आधुनिक विश्व में चरवाहे notes, Class 9 history chapter 5 notes in hindi

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9 Class History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे Notes In Hindi Pastoralists in the Modern world

TextbookNCERT
ClassClass 9
SubjectHistory
Chapter Chapter 5
Chapter Nameआधुनिक विश्व में चरवाहे
Pastoralists in the Modern world
CategoryClass 9 History Notes in Hindi
MediumHindi

आधुनिक विश्व में चरवाहे notes, Class 9 history chapter 5 notes in hindi जिसमे हम घुमंतू  , चरवाहे , घुमंतू चरवाहा , भाबर , बुग्याल , खरीफ , भारत तथा विश्व में पाए जाने वाले प्रमुख घुमंतु आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 9 History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे Pastoralists in the Modern world Notes In Hindi

📚 अध्याय = 5 📚
💠 आधुनिक विश्व में चरवाहे 💠

❇️ घुमंतू :-

🔹 वैसे लोग जो जीवन – यापन की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते रहते है , घुमंतू कहलाते हैं ।

❇️ चरवाहे :-

🔹 वैसे लोग जो मवेशियों को पालकर अपना जीवन यापन करते हैं चरवाहे कहलाते हैं ।

❇️ घुमंतू चरवाहा :-

🔹 वे लोग जो अपने मवेशियों के लिए चारे की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते रहते हैं उन्हें घुमंतू चरवाहा कहते हैं । 

❇️ भाबर :-

🔹 गढ़वाल और कुमाऊँ के इलाके में पहाड़ियों के निचले हिस्से के आस – पास पाया जाने वाला सूखे जंगल के इलाके को ‘ भाबर ‘ कहा जाता है । 

❇️ बुग्याल :-

🔹 ऊँचे पहाड़ों पर स्थित घास के मैदानों ‘ को ‘ बुग्याल कहा जाता है । 

❇️ खरीफ फसल :-

🔹 वह फसल जो वर्षा ऋतु के आरंभ में बोया जाता है तथा शीत ऋतु के आरंभ में काट लिया जाता है ‘ खरीफ ‘ फसल कहलाता है । जैसे – चावल आदि ।

❇️ रवी फसल :-

🔹 वह फसल जो शीत ऋतु के आरंभ में बोया जाता है तथा ग्रीष्म ऋतु के आरंभ में काट लिया जाता है ‘ रवी ‘ फसल कहलाती है । जैसे – गेहूँ , दलहल आदि ।

❇️ भारत तथा विश्व में पाए जाने वाले प्रमुख घुमंतु :-

💠 भारत 💠

क्र.
स.
घुमंडु चरवाहों के नामस्थान
1.गुज्जर बकरवालजम्मू कश्मीर
2.गद्दी हिमाचल प्रदेश
3.भोटिया उत्तराखंड
4.राइका राजस्थान
5.बंजारा  राजस्थान , मध्य प्रदेश
6.मलधारी गुजरात
7.धंगरमहाराष्ट्र
8.कुसमा , कुरूवा , गोल्ला  कर्नाटक , आन्ध्र प्रदेश , तेलंगाना 
9.मोनपा अरूणाचल प्रदेश

💠 विश्व 💠

क्र.
स.
घुमंडु चरवाहों के नामस्थान
1.मसाई केन्या , तंजानिया
2.बेदुइस उत्तरी अफ्रीका
3.बरबेर्स उत्तर पश्चिमी अफ्रीका 
4.तुर्कानाउगांडा
5.बोरान कीनिया
6.मूर्स मोरिटानिया
7.सोमाली सोमालिया 
8.नाम , जुलू दक्षिण अफ्रीका 
9.बेजामिश्र , सूडान

❇️ घुमंतू चरवाहों के भ्रमण के कारण :-

  • सालों भर फसल उगाने वाले कृषि क्षेत्र की कमी ।
  • मवेशियों के लिए चारे और पानी की खोज ।
  • विषम मौसमी दशाओं से स्वयं एवं मवेशियों को बचाने के लिए । 
  • अपने उत्पादों को बचेने के लिए ।

❇️ औपनिवेशिक काल में घुमंतु चरवाहों के जीवन में आए परिवर्तन एवं उसके प्रभाव :-

🔶 परिवर्तन :- 

भूमिकर बढ़ाने के लिए चारागाहों का कृषि भूमि में बदलना । 

वन कानूनों के द्वारा वनों का वर्गीकरण ।

1871 में अपराधी जनजाति नियम लागू किया गया । 

आमदनी बढ़ाने के लिए , भूमि , नहर , नमक , व्यापार यहाँ तक कि जानवरों पर भी टैक्स लगा दिया गया ।

🔶 प्रभाव :-

मवेशियों की संख्या कम होती चली गई । 

स्वतंत्र आवाजाही पर रोक तथा परमिट के बिना आने – जाने पर जुर्माने की व्यवस्था ।

उन्हें अपराधी घोषित कर दिया गया तथा एक क्षेत्र विशेष में ही उन्हें रहने का निर्देश दिया गया । 

स्थानीय पुलिस के सतर्क निगरानी में परमिट के आधार पर ही किये जा सकते थे । 

प्रत्येक समूह को मवेशियों की संख्या के आधार पर पास जारी किया गया जो उन्हें चारागाहों में घुसने से पहले दिखाना पड़ता था । 

इस प्रकार इस टैक्स व्यवस्था ने उनका जीवन और दूभर कर दिया ।

❇️ बदलावों का सामना :-

जानवरों की संख्या कम कर दी ।

नए चरागाहों की खोज ।

जमीन खरीद कर बसना एवं कृषि कार्य करना ।

कुछ चरवाही छोड़ कर मजदूरी करने लगे ।

कुछ व्यापारिक गतिविधियों में संलिप्त हो गए ।

आवाजाही की दिशा में बदलाव ।

❇️ पहाड़ों में घुमंतू चरवाहे और उनकी आवाजाही :-

🔹 जम्मू और कश्मीर के गुज्जर बकरवाल समुदाय के लोग अपने मवेशियों के लिए चरागाहों की तलाश में भटकते – भटकते 19 वीं सदी में यहां आए थे । समय बीतता गया और वह यहीं बस गए सर्दी गर्मी के हिसाब से अलग – अलग चरागाहों में जाने लगे । 

🔹 ठंड के समय में ऊंची पहाड़ियां बर्फ से ढक जाती थी तो वह पहाड़ों के नीचे आकर डेरा डाल लेते थे ठंड के समय में निचले इलाकों में मिलने वाली झाड़ियां ही उनके जानवरों के लिए चारा बन जाती थी ।

🔹 जैसे ही गर्मियां शुरू होती जमी हुई बर्फ की मोटी चादर पिघलने लगती और चारों तरफ हरियाली छा जाती । यहां उगने वाली घास से मवेशियों का पेट भी भर जाता था और उन्हें सेहतमंद खुराक भी मिल जाती थी । 

❇️ गद्दी चरवाहों की आवाजाही :-

🔹 पास के ही पहाड़ों में चरवाहों का एक और समुदाय रहता था हिमाचल प्रदेश के इस समुदाय को गद्दी कहते थे ।

🔹 यह लोग भी मौसमी उतार चढ़ाव का सामना करने के लिए इसी तरह सर्दी- गर्मी के हिसाब से अपनी जगह बदलते रहते थे । अप्रैल आते आते हुए उत्तर की तरफ चल पड़ते हैं और पूरी गर्मियां स्पीति में बिता देते थे । सितंबर तक वह दोबारा वापस चल पड़ते वापसी में वे स्पीति के गांव में एक बार फिर कुछ समय के लिए रुक जाते ।

❇️ पठारों , मैदानों और रेगिस्तानों में घुमंतू चरवाहे और उनकी आवाजाही :-

🔹 चरवाहे सिर्फ पहाड़ों में ही नहीं रहते थे । वे पठारो , मैदानों और रेगिस्तान में भी बहुत बड़ी संख्या में मौजूद थे । 

🔶 धनगर :-

🔹 धंगर महाराष्ट्र का एक जाना माना चरवाहा समुदाय है । बीसवीं सदी की शुरुआत में इस समुदाय की आबादी लगभग 4,67,000 थी ।

🔹 उनमें से ज्यादातर चरवाहे थे हालांकि कुछ लोग कंबल और चादर भी बनाते थे और कुछ लोग भैंस पालते थे । ये बरसात के दिनों में महाराष्ट्र के मध्य पंडालों में रहते थे । यह एक ऐसा इलाका था जहां बारिश बहुत कम होती थी और मिट्टी भी कुछ खास उपजाऊ नहीं थी चारों तरफ सिर्फ कटीली झाड़ियां होती थी ।

🔹 बाजरे जैसी सूखी फसलों के अलावा यहां और कुछ नहीं उगता था अक्टूबर के आसपास धंगर बाजरे की कटाई करते थे । महीने भर पैदल चलने बाद वे कोंकण के इलाके में जाकर डेरा डाल देते थे । अच्छी बारिश और उपजाऊ मिट्टी की बदौलत इस इलाके में खेती खूब होती थी किसान भी इन चरवाहों का दिल खोलकर स्वागत करते थे ।

🔹 जिस समय वे कोकण पहुंचते थे उसी समय वहां के किसान खरीफ की फसल काटकर अपने खेतों को रबी की फसल के लिए दोबारा उपजाऊ बनाते थे बारिश शुरू होते ही धंगर तटीय इलाके छोड़कर सूखे पठारो की तरफ लौट जाते थे क्योंकि भेड़े गीले मानसूनी हालात को बर्दाश्त नहीं कर पाती ।

❇️ बंजारा जनजाति :-

🔹 चरवाहों में एक जाना पहचाना नाम बंजारों का भी है बंजारे उत्तर प्रदेश , पंजाब , मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के कई इलाकों में रहते थे । यह लोग बहुत दूर – दूर तक चले जाते थे और रास्ते में अनाज और चारे के बदले गांव वालों को खेत जोतने वाले जानवर और दूसरी चीजें बेचते थे ।

❇️ औपनिवेशिक शासन और चरवाहों का जीवन :-

🔹 औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिंदगी में बहुत ज्यादा बदलाव आया उनको इधर उधर आने जाने के लिए बंदीशे लगा दी और उनसे लगान भी वसूल किया जाता था और उस लगान में भी वृद्धि की गई और उनके पैसे और हुनर पर भी बहुत बुरा असर पड़ा ।

🔶 पहली बात :-

🔹 अंग्रेज सरकार चरागाहों को खेती की जमीन में तब्दील कर देना चाहते थे जमीन से मिलने वाला लगान उसकी आमदनी का एक बड़ा स्रोत था । अगर खेती का क्षेत्रफल बढ़ता तो उनकी आय में भी बढोतरी होती इतना ही नहीं कपास , गेहं और अन्य चीजों के उत्पादन में भी इजाफा होता जिनकी इंग्लैंड में बहुत ज्यादा जरूरत थी ।

🔹 अंग्रेज अफसरों को बिना खेती की जमीन का कोई मतलब समझ में नहीं आता था उन्हें लगता था कि इस जमीन से ना तो लगान मिल रहा है ना ही उपज हो रही है तो अंग्रेज ऐसी जमीनों को बेकार मानते थे और ऐसी जमीनों को खेती के लायक बनाना जरूरी समझते थे इसीलिए उन्होंने भूमि विकास के लिए नए नियम बनाए ।

🔶 दूसरी बात :-

🔹 19 वीं सदी के मध्य तक आते – आते देश के अलग – अलग प्रांतों में वन अधिनियम पारित किए गए । इन कानूनों की आड़ में सरकार ने ऐसे कई जंगलों को आरक्षित वन घोषित कर दिया । जहां पर देवदार या साल जैसी कीमती लकड़ियां पैदा होती थी जंगलों में चरवाहों के घुसने पर पाबंदी लगा दी गई ।

🔹 जंगलों में चरवाहों को कुछ परंपरागत अधिकार तो दिए गए लेकिन उनका आना – जाना पर अभी भी बंदिशे लगा दी गई थी वन अधिनियमों ने चरवाहों की जिंदगी बदल डाली अब उन्हें उन जंगलों में जाने से रोक दिया गया जो पहले मवेशियों के लिए बहुमूल्य चारे का एक स्रोत थी । जिन क्षेत्रों में उन्हें प्रवेश की छूट दी गई वहां भी उन पर बहुत कड़ी नजर रखी जाती थी जंगलों में दाखिल होने के लिए उन्हें परमिट लेना पड़ता था ।

🔶 तीसरी बात :-

🔹 अंग्रेज अफसर घुमंतू किस्म के लोगों को शक की नजर से देखते थे घुमंतूओ को अपराधी माना जाता था । 1871 में औपनिवेशिक सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम ( Criminal Tribes Act ) पारित किया इस कानून के तहत व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे समुदाय को अपराधी समुदाय की सूची में रख दिया गया । 

🔹 उन्हें कुदरती और जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया गया इस कानून के लागू होते ही ऐसे सभी समुदाय को कुछ खास बस्तियों में बस जाने का हुक्म सुना दिया गया उसको बिना परमिट आना – जाना पर रोक लगा दिया गया ।

🔶 चौथी बात :-

🔹 अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए अंग्रेजों ने लगान वसूलने का हर संभव रास्ता अपनाया । उन्होंने जमीन , नेहरो के पानी , नमक और यहां तक कि मवेशियों पर भी टैक्स वसूलने का ऐलान कर दिया । देश के ज्यादातर इलाकों में 19 वी सदी के मध्य से ही चरवाही टैक्स लागू कर दिया गया था ।

🔹 प्रति मवेशी टैक्स की दर तेजी से बढ़ती चली गई और टैक्स वसूली की व्यवस्था दिनोंदिन मजबूत होती गई । 1850 से 1880 के दशक के बीच टैक्स वसूली का काम बाकायदा बोली लगाकर ठेकेदारों को सौंपा जाता था । किसी भी चारागाह में दाखिल होने के लिए चरवाहों को पहले टैक्स अदा करना पड़ता था चरवाहे के साथ कितने जानवर है और उसने कितना टैक्स चुकाया है इन सभी बातों को दर्ज किया जाता था ।

❇️ इन बदलावों ने चरवाहों कि जिंदगी को किस तरह प्रभावित किया :-

🔹 इन चीजों की वजह से चरवाहों की जिंदगी बहुत बुरी तरह प्रभावित हुई क्योंकि इन चीजों की वजह से चरागाहों की कमी पैदा हो गई । चरागाह खेतों में बदलने लगे तो बचे – कुचे चरागाहों में चरने वाले जानवरों की तादाद बढ़ने लगी ।

🔹 और चरागाहों के बेहिसाब इस्तेमाल से चरागाहों का स्तर गिरने लगा जानवरों के लिए चारा कम पढ़ने लगा फलस्वरुप जानवरों की सेहत और तादाद भी गिरने लगी चारे की कमी और जब – तब पढ़ने वाले अकाल की वजह से कमजोर और भूखे जानवर बड़ी संख्या में मरने लगे ।

❇️ चरवाहों ने इन बदलावों का सामना कैसे किया :-

🔹 कुछ चरवाहों ने तो अपने जानवरों की संख्या ही कम कर दी । बहुत सारे चरवाहे नई नई जगह ढूंढने लगे । अब उन्हें जानवरों को चराने के लिए नई जगह ढूंढनी थी अब वह हरियाणा के खेतों में जाने लगे जहां कटाई के बाद खाली पड़े खेतों में वे अपने मवेशियों को चरा सकते थे ।

🔹 समय गुजरने के साथ कुछ धनी चरवाहे जमीन खरीद कर एक जगह बस कर रहने लगे । उनमें से कुछ नियमित रूप से खेती करने लगे जबकि कुछ व्यापार करने लगे जिन चरवाहों के पास ज्यादा पैसे नहीं थे ब्याज पर पैसे लेकर दिन काटने लगे ।

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