी ।
🔹 यह सभी पढ़े लिखे होते थे और इनका मानना था कि समाज के किसी भी समूह के पास जन्मना विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए ।
❇️ लुई XVI :-
🔹 1774 में लुई XVI फ्रांस की राजगद्दी पर आसीन हुआ ।
🔹 वह फ्रांस के बूर्वी राजवंश का राजा था । उसका विवाह आस्ट्रिया की राजकुमारी मेरी एन्तोएनेत से हुआ था । राज्यारोहण के समय उसका राजकोष खाली था जिसके निम्नलिखित कारण थे :-
लंबे युद्धों के कारण वित्तीय संसाधनों का नष्ट होना ।
पूर्ववर्ती राजाओं की शानो शौकत पर फिजूलखर्ची ।
अमरीकी स्वतंत्रता संघर्ष में ब्रिटेन के खिलाफ अमेरिका की सहायता करना ।
जनसंख्या का बढ़ना और जीविका संकट ।
❇️ क्रांति की शुरुआत :-
फ्रांसीसी सम्राट लुई XVI ने 5 मई 1789 को नये करो के प्रस्ताव के अनुमोदन के लिए एस्टेट्स जनरल की बैठक बुलाई ।
किसानों , औरतों एवं कारीगरों का सभा में प्रवेश वर्जित था फिर भी लगभग 40,000 पत्रों के माध्यम से उनकी शिकायतें एवं मांगों की सूची बनाई गई जिसे उनके प्रतिनिधि अपने साथ लेकर आए थे ।
एस्टेट्स जनरल के नियमों के अनुसार प्रत्येक वर्ग को एक मत देने का अधिकार था ।
जिस वक्त नेशनल असेंबली संविधान का प्रारूप तैयार करने में व्यस्त थी पूरा फ्रांस आंदोलित हो रहा था कड़ाके की ठंड के कारण फसल खराब हो गई थी पावरोटी की कीमतें आसमान छू रही थी ।
बेकरी मालिक स्थिति का फायदा उठाते जमाखोरी में लगे हुए थे ।
बेकरी की दुकानों पर घंटों के इंतजार के बाद गुस्साई औरतों की भीड़ ने दुकान पर धावा बोल दिया ।
दूसरी तरफ सम्राट ने सेना को पेरिस में प्रवेश करने का आदेश दे दिया भीड़ ने 14 जुलाई को बास्तील पर धावा बोलकर उसे नेस्तनाबूद कर दिया ।
देहाती इलाकों में गांव – गांव या अफवाह फैल गई की जागीरो के मालिकों ने भाड़े पर लुटेरों को बुलाया है जो पक्की फसलों को तबाह करने के लिए निकल पड़े हैं कई जिलों में डर से आक्रांत होकर किसानों ने कुदालों से ग्रामीण किलो पर आक्रमण कर दिया ।
उन्होंने अन्न भंडार को लूट लिया और लगान संबंधी दस्तावेज को जलाकर राख कर दिया कुलीन बड़ी संख्या में अपनी जागिरे छोड़कर भाग गए बहुत ने तो पड़ोसी देशों में जाकर शरण ले ली ।
❇️ फ्रांस संवैधानिक राजतंत्र :-
🔹 20 जून 1789 को वे लोग वर्साय के एक टेनिस कोर्ट में एकत्रित हुए और अपने आप को नेशनल असेंबली घोषित कर दिया ।
🔹 अपनी विद्रोही प्रजा की शक्तियों का अनुमान करके लुई XVI ने नेशनल असेंबली को मान्यता दे दी ।
🔹 4 अगस्त 1789 की रात को असेंबली ने करों , कर्तव्यों और बंधनों वाली सामंती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश पारित कर दिया ।
🔹 1791 में फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की नीव पड़ी ।
❇️ नेशनल असेंबली का उद्देश्य :-
🔹 इसका मुख्य उद्देश्य था सम्राट की शक्तियों को सीमित करना ।
🔹 एक व्यक्ति के हाथ में केंद्रीकृत होने के बजाय अब इन शक्तियों को अलग – अलग संस्थाओं में बांटा जाएगा ।
- जैसे – विधायिका , कार्यपालिका एवं न्यायपालिका
🔹 सन् 1791 के संविधान ने कानून बनाने का अधिकार नेशनल असेंबली को सौंप दिया ।
❇️ नए संविधान के अनुसार :-
🔹 मतदान का अधिकार केवल सक्रिय नागरिकों को मिला जो :-
- पुरुष थे
- जिनकी उम्र 25 वर्ष से अधिक थी ,
- जो कम से कम तीन दिन की मजदूरी के बराबर कर चुकाते थे ,
🔹 महिलाओं एवं अन्य पुरूषों को निष्क्रिय नागरिक कहा जाता था ।
🔹 राजा की शक्तियों को विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका में विभाजित एवं हस्तांतरिक कर दिया गया ।
❇️ राजनीतिक प्रतीकों के मायने :-
🔹 18 वीं सदी में ज्यादातर स्त्री पुरुष पढ़े – लिखे नहीं थे इसलिए महत्वपूर्ण विचारों का प्रसार करने के लिए छपे हुए शब्दों के बजाय अक्सर आकृतियों और प्रतीकों का प्रयोग किया जाता था ।
🔶 टूटी हुई जंजीर :- दासो को बांधने के लिए जंजीरों का प्रयोग किया जाता था टूटी हुई हथकड़ी उनकी आजादी का प्रतीक है ।
🔶 छड़ो का गट्ठर :- अकेली छड़ को आसानी से तोड़ा जा सकता है पर पूरे गट्ठर को नहीं एकता में ही बल है का प्रतीक है ।
🔶 त्रिभुज के अंदर रोशनी बिखेरती आंख :- सर्वदर्शी आंख ज्ञान का प्रतीक है सूरज की किरणे अज्ञान रूपी अंधेरे को मिटा देती है ।
🔶 राजदंड :- शाही सत्ता का प्रतीक है ।
🔶 अपनी पूंछ मुंह में लिए सांप :- समानता का प्रतीक अंगूठी का कोई और छोर नहीं होता ।
❇️ आतंक राज :-
🔹 सन 1793 से 1794 तक के काल को आतंक का युग कहा जाता है । इस समय रोबिस्प्येर ने नियंत्रण एवं दंड की सख्त नीति अपनाई ।
🔹 इस नीति के तहत गणतंत्र के जो भी शत्रु थे जैसे कुलीन एवं पादरी और अन्य राजनीतिक दलों के सदस्य जो उनके काम से सहमत नहीं है सभी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा और जेल में डाल दिया जाएगा ।
🔹 एक क्रांतिकारी न्यायालय दवारा उन पर मुकदमा चलाया जाएगा और यदि वह दोषी पाते हैं तो गिलोटिन पर चढ़ा कर उनका सिर कलम कर दिया जाएगा ।
🔹 किसानों को अपना अनाज शहरों में ले जाकर सरकार द्वारा तय की गई कीमत पर बेचने के लिए बाध्य किया गया ।
🔹 रोबिस्प्येर ने अपनी नीतियों को इतनी सख्ती से लागू किया कि उसके समर्थक भी त्राहि – त्राहि करने लगे । अंततः जुलाई 1794 में न्यायालय द्वारा उसे दोषी ठहराया गया और गिरफ्तार करके अगले ही दिन उसे गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया ।
❇️ गिलोटिन क्या था ?
🔹 गिलोटिन दो खंभों के बीच लटकते आरे वाली मशीन था जिस पर रखकर अपराधी का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था इस मशीन का नाम इसके आविष्कारक डॉ . गिलोटिन के नाम पर पड़ा ।
❇️ डिरेक्टरी शासित फ्रांस :-
🔹 रोबिस्प्येर के पतन के बाद फ्रांस का शासन माध्यम वर्ग के सम्पन्न लोगों के पास आ गया ।
🔹 उन्होंने पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका डिरेक्टरी को नियुक्त किया जो फ्रांस का शासन देखती थी लेकिन अक्सर विधान परिषद से उनके हितों का टकराव होता रहता था । इस राजनैतिक अस्थिरता का फायदा नेपोलियन बोनापार्ट ने उठाया और उसने 1799 में डिरेक्टरी को खत्म कर दिया और 1804 में फ्रांस का सम्राट बन गया ।
❇️ नेपोलियन :-
🔹 1804 में नेपोलियन ने खुद को फ्रांस का सम्राट घोषित किया ।
🔹 उन्होंने पड़ोसी यूरोपीय देशों को जीतने के लिए, राजवंशों को दूर करने और उन राज्यों का निर्माण करने के लिए निर्धारित किया जहां उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को रखा ।
🔹 उन्होंने यूरोप के आधुनिकीकरणकर्ता के रूप में अपनी भूमिका देखी ।
🔹 अंतत: वह 1815 में वाटरलू में पराजित हुआ ।
❇️ क्या महिलाओं के लिए भी क्रांति हुई ?
🔹 महिलाएं शुरू से ही फ्रांसीसी समाज में अहम परिवर्तन लाने वाली गतिविधियों में शामिल हुआ करती थी । ज्यादातर महिलाएं जीविका निर्वाह के लिए काम करती थी । वे सिलाई – बुनाई , कपड़ों की धुलाई करती थी बाजारों में फल – फूल – सब्जियां बेचती थी ।
🔹 ज्यादातर महिलाओं के पास पढ़ाई लिखाई के मौके नहीं थे यह मौके केवल कुलीनो की लड़कियों अथवा धनी परिवारों की लड़कियों के पास था ।
🔹 इसके बाद उनकी शादी कर दी जाती थी महिलाओं को अपने परिवार का पालन पोषण करना होता था जैसे खाना पकाना , पानी लाना , लाइन लगाकर पावरोटी लाना और बच्चों की देखरेख करना । उनकी मजदूरी पुरुषों की तुलना में कम थी ।
🔹 उनकी एक प्रमुख मांग यह थी कि महिलाओं को पुरुषों के समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए ।
❇️ महिलाओं के जीवन में सुधार लाने के लिए उठाए गए कदम :-
🔹 क्रांतिकारी सरकार ने महिलाओं के जीवन में सुधार लाने वाले कुछ कानून लागू किए जो इस प्रकार है :-
सरकारी विद्यालयों की स्थापना के साथ ही सभी लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया ।
अब पिता उन्हें उनकी मर्जी के खिलाफ शादी के लिए बातें नहीं कर सकते थे ।
अब महिलाएं व्यवसायिक प्रशिक्षण ले सकती है कलाकार बन सकती है और छोटे – मोटे व्यवसाय भी चला सकती है ।
मताधिकार और समान वेतन के लिए महिलाओं का आंदोलन अगली सदी में भी अनेक देशों में चलता रहा ।
अंततः सन 1946 में फ्रांस की महिलाओं ने मताधिकार हासिल कर लिया ।
❇️ दास प्रथा का उन्मूलन :-
दास व्यापार सत्रहवीं शताब्दी में शुरू हुआ ।
फ्रांसीसी सौदागर बंदरगाह से अफ्रीका तट पर जहाज ले जाते थे जहां वे स्थानीय सरदारों से दास खरीदते थे ।
दांसो को हथकड़िया डालकर अटलांटिक महासागर के पार कैरिबिआई देशों तक 3 महीने की लंबी समुद्री यात्रा के लिए जहाजों में ठूंस दिया जाता था ।
वहां उन्हें बागान मालिकों को बेच दिया जाता था ।
बौर्दो और नान्ते जैसे बंदरगाह फलते फुलते दास व्यापार के कारण ही समृद्ध नगर बन गए । 18 वीं सदी में फ्रांस में दास प्रथा की ज्यादा निंदा नहीं हुई ।
लेकिन सन 1794 के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशो में सभी देशों की मुक्ति का कानून पारित किया ।
यह कानून एक छोटी सी अवधि तक ही लागू रहा 10 वर्ष बाद नेपोलियन ने दास प्रथा पुनः शुरू कर दी ।
फ्रांसीसी उपनिवेशों से अंतिम रूप से दास प्रथा का उन्मूलन 1848 में किया ।
❇️ क्रांति और रोजाना की जिंदगी :-
- 1789 से बाद के वर्षों में फ्रांस की पुरुषों और महिलाओं एवं बच्चों के जीवन में अनेक प्रकार के परिवर्तन आए ।
- क्रांतिकारी सरकार ने कानून बनाकर स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्शों को रोजाना की जिंदगी में उतारने का प्रयास किया ।
- फ्रांस के शहरों में अखबारों , पुस्तको एवं छपी हुई तस्वीरों की बाढ़ आ गई जहां से वह तेजौ से गांव देहात तक जा पहुंची ।
- उसके अंदर फ्रांस की घट रही घटनाओं और परिवर्तनों का ब्यौरा और उन पर टिप्पणी होती थी ।
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