Class 12 geography chapter 6 notes in hindi, द्वितीयक क्रियाएँ notes

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12 Class Geography Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ Notes In Hindi Secondary Activities

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectGeography
Chapter Chapter 6
Chapter Nameद्वितीयक क्रियाएँ 
CategoryClass 12 Geography Notes in Hindi
MediumHindi

Class 12 geography chapter 6 notes in hindi, द्वितीयक क्रियाएँ notes इस अध्याय मे हम द्वितीयक क्रिया , विनिर्माण , उद्योगो का वर्गीकरण, जैसे विषयो के बारे में विस्तार से जानेंगे ।

❇️ द्वितीयक क्रिया :-

🔹 प्राकृतिक रूप से प्राप्त कच्चे माल को जब मनुष्य अपना कौशल ज्ञान एवं श्रम लगाकर नये उपयोगी उत्पाद में बदल देता है तो इस द्वितीयक क्रिया कहा जाता है ।

❇️ विनिर्माण :-

🔹 विनिर्माण से आशय किसी भी वस्तु के उत्पादन से है । हस्तशिल्प से लेकर लोहे व इस्पात को गढ़ना , अंतरिक्ष यान का निर्माण इत्यादि सभी प्रकार के उत्पादन को विनिर्माण के अन्तर्गत ही माना जाता है ।

❇️ उद्योगो का वर्गीकरण :-

🔹 उद्योगो का वर्गीकरण मुख्यतः 4 आधारों पर किया जाता है।

🔶 1 ) आकार के आधार पर

  • कुटीर उद्योग
  • छोटे पैमाने के उद्योग
  • बड़े पैमाने के उद्योग

🔶 2 ) कच्चे माल के आधार पर

  • कृषि आधारित
  • खनिज आधारित
    • धात्विक खनिज उद्योग
    • अधात्विक खनिज उद्योग
  • रसायन आधारित
  • पशु आधारित
  • वन आधारित

🔶 3 ) उत्पाद के आधार पर

  • आधारभूत उद्योग
  • उपभोक्ता वस्तु उद्योग

🔶 4 ) सुवामित्व के आधार पर

  • सार्वजानिक उद्योग
  • निजी उद्योग
  • संयुक्त क्षेत्र के उद्योग

❇️ आकार के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण :-

🔹 आकार के आधार पर उद्योगों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जाता है ।

🔶 कुटीर उद्योग :-

🔹 कुटीर उद्योग उन उद्योगों को कहते हैं जिनमें लोग अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर स्थानीय कच्चे माल की सहायता से घर पर ही दैनिक उपयोग की वस्तुओं का निर्माण करते है ।

🔶 छोटे पैमाने के उद्योग :-

  • इस प्रकार के उद्योग मे निर्माण स्थल घर से बाहर करखाना होता है ।
  • उत्पादन , ऊर्जा से चलने वाली मशीनों तथा मजदूरों द्वारा किया जाता है । 
  • इसमें कच्चा माल स्थानीय बाजार में उपलब्ध न होने पर बाहर से भी मंगवाते है ।

🔶  बड़े पैमाने के उद्योग :-

  • उत्पादन , विकसित प्रौद्योगिक तथा कुशल श्रमिकों द्वारा किया जाता है।
  • उत्पादन अथवा उत्पादित माल को विशाल बाज़ार में बेचा जाता है ।
  • इसमें उत्पादन की मात्रा भी अधिक होती है ।
  • अधिक पूंजी तथा विभिन्न प्रकार के कच्चे माल का प्रयोग किया जाता है ।

❇️ कच्चे माल के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण :-

🔹 कच्चे माल के आधार पर उद्योगों को मुख्य रूप से पांच भागों में बांटा जाता है ।

🔶 कृषि आधारित उद्योग :-

🔹 वह उद्योग जो कृषि द्वारा उत्पादित कच्चे माल पर निर्भर होते हैं कृषि आधारित उद्योग कहलाते हैं । उदाहरण के लिए शक्कर उद्योग , आचार उद्योग , मसाले एवं तेल उद्योग आदि इन उद्योगों में कृषि से प्राप्त कच्चे माल को तैयार माल में बदलकर ग्रामीण एवं नगरीय भागों में बेचने के लिए भेजा जाता है ।

🔶 खनिज आधारित उद्योग :-

🔹 वे उद्योग जिनमें खनिजों का उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है खनिज आधारित उद्योग कहलाते हैं उदाहरण के लिए लोहा 

🔹खनिज आधारित उद्योग को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है :-

🔸 धात्विक खनिज उद्योग :- इसमें वे उद्योग आते हैं जो धात्विक खनिजों जैसे कि लोहा , एलुमिनियम , तांबा आदि का उपयोग करते हैं ।

🔸अधात्विक खनिज उद्योग :- इसमें वे उद्योग आते हैं जो मुख्य रूप से अधात्विक खनिज जैसे कि सीमेंट आदि का उपयोग करते है उद्योग

🔶 रसायन आधारित उद्योग :-

🔹 इस प्रकार के उद्योगों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रासायनिक खनिजों का उपयोग होता है जैसे कि पेट्रो रसायन उद्योग , प्लास्टिक उद्योग आदि ।

🔶 पशु आधारित उद्योग :-

🔹 वह उद्योग जिन में पशुओं से प्राप्त वस्तुओं का उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है पशु आधारित उद्योग कहलाते हैं उदाहरण के लिए चमड़ा उद्योग , ऊनी वस्त्र उद्योग आदि

🔶 वनों पर आधारित उद्योग :-

🔹 वे उद्योग जो कच्चे माल के लिए वनों पर निर्भर होते हैं वन आधारित उद्योग के लाते हैं उदाहरण के लिए फर्नीचर उद्योग , कागज उद्योग आदि ।

❇️ उत्पाद के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण :-

🔹 उत्पाद के आधार पर उद्योगों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है ।

🔶 उपभोक्ता वस्तु उद्योग :-

🔹 उपभोक्ता वस्तु उद्योग ऐसे सामान का उत्पादन करते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता द्वारा उपयोग कर लिया जाता है । जैसे ब्रेड़ एंव बिस्कुट , चाय , साबुन इत्यादि ।

🔶 आधारभूत उद्योग :-

🔹 वह उद्योग जो दूसरे उद्योगों के लिए आवश्यकता की वस्तुएं बनाते हैं उन्हें आधारभूत उद्योग कहा जाता है उदाहरण के लिए मशीन बनाने वाले उद्योग , लोहा और इस्पात उद्योग ।

❇️ स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण :-

🔶 सार्वजनिक क्षेत्र :- 

  • ऐसे उद्योग सरकार के अधीन होते हैं ।
  • सरकार ही इनका प्रबंध करती है ।
  • भारत में बहुत से उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के बीच है जैसे लोह इस्पात उद्योग ।
  • अधिकतर समाजवादी , साम्यवादी देशों में ऐसा होता हैं ।

🔶 निजी क्षेत्र :-

  • ऐसे उद्योगों का मालिक एक व्यक्ति या एक कम्पनी होती है ।
  • व्यक्ति या निजी कंपनियां इन उद्योगों का प्रबंधन करती है ।
  • पूंजीवाद देशों में यह व्यवस्था होती है ।
  • भारत में टाटा समूह , विरला , रिलायंस इंडस्ट्री इसके उदाहरण है ।

🔶 संयुक्त क्षेत्र :-

🔹कुछ उद्योगों का संचालन सरकार और निजी कंपनियाँ मिलकर करती है ।

🔹हिन्दुस्तान पैट्रोलियम कोर्पोटेशन लिमिटेड ( HPCL ) तथा मित्तल एनर्जी लिमिटेड साझेदारी ( HPCLMittal energy limited ( HMFL ) इसका उदाहरण है ।

❇️ उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारको :-

🔶 1 . कच्चे माल की उपलब्धता :- उद्योग के लिए कच्चा माल अपेक्षाकृत सस्ता एंव सरलता से परिवहन योग्य होना चाहिए । भारी वजन सस्ते मूल्य एंव वजन घटाने वाले पदार्थों व शीघ्र नष्ट होने वाले पदार्थों पर आधारित उद्योग कच्चे माल के स्त्रोत के समीप ही स्थित हो । जैसे लौह – इस्पात उद्योग , चीनी उद्योग ।

🔶 2 . अनुकूल जलवायु :- कुछ उद्योग विशेष प्रकार की जलवायु वाले क्षेत्रों में ही स्थापित किये जाते हैं । उदाहरण के लिए दक्षिण भारत में सूती वस्त्र उद्योग विकसित होने में नमी वाले पर्यावरण का लाभ मिला है । नमी के कारण कपास से वस्त्र की कताई आसान हो जाती है । अत्याधिक ठंडे व अत्याधिक गर्म प्रदेशों में उद्योगों की स्थापना कठिन कार्य है ।

🔶 3 . शक्ति के साधन :- वे उद्योग जिनमें अधिक शक्ति की आवश्यकता होती है वे ऊर्जा के स्रोतों के समीप लगाए जाते हैं , जैसे एल्यूमिनियम उद्योग ।

🔶 4 . श्रम की उपलब्धता :- बढ़ते हुए यंत्रीकरण , स्वचालित मशीनों इत्यादि में उद्योगों में श्रमिकों पर निर्भरता को कम किया है , फिर भी कुछ प्रकार के उद्योगों में अब भी कुशल श्रमिकों की आवश्यकता है । अधिकांश उद्योग सस्ते व कुशल श्रमिकों की उपलब्धता वाले स्थानों पर अवस्थित होते हैं । स्विटजरलैंड का घड़ी उद्योग व जापान का इलैक्ट्रोनिक उद्योग कुशल और दक्ष श्रमिकों के बल पर ही टिके हैं ।

🔶 5 .  पूँजी :- किसी भी उद्योग के सफल विकास के लिए पर्याप्त पूँजी का उपलब्ध होना अनिवार्य है । कारखाने के लिए जमीन , मशीने , कच्चा माल , श्रमिकों को वेतन देने के लिए पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता होती है । उदाहरण के लिए यूरोप में पर्याप्त मात्रा में पूँजी उपलब्ध होती है तथा वहाँ उद्योग भी काफी विकसित है ।

❇️ बड़े उद्योगों की विशेषताएं :-

🔶 1 ) कौशल का विशिष्टीकरण :- आधुनिक उद्योगों में उत्पादन बड़े पैमाने पर होने के कारण कौशल का विशिष्टीकरण हो जाता है जिसमें प्रत्येक कारीगर निरंतर एक ही प्रकार का कार्य करता है । कारीगर निर्दिष्ट कार्य के लिये प्रशिक्षित होते है ।

🔶 2 ) यन्त्रीकरण :- यन्त्रीकरण से तात्पर्य है कि किसी कार्य को पूरा करने के लिए मशीनों का प्रयोग करना । आधुनिक उद्योग स्वचालित यन्त्रीकरण की विकसित अवस्था है ।

🔶 3 )  प्रौद्योगिकीय नवाचार :- आधुनिक उद्योगों में नया तकनीकी ज्ञान , शोध व विकासमान युक्तियों को सम्मिलित किया गया है जिसमें विनिर्माण की गुणवत्ता को नियन्त्रित करना , अपशिष्टों का निस्तारण व अदक्षता को समाप्त करना व प्रदूषण के विरूद्ध संघर्ष करना मुख्य है ।

🔶 4 ) संगठनात्मक ढांचा व स्तरीकण :- इसके अतिरिक्त बड़े पैमाने पर होने वाले विनिर्माण में संगठनात्मक ढाँचा बड़ा , पूँजी का निवेश अधिक कर्मचारियों में प्रशासकीय अधिकारी वर्गों का बाहुल्य होता है ।

❇️ समूहन अर्थव्यवस्था :-

🔹 प्रधान उद्योग की समीपता से अन्य अनेक उद्योगों का लाभांवित होना समूहन अर्थव्यवस्था है ।

❇️ धुएँ की चिमनी वाला उद्योग :-

🔹 परंपरागत बड़े पैमाने वाले औद्योगिक प्रदेश जिसमें कोयला खादानों के समीप स्थित धातु पिघलाने वाले उद्योग भारी इंजीनियरिंग , रसायन , निर्माण इत्यादि का कार्य किया जाता है । इन्हें धुएं की चिमनी वाला उद्योग भी कहतें हैं ।

❇️ स्वच्छंद उद्योग :-

🔹  ये वे उद्योग है जो किसी कच्चे माल पर निर्भर नहीं होते वरन संघटक पुरजों पर निर्भर रहते हैं ।

❇️ स्वच्छंद उद्योग की विशेषताएँ :-

  • स्वच्छंद उद्योग व्यापक विविधता वाले स्थानों में स्थित होते हैं ।
  • ये किसी विशिष्ट प्रकार के कच्चे माल पर निर्भर नहीं होते हैं ।
  • ये उद्योग संघटन पुरजो पर निर्भर होते हैं ।
  • इनमें कम मात्रा में उत्पादन होता है ।
  • इन उद्योगों में श्रमिकों की भी कम आवश्यकता होती है ।
  • सामान्यतः ये उद्योग प्रदूषण नही फैलाते हैं ।

❇️ कृषि व्यापार या कृषि कारखाने :-

🔹 कृषि व्यापार एक प्रकार की व्यापारिक कृषि है जो औद्योगिक पैमाने पर की जाती है इसका वित्त पोषण वह व्यापार करता है जिसकी मुख्य रूचि कृषि के बाहर हो । यह फार्म से आकार में बड़े यन्त्रीकृत , रसायनों पर निर्भर व अच्छी संरचना वाले होते हैं । इनकों कृषि कारखाने भी कहा जाता है ।

❇️ लौह इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग क्यों कहा जाता है ?

🔹 लौह – इस्पात उद्योग के उत्पाद को अन्य वस्तुएँ बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयोग में लाया जाता है इसलिए इसे आधारभत उद्योग कहते हैं । जैसे : – लौह इस्पात उद्योग , वस्त्र उद्योग व अन्य उद्योगों के लिए मशीनें बनाता है । अतः यह सभी उद्योगों का आधार है ।

❇️ लोहा इस्पात उद्योग को भारी उद्योग क्यों कहते हैं ?

🔹  लोहा इस्पात उद्योगे को भारी उद्योग कहते हैं , क्योंकि इसमें बड़ी मात्रा में भारी भरकम कच्चा माल उपयोग में लाया जाता है , एंव इसके उत्पाद भी भारी होते हैं ।

❇️ प्रौद्योगिक ध्रुव :-

🔹 वे उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग जो प्रादेशिक रूप में सकेन्द्रित हैं , आत्मनिर्भर तथा उच्च विशिष्टता लिए होते हैं उन्हें प्रौद्योगिक ध्रुव कहा जाता है जैसे उदाहरण – सिलीकन घाटी ( स . रा . अ . ) बेंगलूरू ( भारत में ) , सियटल के समीप सिलीकन वनघाटी ।

❇️ जंग का कटोरा

🔹  ‘ नाम संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित पिट्सबर्ग को ‘ जंग का कटोरा ‘ नाम से जाना जाता है क्योंकि पिट्सबर्ग लौह उत्पादन का प्रमुख क्षेत्र था जिसका महत्व अब घट गया है ।

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