12 Class Physical Education Chapter 10 खेलों में प्रशिक्षण Notes In Hindi Training in Sports
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Physical Education |
Chapter | Chapter 10 |
Chapter Name | खेलों में प्रशिक्षण Training in Sports |
Category | Class 12 Physical Education Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
खेलों में प्रशिक्षण Notes, class 12 physical education chapter 10 notes in hindi जिसमे हम शक्ति , सहनक्षमता , गति , लचक , तालमेल संबधी योग्यताएं , सर्किट ट्रेनिंग आदि के बारे में पड़ेंगे ।
Class 12 Physical Education Chapter 10 खेलों में प्रशिक्षण Training in Sports Notes In Hindi
📚 अध्याय = 10 📚
💠 खेलों में प्रशिक्षण 💠
❇️ शक्ति :-
🔹 यह वह योग्यता है जो किसी प्रतिरोध के विरुद्ध कार्य करने में मदद करती है ।
❇️ शक्ति के प्रकार :-
- गतिशील शक्ति :-
- अधिकतम शक्ति :- अधिकतम अवरोध के विरुद्ध कार्य करने की ।
- योग्यता विस्फोटक शक्ति :- अवरोध के विरुद्ध तेजी से कार्य करने की योग्यता ।
- शक्ति सहनशीलता :- अवरोद्ध के विरुद्ध थकावट की स्थिति में कार्य करने की योग्यता ।
- स्थिर शक्ति
❇️ शक्ति को बढ़ाने की प्रशिक्षण विधियाँ :-
- आईसोमैट्रिक प्रशिक्षण विधि
- आईसोटोनिक प्रशिक्षण विधि
- आईसोकाईनटिक प्रशिक्षण विधि
❇️ शक्ति को विकसित करने की विधियाँ :-
🔶 आइसोमेट्रिक व्यायाम :-
🔹 आइसोमेट्रिक शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है ‘ आइसो- समान ‘ ‘ मेट्रिक – लम्बाई ‘ अर्थात् जब हम इन व्यायामों को करते है तो मांसपेशियों की लम्बाई में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता ।
🔹 इन व्यायामों में किसी भी प्रकार का कार्य होता हुआ दिखाई नहीं पड़ता । जैसे पक्की दीवार को धकेलने की कोशिश करना , व्यायामों को कहीं पर भी किया जा सकता है एवं इनमें कम उपकरण व समय की आवश्यकता होती है । चोट के दौरान शक्ति को बनाए रखने में यह व्यायाम सहायक होते है ।
🔹 उदाहरण :- तीरदांजी , भार उठाना , जिम्नास्टिक आदि ।
🔶 आइसोटॉनिक व्यायाम :-
🔹 आइसो- समान ( same ) ‘ और ‘ टॉनिक तनाव ‘ इन प्रकारों के व्यायामों में गतिविधियाँ स्पष्ट रूप से होती हुई दिखाई देती है मांसपेशियों की लम्बाई बढ़ती है और घटती हुई दिखाई देती है जिसे असेन्ट्रीक ( Ecentric ) संकुचन और ( Concentric ) संकुचन कहते है जैसे किसी बॉल को फेकना , दौड़ना भागना , इत्यादि ।
🔹 इस प्रकार के संकुचन ज्यादातर खेल – कूद में देखे जाते हैं । इन प्रकार के व्यायाम को उपकरण के साथ तथा बिना उपकरण के किया जा सकता है इन व्यायामों से लचक तथा मांसपेशियों की लम्बाई में वृद्धि होती है तथा खेलों में अनुकूलन के लिए सहायक होते हैं ।
🔶 आइसोकाइनेटिक व्यायाम :-
🔹 आइसो- समान ‘ और ‘ काइनेटिक -गति ‘ इन व्यायामों को सन् 1968 में जे . जे . पेरिन ने बनाया था । इन व्यायामों को विशिष्ट निर्मित मशीनों के द्वारा किया जाता है । इन व्यायामों के द्वारा मांसपेशियों की शक्ति विकसित होती है ज्यादातर खेल – कूद में इन व्यायामों का उपयोग नहीं किया जाता है परंतु जल क्रीडा ( खेल ) स्केटिंग रस्सी पर चढ़ना , नॉव चलाना आदि में यह व्यायाम दिखाई पड़ते है ।
❇️ सहनशीलता :-
🔹 यह वह योग्यता है जो किसी कार्य को लंबे समय तक निरन्तर करने में अथवा थकावट की स्थिति में कार्य करने में मदद करती है ।
❇️ सहनशीलता के प्रकार :-
🔹 क्रिया के प्रकृति के अनुरूप :-
🔶 आधारभूत सहन क्षमता :- व्यक्ति की वह योग्यता है जिसमें बहुत सारी शारीरिक मांसपेशियों के द्वारा धीमी गति से लम्बे समय तक हलचल कर सकता है जैसे कि दौड़ना , चलना , तैरना इत्यादि ।
🔶 सामान्य सहन क्षमता :- वह योग्यता है जिसमें व्यक्ति थकान की स्थिति में भी हलचल को करता रहे । जैसे , ऐरोबिक तथा ऐनोरोबिक गतिविधियाँ इत्यादि ।
🔶 विशिष्ट सहन क्षमता :- वह योग्यता , विशिष्ट खेलों में अलग – अलग रूप में उपयोग किया जाता है उदाहरण- मुक्केबाजी ओर कुश्ती अलग – अलग प्रकार के विशिष्ट दमखम की आवश्यकता होती है ।
🔹 क्रिया के समय के अनुसार :-
🔶 गति सहन क्षमता :- वह योग्यता है जिसमें व्यक्ति थकान के बावजूद किसी भी गति को 45 सैकिंड तक तेजी से कर सकता जैसे 100 mt.sprint
🔶 लघु अवधि सहन क्षमता :- यह योग्यता 45 सैकिंड -2 मिनट तक चलने वाली गतिविधियाँ शामिल है जैसे , 800 मी . दौड़ ।
🔶 मध्यम अवधि सहन क्षमता :- इस योग्यता में 2 मिनट से 11 मिनट तक चलने वाली गतिविधियाँ शामिल है । जैसे- 1500 मी . दौड़ ।
🔶 दीर्घ अवधि सहन क्षमता :- इस योग्यता में 11 मिनट से अधिक चलने वाली गतिविधियाँ शामिल है जैसे 5000 मी . क्रॉस कंट्री तथा मैराथन दौड़ आदि ।
❇️ सहनशीलता को बढ़ाने की विधियाँ :-
🔶 फार्टलेक विधि :-
🔹 यह सहन क्षमता को बढ़ाने की विधि है स्वीडन के गोस्ट ‘ होल्मर ने 1930 में इसे ‘ स्पीड प्ले ‘ के नाम से भी जाना जाता है इस विधि में धावक अपने अनुसार अपनी गति को आसपास के वातावरण के अनुकूल परिवर्तित कर सकता है ।
🔹 इस विधि के द्वारा सहन क्षमता का विकास होता है खिलाड़ी अपनी गति वातावरण के अनुसार परिवर्तित करता है अतः यह विधि स्वतः अनुशासति कहलाती है इसमें हृदय गति 140 – 180 प्रति मिनट के बीच रहती है । फार्टलेक प्रशिक्षण में दौड़ गति कम ज्यादा होती रहती है ।
🔶 उत्तर- निरन्तर प्रशिक्षण विधि :-
🔹 इस तरह के व्यायामो को लम्बे समय तक बिना रुके किया जाता है । इसलिए इनमें कार्य करने की प्रबलता ( intensity ) कम होती है । खिलाड़ी की हृदय गति व्यायामों के दौरान 140-160 प्रति मिनट होनी चाहिए । व्यायाम करने की अवधि 30 मिनट से अधिक होती है । इसमें , दौड़ना , पैदल चलना , साइकिल चलाना और क्रॉस कंट्री दौड़ शामिल है ।
🔶 इन्टरवल / अन्तराल प्रशिक्षण विधि :-
🔹 यह विधि ध वकों की सहन क्षमता विकसित करने के लिए बहुत प्रभावशाली है बार – बार दौड़ के बीच धावकों को अन्तराल दिया जाता है । जिसमें की वह पूरी तरह पुर्नलाभ प्राप्त नहीं करते ।
🔹 इसमें हृदय गति 180 तक पहुँच जाती है तथा जब यह 120 तक वापस आ जाए तो वह दोबारा उस कार्य को करता है । धावको की हृदय गति को जाँचने के बाद ही प्रशिक्षण भार दिया जाना चाहिए । इसमें मध्यम दूरी की दौड़ो , फुटबॉल तथा हॉकी इत्यादि शामिल है ।
❇️ गति :-
🔹 यह वह योग्यता है जो किसी क्रिया को जल्द से जल्द करने में मदद करते है ।
❇️ गति के प्रकार :-
🔶 प्रतिक्रिया गति योग्यता :- किसी संकेत के विरुद्ध जल्द जल्द कार्य करने की योग्यता ।
🔶 त्वरण गति योग्यता :- अपने अधिकतम गति की स्थिति जल्द से जल्द को प्राप्त करने की योग्यता ।
🔶 लोकोमोटर गतियोग्यता :- अधिकतम गति की स्थिति को लंबे समय तक बनाये रखने की योग्यता ।
🔶 क्रिया गति योग्यता :- किसी एक क्रिया को जल्द से जल्द करने की योग्यता ।
🔶 गति सहनशीलता :- थकावट की स्थिति में किसी क्रिया को जल्द से जल्द करने की योग्यता ।
❇️ गति को विकसित करने की विधियाँ :-
🔶 निर्धारित दौड़ :- निर्धारित दौड़ो का अर्थ है किसी दूरी को एक ही चाल से दौड़ना । सामान्यत : निर्धारित दौड़ो में 800 मीटर तथा उससे अधिक की दौड़े शामिल होती है । एक धावक 300-320 मी . पूरी से दौड़ सकता है लेकिन लम्बी दौड़ो में अपनी गति को कम करके वह ऊर्जा को बचाता है ।
🔶 त्वरण दौड़ :- त्वरण दौड़ के द्वारा गति को विकसित किया जाता है जिससे की अप्रत्यक्ष रूप से विस्फोटक शक्ति तकनीक , लचक और क्रियाशील गति को विकसित किया जाता है । यह धावक की वह योग्यता है जिसमें वह स्थिर अवस्था से तीव्र अवस्था को प्राप्त करता है । सीधे तौर पर त्वरण गति को विकसित करने के लिए एक धावक को 25 से 30 मी . 6 से 12 बार तीव्र गति से दौड़ना चाहिए । 1 धावक को 5 से 6 सैकिंड के अन्दर अधिकतम गति प्राप्त कर लेनी चाहिए । दो दौड़ों के बीच में पर्याप्त अन्तराल होना चाहिए ।
❇️ लचक :-
🔹 शरीर के जोड़ो की गतियों के विस्तार को लोच / लचक कहते है ।
❇️ लचक के प्रकार :-
🔶 सक्रिय लचक :- बिना किसी बाहरी सहायता के शरीर के जोड़ो का अधिक दूर तक गति करने को सक्रिय लचक कहा जाता है । जैसे- खिचांव वाला व्यायाम बिना किसी व्यक्ति की सहायता से करना ।
🔶 अक्रिय लचक :- अक्रिय लचक शरीर की वह योग्यता है जिसके द्वारा बाहरी सहायता से अधिक दूरी तक गतियां की जा सकती है जैसे- किसी सहयोगी द्वारा खिचांव वाले व्यायाम करना ।
❇️ सक्रिय लचक के प्रकार :-
🔶 स्थिर लचक :- जब कोई खिलाड़ी लेटने , बैठने या खड़े होने की क्रियाएं करता है तब यह क्रियाएं स्थिर अवस्था में की जाती हैं उसे स्थिर लचक कहते हैं ।
🔶 गतिशील लचक :- इस प्रकार की लचक की आवश्यकता चलते या दौड़ते समय होती है गतिशील लचक को खिचाव व्यायामों द्वारा बढ़ाया भी जा सकता है ।
❇️ लोच / लचक को विकसित करने की विधियाँ :-
🔶 खिंचाव और रोकने की विधि :- हम अपने जोड़ो को अधिकतम सीमा तक खींचते है तथा पहले की स्थिति में आने से पूर्व कुछ सेंकेड वहीं पर रूकते है । जोड़ो के खिचांव को रोकने की स्थिति 3 से 8 सेकेंड की होनी चाहिए । इस विधि का प्रयोग निष्क्रीय लचक में सुधार के लिए भी किया जाता है ।
🔶 बैलिस्टिक विधि :- इस विधि में खिंचाव वाले व्यायाम घुमाकर किए जाते है इसलिए इन्हें बैलिस्टिक विधि कहा जाता है । इन व्यायामों को करने से पहले शरीर को गर्माना आवश्यक होता है । इन व्यायामों में स्नायुओं में अत्याधिक खिचाव होने के कारण चोट लगने की सम्भावना रहती है । इन व्यायामों को लय में किया जाता है ।
🔶 पोस्ट आइसोमैट्रिक विधि :- यह विधि प्रोपीओसेप्टिव नाडी – पेशीय सरलीकरण के सिंद्धात पर आधारित है अर्थात यदि किसी स्नायु का अधिकतम सकुंचन कुछ सैकेंड के लिए किया जाता है तथा वह उसी स्थिति में 6 से 7 सैकेंड तक उस खिचांव का प्रतिरोध सहता है । उसे पोस्ट आइसोमैट्रिक विधि कहते है किसी स्नायु समूह को 8 से 10 सैकेड़ की अवधि तक खिंचाव देना चाहिए तथा इसे 4 से 8 बार दोहराना चाहिए ।
❇️ खेलों में तालमेल संबंधी योग्यताओं :-
🔹 तालमेल संबंधी योग्यताएँ उन योग्यताओं को कहते है । जिसमें की व्यक्ति अपनी गतिविधियों को व्यापक व संतुलित रूप से नियंत्रित कर सकता है । खिलाड़ी इन योग्यताओं के द्वारा गतिविधियों के समूह को प्रभावशाली व अच्छे ढंग से करने में सक्षम होता है । तालमेल संबंधी योग्यताएं प्राथमिक रूप से केन्द्रिय स्नायु संस्थान ( CNS ) पर निर्भर करती है ।
❇️ तालमेल संबंधी योग्यताओं के प्रकार :-
- अवलोकन योग्यता
- स्थिति निर्धारण योग्यता
- युग्मक योग्यता
- प्रतिक्रिया योग्यता
- संतुलन योग्यता
- लय योग्यता
- ढलने की ( अनुकूल ) योग्यता
❇️ परिधि प्रशिक्षण / सक्रिट ट्रेनिंग :-
🔹 परिधि प्रशिक्षण एक विशिष्ट विधि है जिसका इस्तेमाल शारीरिक पुष्टि को स्तर को बढ़ाने के किये जाते है । इस विधि में सभी स्टेशन पर चयनित व्यायामों को बिना रुके एक सृकिट के रूप में पूरा किया जाता है ।
❇️ परिधि प्रशिक्षण के नियम :-
कुल स्टेशनों की संख्या 6 से 10 तक हो सकती है ।
किन्हीं लगातार दो स्टेशनों पर कोई भी एक व्यायाम की पुर्नवृत्ति नहीं होनी चाहिए ?
किन्हीं लगातार दो स्टेशनों पर किसी भी एक अंग से संबंधित व्यायाम नहीं करना चाहिए ।
किन्हीं दो स्टेशन के बीच उचित दूरी होती चाहिए ।
किसी भी स्टेशन पर किये जाने वाले व्यायाम का समय खिलाड़ी की पुष्टि के अनुरूप होना चाहिए ?
बिना उपकरणों के किये जाने वाले व्यायामों का चयन अधिक करना चाहिए ।
किन्हीं दो स्टेशन के बीच रुकने का समय नहीं दिया जायेगा ।
किन्हीं दो सृकिट के बीच 12 मिनट तक का अन्तराल दिया जा सकता है ।
किसी भी एक प्रशिक्षण अन्तराल में अधिकतम तीन सृकिट करवाये जा है ।
सृकिट प्रशिक्षण में भाग लेने से पूर्व वार्म – आय कर लेना चाहिए ?
सभी स्टेशनो पर क्रिया तेजी के साथ करनी चाहिए ।
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