खेलों में बच्चे तथा महिलाएँ Notes, Class 12 physical education chapter 5 notes in hindi

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12 Class Physical Education Chapter 5 खेलों में बच्चे तथा महिलाएँ Notes In Hindi Children and Sports

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectPhysical Education
Chapter Chapter 5
Chapter Nameखेलों में बच्चे तथा महिलाएँ
Children and Sports
CategoryClass 12 Physical Education Notes in Hindi
MediumHindi

खेलों में बच्चे तथा महिलाएँ Notes, Class 12 physical education chapter 5 notes in hindi जिसमे हम गामक विकास तथा प्रभावित करने वाले कारक , वृद्धि तथा विकास की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार व्यायाम के लिए सुझाव , . आसान संबंधी विकृतियाँ – घुटनों का टकराना , चपटे पैर , गोल कंधे , आगे का कूबड़ , पीछे का कूबड़ , घनुषाकार टाँगे , स्कोलिओसिस तथा सुधारात्मक उपाय भारत में महिलाओं की खेलों में भागीदारी विशेष परिस्थितियों- प्रथम रजोदर्शन , मासिक धर्म का सामान्य न होना महिला एथलीट त्रय- अस्थि सुषिरिता , ऋतुरोध या रजोरोध , भोजन संबंधी विकार लाना , अर्थात गामक विकास से तात्पर्य जन्म से मृत्यु तक विभिन्न गतियों के विकास से है आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 12 Physical Education Chapter 5 खेलों में बच्चे तथा महिलाएँ Children and Sports Notes In Hindi

📚 अध्याय = 5 📚
💠 खेलों में बच्चे तथा महिलाएँ 💠

❇️ गामक विकास का अर्थ :-

🔶 एडोल्फ , वेज और मैरिन के अनुसार :-

🔹 गामक विकास का अर्थ है शिशुओं द्वारा अपनी शारीरिक गतियों को नियंत्रित करने की क्षमता । यह शिशु के सहज रूप से हाथ हिलाने अथवा पैर मारने से प्रारंभ होकर चलने – फिरने व जटिल खेल – कूद कौशल का नियंत्रित अनुकूलन है ।

❇️ गामक विकास :-

🔹 शिशु की अस्थियों और मांसपेशियों के विकास के कारण उसकी शारीरिक गतिविधियों को करने की क्षमता गामक विकास कहलाती है ।

❇️ गामक विकास का शाब्दिक अर्थ :-

🔹 गामक विकास का शाब्दिक अर्थ है – गति संबंधी विकास अर्थात् गामक विकास का तात्पर्य जन्म से मृत्यु तक विभिन्न गतियों के विकास से है । 

❇️ गामक गतिविधियाँ :-

🔹 हर बच्चा अपने जन्म से लेकर वृद्धि एवं विकास की विभिन्न अवस्थाओं के दौरान विभिन्न प्रकार की गतिशील क्रियाएँ , जैसे कि उठना , बैठना , चलना , दौड़ना , कूदना तथा पकड़ना इत्यादि करता है । इस प्रकार की शारीरिक गतिविधियाँ ही गामक गतिविधियाँ कहलाती है ।

🔹 इन गामक गतिविधियों में शरीर की छोटी व बड़ी मांसपेशियाँ व हड्डियाँ मुख्य भूमिका निभाती हैं । इसलिए गामक विकास के अंतर्गत इन मांसपेशियों व हड्डियों का विकास तथा उनका आपसी समन्वय भी निहित है ।

❇️ गामक विकास के प्रकार :-

🔹 गामक विकास दो प्रकार का होता है :-

🔶 स्थूल गामक विकास :- बच्चों के चलने बैठने , दौड़ने इत्यादि जैसी गतिविधियों के लिए उत्तरदायी शरीर की बड़ी मांसपेशियों के कार्यों और उनमें आयी मजबूतीके स्थूल गामक विकास कहते हैं । 

🔶 सूक्ष्म गामक विकास :- बच्चों की छोटी गतिविधियों के लिए उत्तरदायी मांसपेशियों जैसे कि उँगलियाँ तथा हाथ की मांसपेशियां इत्यादि के कार्यों और उनमें अभ्यास द्वारा आयी मजबूती को सूक्ष्म गामाविकास कहते हैं ।

❇️ बच्चों में गामक विकास को प्रभावित करने वाले कारक :-

🔶 वंशानुक्रम तथा आनुवांशिक कारक :- बच्चों का गामक विकास तथा योग्यता काफी हद तक उन जीन्स ( आनुवांशिक प्रभाव ) पर निर्भर करता है जो उन्हें अपने माता – पिता से जन्मजात ही प्राप्त होते हैं । यह कारक बच्चे के शारीरिक भार , आकार , शक्ति आदि को काफी हद तक प्रभावित करता है । 

🔶 वातावरण संबंधी कारक :- पारिवारिक वातावरण तथा सामाजिक कारक बच्चों के गामक विकास को प्रभावित करते हैं । जैसे कि उचित प्रोत्साहन , प्रेम तथा सुरक्षा की भावना , बच्चों को जोखिम उठाने तथा पर्यावरण के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने में सहायता करते हैं । इससे शिशुओं का संवेदिक विकास बेहतर होता है , जो गति विकास के लिए आवश्यक होता है ।

🔶 पोषण :- किसी भी व्यक्ति का संवेदी गामक विकास उसके पोषण पर निर्भर करता है इसलिए पौष्टिक आहार अच्छे गामक विकास के लिए आवश्यक है । पौष्टिक आहार से बच्चे शक्तिशाली बनते हैं तथा उनका गामक विकास तेजी से होता है । जबकि जिन बच्चों को समुचित पौष्टिक आहार नहीं मिलता , उनका गामक विकास धीमी गति से होता है ।

🔶 शारीरिक क्रियाकलाप :- वे बच्चे जो अपनी शारीरिक योग्यता के अनुरूप नियमित शारीरिक क्रियाकलाप नहीं करते , उनका गामक विकास धीमा हो जाता है । 

🔶 अवसर :- जिन बच्चों को शारीरिक क्रियाकलापों के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं उनका संवेदी गामक विकास भी बेहतर होता है । बेहतर संवेदी गामक विकास के कारण बच्चों का गामक विकास भी बेहतर होता है । यदि बच्चों को समुचित अवसर प्रदान नहीं किए जाते तो उन बच्चों में गामक विकास की दर धीमी हो सकती है ।

🔶 शारीरिक अक्षमता :- यदि किसी बच्चे में दृष्टि या श्रवण संबंधी दोष हो तो ऐसे बच्चे के गामक विकास की दर अन्य सामान्य बच्चों की अपेक्षा धीमी रहती है । जबकि यदि बच्चों में किसी भी प्रकार की संवेदी दुर्बलता नहीं हो तो उनका गामक विकास बेहतर तरीके से होगा ।

🔶 मुद्रा दोष / मुद्रा विकार :- यदि किसी बच्चे को कोई आसन संबंधी विकृति , जैसे कि रीढ़ की हड्डी का टेढ़ापन , चपटे पैर , घुटनों का आपस में टकराना अथवा मुड़ी हुई टांगें इत्यादि की समस्या हो तो ऐसे बच्चों का गामक विकास बाधित होता है । जबकि उचित आसन वाले बच्चों का गामक विकास तीव्र गति से होता है ।

🔶 मोटापा :- अकसर देखा गया है कि अधिक शारीरिक भार या मोटे बच्चे गामक विकास संबंधी क्रियाकलापों में अधिक रुचि नहीं लेते जिसके कारण उनका गामक विकास अत्याधिक धीमी गति से होता है ।

🔶 आयु / परिपक्वता :- गामक विकास रातों रात नहीं होता । इस प्रकार का विकास आयु में वृद्धि के अनुरूप , धीरे – धीरे नियमित क्रम से होता है । शैशवकाल तथा विद्यालय प्रवेश से पूर्व , तीव्र गामक विकास का समय होता है । इसके बाद गामक विकास की गति कुछ धीमी हो जाती है । बाल्यावस्था का अंतिम चरण तथा किशोरावस्था का शुरुआती चरण , ग्रहण किए गए प्रभावों को दृढ़ करने का समय होता है , इसी कारण बाल्यावस्था के अंतिम चरण के अंत तक वृद्धि और गामक विकास धीमा हो जाता है ।

🔶 संवेदी क्षतियाँ :- गामक विकास में संवेदी क्षतियाँ अवरोधक भी भूमिका अदा करती है । यदि किसी बालक में दृष्टि दोष है तो वह दूसरे लोगों का अनुसरण ठीक प्रकार से नहीं कर सकता । इसी प्रकार श्रव्य दोष भी गामक विकास में रूकावट उत्पन्न कर सकता है ।

❇️ वृद्धि तथा विकास की विभिन्न अवस्था :-

  • शैशवावस्था ( 0 – 2 वर्ष )
  • प्रारंभिक बाल्यावस्था ( 2 – 6 वर्ष )
  • मध्य बाल्यावस्था ( 7 – 10 वर्ष )
  • उत्तर बाल्यावस्था ( 11 – 12 वर्ष )
  • किशोरावस्था ( 13 – 19 वर्ष )
  • प्रौढ़ावस्था ( 19 – 60 वर्ष )
  • वृद्धावस्था ( 60 वर्ष से अधिक )

❇️ वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार व्यायाम के लिए सुझाव :-

🔶 शैशवास्था :- 

सिर नियंत्रित करने की , बैठने तथा घुटनो के बल चलने की प्रकिया को विकसित करने के व्यायाम :-

स्थूल गामक क्रियाओं को बढावा देना ।

हाथ तथा पैरो को गतिमान करना तथा वस्तु तक पहुंचने के व्यायाम ।

फेंकने , पकड़ने तथा बाल को मारने के व्यायाम ।

🔶 प्रारंभिक बाल्यावस्था ( 3 से 7 वर्ष ) :-

गतिशील कौशलो ( Movement skills ) को विकसित करने की क्षमता वाले व्यायाम :- 

सहभागिता पर जोर देना जीत पर नहीं ।

सूक्ष्म गामक विकास सम्बंधित व्यायाम ।

कम से कम एक घंटे तक मध्यम दर्जे के व्यायाम ।

मनोरंजक तथा सुखद विधियो द्वारा शारीरिक क्रियाएँ ।

साफ और सुरक्षित वातावरण ।

🔶 मध्य बाल्याअवस्था ( 7 से 10 वर्ष ) :-

शारीरिक व्यायाम स्थूल या सूक्ष्म गामक विकास करता है ।

बच्चे क्रियाशील तथा स्फूर्तिमान ।

बच्चों में प्रतिस्पर्धा की इच्छा ।

अच्छा सन्तुलन तथा समन्वय का विकास ।

सामूहिक तथा तालमेल वाली गतिशील ।

मुख्य खेल गति विधियों का विकास ।

संज्ञानात्मक तथा सामाजिक कौशल का विकास ।

🔶 उत्तर बाल्यावस्था ( 8 से 12 वर्ष ) :- 

शरीर नियंत्रित करने , शक्ति तथा समन्वय को विकसित करने के व्यायाम ।

सहनक्षमता सबंधी क्रियाओं को नजरंदाज करना ।

खेलो के मूलभूत नियम सिखाना जैसे निष्पक्ष खेल , साधारण रणनीतियाँ ।

खेल प्रशिक्षण की अवधारणा का परिचय ।

🔶 किशोरावस्था ( 13 से 19 वर्ष ) :-

फुर्तीला सघनता ( vigorous intensity ) वाली शारीरिक क्रियाएँ ।

प्रतिदिन 60 मिनट से कई घंटे तक व्यायाम ।

माँसपेशीय शक्ति बढ़ाने वाली क्रियाएँ कम से कम सप्ताह में तीन बार ।

अस्थियों की शक्ति तथा प्रतिरोध वाली क्रियाएँ जैसे- भार प्रशिक्षण ।

दौड़ना , तैराकी आदि क्रियाएँ सहनशक्ति बढाने के लिए ।

🔶 प्रौढ़ावस्था ( 19 से 60 वर्ष ) :- 

नियमित व्यायाम बीमारियों जैसे कि – मोटापा , उच्च रक्तचाप , हृदय रोग तथा मधुमेह इत्यादि के खतरे को कम करता है ।

उपयुक्त शारीरिक वजन बना रहता है ।

अपने दैनिक कार्यों को बिना थके किया जा सकता है ।

आत्मसम्मान में वृद्धि होती है । 

अवसाद से बचाता है ।

🔶 वृद्धावस्था ( 60 से अधिक वर्ष ) :- 

सप्ताह में कम – से – कम 5 दिन मध्यम प्रबलता की क्रियाएँ जैसे कि – चलना , हल्के – हल्के कूदना इत्यादि । 

लगभग 45-60 मिनट तक करनी चाहिए । 

इन क्रियाओं को 10-10 मिनट की अवधि में करना चाहिए । 

जो बुजुर्ग प्रौढ़ावस्था से ही अधिक सक्रिय हैं उन्हें लगभग 30 मिनट तक अधिक प्रबलता वाली क्रियाएँ मध्यम प्रबलता की क्रियाओं के साथ मिलाकर करनी चाहिए । 

जैसे कि सीढ़ियाँ चढ़ना तथा दौड़ना इत्यादि । 

मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करने वाली क्रियाएँ जैसे कि – थोड़ा वजन उठाकर चलना या धकेलना तथा नृत्य इत्यादि करना चाहिए । 

सन्तुलन तथा समन्वय बनाए रखने वाली क्रियाएँ जैसे कि – योग प्राणायाम करना चाहिए ।

❇️ बच्चों पर शारीरिक व्यायाम के लाभ :-

  • शारीरिक स्वास्थ्य और शक्ति 
  • मानसिक स्वास्थ्य 
  • भावनात्मक अस्तित्व 
  • सामाजिक प्रवीणता 
  • सकारात्मक स्कूल वातावरण 
  • प्रेरणात्मक व्यक्तित्व 
  • हृदय को मजबूती देना 
  • हड्डियों व मांसपेशियों को मजबूती देना 
  • मधुमेह पर नियंत्रण 
  • नियममित रक्त चाप 
  • ऊर्जा शक्ति बढ़ाना 
  • विषहरण 
  • समाज विरोधी व्यवहार पर 
  • कोलस्ट्रोल स्तर को कम करना

❇️ आसन से सबंधी विकृतियां :-

  • पीछे की ओर कूबड़
  • चपटे पैर
  • धनुषाकार टांगे
  • घुटनों का टकराना
  • रीढ़ की हड्डी का एक और झुकना
  • गोल कंधे
  • आगे की ओर कूबड़

❇️ पीछे की ओर कूबड़ के लक्षण :-

स्कैप्यूला के बीच की दूरी बढ़ जाती है । 

कंधे आगे की ओर झुक जाते हैं । 

छाती की मांसपेशियों ( Pectorals ) की लम्बाई छोटी हो जाती है ।

गर्दन आगे की ओर झुक जाती है । 

पूरा शरीर आगे की ओर झुका प्रतीत होता है । 

संतुलन खराब हो जाता है ।

❇️ पीछे की ओर कूबड़ के लिए सुधारात्मक व्यायाम :-

🔹 कूबड़ पीछे को उपचार करने के लिये हमें उन व्यायामों का प्रयोग करना चाहिए जिनको करने से हमारी छाती की मांसपेशियों की लम्बाई में वृद्धि हो तथा थोरासिक क्षेत्र की , पीठ की मांसपेशियों की शक्ति में वृद्धि होती हो जैसे कि :- 

  • चक्रासन 
  • भुजंगासन 
  • धनुरासन 
  • स्विस बाल पर विपरीत दिशा में मुड़ना ( पीछे को ) 
  • विपरीत दिशा में वाटरफ्लाई करना 
  • तकिये की सहायता से गदर्न की एक्सटेंशन करना 
  • मर्जयासन ( Cat Pose ) करना 
  • उष्ट्रासन ( Camal Pose ) करना 
  • अर्धचक्रासन ( Half wheel ) करना

❇️ घुटनों के आपस में टकराना के लक्षण :-

खड़े रहने की स्थिति में दोनों घुटने आपस में स्पर्श करने लगते हैं । 

चलते समय घुटने आपस में स्पर्श करते हैं । 

दौड़ते समय घुटने आपस में स्पर्श करते हैं ।

मोटापा 

विटामिन डी की कमी 

रिकेटस नामक रोग 

समय से पहले बच्चों की चलाना 

कुपोषण 

घुटने के मिडिल लिंगामेंट का लेटरल लिंगमेंट की अपेक्षा में ज्यादा विकसित होना ।

लम्बे समय तक भारी बोझा उठाना

❇️ घुटनों के आपस में टकराना के उपाय :-

घुड़सवारी करना 

फुटबाल खेल में साईड किक ( Side kick ) करना ।

पद्मासन करना 

दोनों घुटनों के बीच तकिया लगाकर खड़े होना । 

वाकिंग कैलिपरस का इस्तेमाल करना । 

घुटनों के नीचे तौलिया रखकर पैर सीधा रखकर तकिये को घुटनों से नीचे की ओर दबाना ।

पैर को सीधा रखकर उसे उठाना 

❇️ चपटे पैरों के लक्षण :-

चलते समय तथा खड़े होते समय पैर ( Feet ) के मध्य भाग में दर्द होना । 

पैर की लम्बी चाप का खत्म हो जाना । 

पैरों को गीला करके यदि फर्श पर रखा जाये तो पूरे पैर का निशान ( Foot print ) देखा जा सकता है ।

❇️ चपटे पैरों के कारण :- 

  • मांसपेशियों तथा हड्डियों की कमजोरी 
  • अधिक भार ( Over Weight ) होना 
  • मोटापा 
  • लम्बे समय तक भारी बोझा उठाना 
  • चोट 
  • कुपोषण 
  • खराब जूते

❇️ सुधारात्मक उपाय :-

  • पैरों से लिखना 
  • रेत पर चलना तथा दौड़ना 
  • पंजों पर कूदना 
  • उचित प्रकार के जूते पहनना
  • जमीन पर गिरे हुए छोटे पत्थर के टुकड़ो को पैरों से उठाना 
  • पंजों पर चलना 
  • ताड़ासन करना 
  • वज्रासन करना 
  • गेंद के ऊपर चलने वाले खेल 
  • जूते के मध्य भाग में रूमाल रखकर पहनना

❇️ स्कॉलिओसिस के लक्षण :-

एक कंधा ऊँचा तथा एक नीचे हो जाता है । 

एक कूल्हा ऊपर तथा एक नीचे हो जाता है । 

शरीर का वजन एक पैर पर ज्यादा तथा एक पर कम हो जाता है । 

शरीर सीधा न होकर एक ओर झुका हुआ प्रतीत होता है ।

❇️ सुधारात्मक उपाय :-

  •  तैराकी 
  • त्रिकोण आसन करना 
  • लटकना
  • तख्त ( Plank ) व्यायाम करना 
  • ऐसे व्यायाम करना जिसमें नीचे वाला कंधा ऊपर जाये तथा ऊपर वाला कंधा नीचे जाये । 
  • अधोमुखश्वासानासन

❇️ धनुषाकार टांगों के लक्षण :-

दोनों घुटनों के बीच की दूरी जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है । 

खड़े होने की स्थिति में , चलने की स्थिति में तथा दौड़ने की स्थिति में घुटने बाहर की ओर घुम जाते है । 

टांगों की आकृति धनुषाकार हो जाती है ।

❇️ धनुषाकार टांगों के कारण :-

घुटनों के लेटरल लिंगामेंट , मीडियल लिंगामेंट का की अपेक्षा ज्यादा बढ़ जाना ।

हड्डियों का तथा मांसपेशियों का कमजोर हो जाना ।

लम्बे समय तथा सुखआसन में बैठना ।

गलत तरीके से चलना ।

मोटापा ।

बालक को समय से पहले खड़ा करना अथवा चलाना ।

❇️ सुधारात्मक उपाय :-

वाकिंग कैलिर्पस ( Walking Calipers ) का इस्तेमाल करना । 

घुटनों की मालिश करना ।

घुटनों के आसपास की मांसपेशियों की शक्ति को बढ़ाने वाले व्यायाम करना जैसे लैग एक्सटेन्सन करना । 

योग पट्टियों की सहायता से दोनों पैरों को सीधा करके बांधे और फिर गौ आसन की स्थिति को बनाना । 

पिलेट्स व्यायाम करना जैसे कि रोल अप बेलरिना आर्म ।

गरूड़ आसन करना ।

अर्धमत्सेन्द्रासन करना ।

❇️ भारत में महिलाओं की खेलों में भागीदारी :-

🔹 महिलाओं की भागीदारी का अर्थ है – खेलों के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी ” भारत में सन् 1952 में ओलम्पिक खेलों में पहली भारतीय महिला ने भाग लिया । सन् 2000 में ओलम्पिक में कर्णम मल्लेशवरी ( भारत्तोलन ) में कांस्य पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी ।

❇️ खेलों में महिलाओं की कम भागीदारी होने के कारण :-

🔶 शारीरिक कारक :-

शारीरिक पुष्टि तथा क्षमता और सुयोग्यता में कमी 

महिला एथलीट त्रय 

🔶 मानसिक कारक

आत्मविश्वास में कमी ।

दर्शकों की रूचि कम होना तथा कम प्रसारण होना ।

महिला प्रशिक्षकों की कम संख्या । 

कानून की कमी – आत्म रक्षा की कमी / व्यक्तिगत सुरक्षा ।

शिक्षा की कमी ।

🔶 सामाजिक कारक :-

कानून की कमी ।

समय का अभाव ।

खेलों की पुरूष प्रधान संस्कृति ।

अनुकरणीय व्यक्ति रूप में महिला खिलाड़ियों की कमी ।

समाज की अभिवृत्तियाँ तथा धाराणाएँ ।

❇️ भारत में खेलों में महिलाओं की भागीदारी को सुधारने के सुझाव :-

महिलाओं को खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरणा व प्रेरित करना । 

परिवार तथा समाज का सहयोग । 

महिलाओं के लिए शिविर , सेमिनार व कार्यशाला का आयोजन । 

ज्ञान अर्जित करना तथा दूरसंचार ( media ) की भागीदारी बढ़ाना । 

प्राथमिक स्तर पर महिलाओं की भागीदारी तथा प्रशिक्षण करना ।

अच्छी सुविधाएं उपलब्ध करवाना । 

महिलाओं की सुरक्षा तथा संरक्षण का प्रंबध करना ।

खेलों में प्रतियोगिता के अवसर उपलब्ध करवाना ।

नई वैज्ञानिक तकनीकी सामान व साधन का प्रबंधन करना । 

खेलों में प्रतियोगिता के अवसर उपलब्ध करवाना ।

सन्तुलित व स्वस्थ भोजन का प्रबंधन करना ।

अच्छे व प्रेरित छात्रवृति व पुरस्कारों को देना ।

सांस्कृतिक व सामाजिक नकारात्मक पहलू को दूर करना । 

अभिवृत्ति व सामाजिक बाधाओं को ग्रामीण स्तर पर दूर करना । 

सामाजिक समानताओं को बनाना , आत्मविश्वास का विकास । वित्तीय सहायता । 

रोजगार और कैरियर ।

सरकारी नीतियों का निर्माण व लागू करना ।

❇️ विशेष परिस्थितियां विशेष ध्यान देने योग्य तथ्य :-

युवा लड़की का प्रथम मासिक धर्म ( प्रथम रजोधर्म )

महिलाओं में मासिक धर्म में अनियमितता या विकार ( मासिक धर्म में शिथिलता )

❇️ महिला खिलड़ी त्रय :-

🔹 महिला एथलीट त्रय एक लक्षण समूह है जिसमें रक्तहीनता , अस्थिसुषिरिता तथा ऋतुरोध उपस्थित होते है । वास्तव में यह आपस में संबंधित तीन दशाओं या तत्त्वों का एक लक्षण समूह होता है ।

🔶 अस्थिसुषिरिता :-

🔹 अस्थि सम्बन्धी विकार जिसमें अस्थि का घनत्त्व कम हो जाता है ।

🔶 ऋतुरोध :-

🔹 मासिक धर्म चक्र में अनिमियतता जिसमें 3 या अधिक महीनों तक मासिक धर्म की अनुपस्थिति हो होना ।

🔶 भोजन संबंधी विकार :-

🔹 जब व्यक्ति सामान्य से अधिक या बहुत कम मात्रा में भोजन करने लगे तो इसे भोजन संबंधी विकार कहते हैं ये एक प्रकार का मानसिक रोग है । 

🔹 इस के दो प्रकार होते हैं । 

  • 1 .एनोरेक्सिया नर्वोसा / क्षुधाअभाव 
  • 2. बुलिमिया / अतिक्षुधा

❇️ अस्थिसुषिरता के कारक :-

🔹 आहार में कैल्शियम की कम मात्रा के कारण अस्थि और हड्डी की मात्रा में कमी होती है ।

🔹 ऋतुरोध या रजोरोध महिलाएं 6 महीने से अधिक समय तक यदि ऋतुरोध की समस्या हो तो उन को भी अस्थिसुषिरता होती है । क्योंकि ऋतुधर्म के समय एस्ट्रोजन नाम का हारर्मोन निकलता है जो कैल्शियम की मात्रा का कन्ट्रोल रखता है । 

🔹 भोजन करने संबंधी विकार- भोजन लेने संबंधी विकार क्षुधा अभाव तथा अतिक्षुधा अभाव आदि विकार के कारण भी अस्थिसुषिरता हो जाता है । क्योंकि ये भोजन में कैल्शियम की मात्रा का उपयोग तथा अवशोषण ( शरीर में कमी कर देते है । 

🔹 खाने सबंधी बुरी आदते- भोजन में कैफीन , एल्कोहल , तंबाकु या धूम्रपान आदि का उपयोग करने से शरीर में उपस्थित कैल्शियम की मात्रा का अनुपात असंतुलन हो जाता है । जिससे अस्थिसुषिरता होने के कारण बनते है ।

❇️ ऋतुरोध या रजारोध के कारण , महिला शरीर में होने वाले लक्षण :-

🔶 ऋतुधर्म की अनुपस्थिति :- यह विकार , शरीर में विभिन्न परिस्थिति जैसे असंतुलित भोजन , उच्च स्तरीय प्रशिक्षण , उच्च चिंता , लगातार दवाई के सेवन से होता है । 

🔶 असामान्य ऋतुधर्म लक्षण :- बहुत सी लड़कियों में लक्षण जैसे – दर्द , कमर , छाती में जलन , सिर दर्द , कब्ज , अवसाद , चिड़चिड़ापन व चिन्ता जैसी परिस्थिति बन जाती है ।

🔶 असामान्य शरीर में मांसपेशियों की संकुचन :- इसके कारण , मांसपेशियों में इस रासायनिक तत्व बन जाते है जो बार -2 मांसपेशियों में संकुचन विकसित करते है । 

🔶 लम्बी अवधि तक गौण ऋतुस्त्राव :- ऋतुरोध के कारण , महिलाओं में लम्बे समय तक गौण ऋतुस्त्राव , मासिक धर्म स्त्राव बढ़ जाता है जिससे शरीर में तत्त्वों की कमी होता है ।

🔶 असामान्य मासिक धर्म :- सामान्य रूप से मासिक धर्म का समय 21 से 35 दिनों का होता है परन्तु ऋतुरोध के कारण यह असामान्य हो जाता है ।

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