12 Class Geography – II Notes In Hindi Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन एवं सततपोषणीय विकास
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Geography 2nd Book |
Chapter | Chapter 9 |
Chapter Name | भारत के संदर्भ में नियोजन एवं सततपोषणीय विकास |
Category | Class 12 Geography Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Class 12 Geography – II Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन एवं सततपोषणीय विकास Notes In Hindi जिसमे नियोजन , खण्डीय नियोजन , प्रादेशिक नियोजन , पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम , सूखा संभावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम आदि जैसे विषयो के बारे में विस्तार से जानेंगे ।
Class 12 Geography – II Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन एवं सततपोषणीय विकास Notes in Hindi
📚 अध्याय = 9 📚
💠 भारत के संदर्भ में नियोजन एवं सततपोषणीय विकास 💠
❇️ नियोजन :-
🔹 नियोजन का तात्पर्य सोच विचार की प्रक्रिया , कार्यक्रम की रूप रेखा तैयार करना तथा उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए गतिविधियों के क्रियान्वयन से है ।
❇️ खण्डीय नियोजन :-
🔹 अर्थव्यस्था के विभिन्न सेक्टरों जैसे – कृषि , सिंचाई , विनिर्माण , ऊर्जा , परिवहन , संचार , सामाजिक अवसंरचना और सेवाओं के विकास के लिए कार्यक्रम बनाना और उन्हें लागू करना ।
❇️ प्रादेशिक नियोजन :-
🔹 देश के सभी क्षेत्रों में आर्थिक विकास समान रूप से नहीं हो पाता । इसलिए विकास का लाभ सभी को समान रूप से पहुँचाने के लिए योजनाकारों ने प्रदेशों की आवश्यकता के अनुसार नियोजन किया । इस प्रादेशिक नियोजन कहते हैं ।
❇️ पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम :-
🔹 नेशनल कमेटी आन दि डेवलपमेंट ने 1981 में 600 मी . से अधिक की ऊँचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों को इस योजना के अन्तर्गत शामिल करने की सिफारिश की जो जनजातियों के लिए बने योजनाओं के अन्तर्गत न आते हो । इन क्षेत्रों की भूआकृति , पारिस्थितिकी , सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थिति को ध्यान में रखकर विकास योजनायें बनायी जाती है ।
❇️ पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम को बनाते समय किन बातों को ध्यान में रखा :-
- सभी लोगों को लाभ मिले ।
- स्थानीय संसाधनों एवं प्रतिभाओं का विकास हो ।
- पिछड़े क्षेत्रों को व्यापार में शोषण से बचाना आदि ।
❇️ सूखा संभावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम :-
🔹 इस कार्यक्रम की शुरूवात चौथी पंचवर्षीय योजना में हुई ,
🔶 उददेश्य :- इसका उददेश्य सूखा संभावी क्षेत्रों में लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना था व उसके प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना था ।
🔹 पांचवी पचवर्षीय योजना में इस कार्यक्रम के अंतर्गत अधिक श्रम की आवश्यकता वाले सिविल निर्माण कार्यों पर बल दिया ताकि अधिक से अधिक लोगों को रोज़गार दिया जा सके ।
🔹 इसके अंतर्गत सिंचाई परियोजनाओं , भूमि विकास कार्यक्रमों वनीकरण , चारागाह विकास कार्यक्रम शुरू किये गये ।
🔹 गांवों में आधार भूत अवसंरचना – विद्युत , सड़कों , बाजार – ऋण सुविधाओं और सेवाओं पर बल दिया गया ।
🔹 इस क्षेत्र के विकास की रणनीति में जल , मिट्टी , पौधों , मानव तथा पशु जनसंख्या के बीच परिस्थितिकीय संतुलन , पुनः स्थापन पर ध्यान देने पर बल दिया गया ।
❇️ भरमौर क्षेत्र विकास कार्यक्रम :-
🔹 यह क्षेत्र विकास योजना भरमौर क्षेत्र के निवासियों की जीवन गुणवत्ता को सुधारने व हिमाचल के अन्य प्रदेशों के समानान्तर विकास के उद्देश्य से शुरू की गई थी ।
🔶 इसके लिए निम्न कदम उठाये गये ।
- आधारभूत अवसंरचनाओं जैसे विद्यालयों , अस्पतालों का विकास किया गया ।
- स्वच्छ जल , सड़कों , संचार तंत्र एवं बिजली की उपलब्धता पर ध्यान दिया गया ।
- कृषि के नये एवं पर्यावरण अनुकूल तरीकों को प्रोत्साहित किया गया ।
- पशुपालन के वैज्ञानिक तरीकों को प्रोत्साहित किया गया ।
❇️ समाजिक व आर्थिक प्रभाव :-
- जनसंख्या में साक्षरता दर बढ़ी विशेषरूप से स्त्रियों की साक्षरता दर में वृद्धि हुई ।
- दालों एवं अन्य नगदी फसलों के उत्पादन में वृद्धि हुई ।
- कुरीतियों जैसे बाल – विवाह से समाज को मुक्ति मिली ।
- लिंगानुपात में सुधार हुआ ।
- लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि हुई ।
❇️ सतत् पोषणीय विकास :-
🔹 एक ऐसा विकास जो भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा आवश्यकता की पूर्ति हेतु किया जाता है , सतत् पोषणीय विकास कहलाता है ।
🔹 उदाहरण स्वरूप – भौम जल का उपयोग करते समय इस बात का ध्यान रखना कि जलस्तर अधिक नीचे न जाने पाये और वर्षा जल या धरातलीय जल रिस कर अन्दर चला जाये ।
❇️ इंदिरा गांधी नहर सिंचाई के पर्यावरण पर प्रभाव :-
🔶 सकारात्मक प्रभाव :-
🔹 अब , लंबी अवधि के लिए मिट्टी की पर्याप्त उपलब्धता है । विभिन्न वनीकरण और चारागाह विकास कार्यक्रम अस्तित्व में आए । हवा के कटाव और नहर प्रणालियों की गाद में काफी कमी दर्ज की गई है ।
🔶 नकारात्मक प्रभाव :-
🔹 गहन सिंचाई और पानी के अत्यधिक उपयोग के कारण जल भराव और मिट्टी की लवणता की एक खतरनाक दर दर्ज की गई है ।
❇️ इंदिरा गांधी नहर सिंचाई के कृषि पर प्रभाव :-
🔶 सकारात्मक प्रभाव :-
🔹 इस नहर की सिंचाई से खेती योग्य भूमि में वृद्धि हुई और फसल की तीव्रता बढ़ी । मुख्य वाणिज्यिक फसलों यानी गेहूं , चावल , कपास , मूंगफली ने सूखा प्रतिरोधी फसलों जैसे चना , बाजरा , और ज्वार की जगह ले ली ।
🔶 नकारात्मक प्रभाव :-
🔹 गहन सिंचाई भी जल जमाव और मिट्टी की लवणता का कारण बन गई है । इसलिए , निकट भविष्य में यह कृषि की स्थिरता को बाधित कर सकता है ।
❇️ इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र में सतत् पोषणीय विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक उपाय :-
🔹 जल प्रबन्धन नीति का कठोरता से क्रियान्वयन करना ।
🔹 सामान्यतः जल सघन फसलों को नहीं बोना चाहिए ।
🔹 कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम जैसे नालों को पक्का करना , भूमि विकास तथा समतलन और बाड़बन्दी पद्धति प्रभावी रूप से कार्यान्वित की जाए ताकि बहते जल की क्षति मार्ग में कम हो सके ।
🔹 जलाक्रान्त , वृक्षों की रक्षण मेखला का निर्माण और चारागाह विकास , पारितंत्र विकास से लिए अति आवश्यक है ।
🔹 निर्धन आर्थिक स्थिति वाले भूआवदियों की कृषि के पर्याप्त मात्रा में वितीय और संस्थागत सहायता उपलब्धत कराना ।
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